शनिवार, 4 मार्च 2017

पागा कलगी -28//2//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर 'अंजोर '

विषय:-- लमसेना
विधा:-- सार छंद
बेटा तयँ जिनगी के थेघा,आवच पाँखी डेना।
कइसे हमला छोड़ अकेला,बनगे तयँ लमसेना।
जे दिन थकजाही जांगर हा,का खाबो का पीबो।
अउ का बाँच जही जिनगी मा,जेखर बर हम जीबो।
पाय मया कइसन ससुरे मा,हमर भुलागे कोरा।
का हमरे कस उँखरो आँखी,करथे तोर अगोरा?
मनके बात बतावत नइहच,अइसे काबर लगथे?
जइसे हमरे करम उपर मा,बइठे हमला ठगथे।
कान फुसारी गोठ सुने हन,सँच काहे अलखादे?
सास ससुर अउ हमर बहू के,हाल हवाल बतादे।
सुने हवन मन पथरा करके,थोपत रहिथच छेना।
कइसे हमला छोड़ अकेला,बनगे तयँ लमसेना।
जे मनखे के हमर दरद मा,नइये आना जाना।
तेनो कुलकत हाँसत हावै,जइसे पाय खजाना।
गुन अंतस आंसू ढरकावै, देख ददा के आँखी।
दाई के मन पसतावत हे,काबर नइहे पाँखी?
अबतो एके आस हवै गा,कोरा पावन नाती।
नाचन गावन ओखर सनमा,तभे जुड़ावै छाती।
जिनगी के अँधियार मिटाके,धर लाही उजियारा।
अतके लालच मा जीयत हन,बाकी राम सहारा।
जाँवर जोंड़ी जेन बनाथे,ओही पार लगाही।
मालिक मा बिश्वास हवै अब,रद्दा खोज धराही।
हमर दरद मा ये दुनिया ला,का लेना का देना।
कइसे हमला छोड़ अकेला,बनगे तयँ लमसेना।
रचना:- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर 'अंजोर '
शिक्षक,गोरखपुर,कवर्धा
9685216602
26/02/2017

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें