शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//नवीन कुमार तिवारी

बिहनिया के राम राम ,
आ ही , आ ही मिथ लबरा आ ही ,
दो रूपया चा वूर देके ,ग्राम सुराज लाही
लइका मन ला लेपटॉप, टेबलेट, साइकिल देके भरमात हैवे,
फेर शिक्षा के गीरत स्तर ल आ वो गिरावट हैवे ,
विकास संग सुराज के दिखावा ,अपन जय जय कर करावत हैवे,
अधिकारी ,कर्मचारी संग अपन फोटो घलो खिचववत हैवे,
विकास के संसो भुलवारे, घामे घाम कोलकी कोलकी तीपे भोमरा मेफीरवावत हैवे ,,,
पानी सीरा गए ,नदिया तरिआ झिरया घलो गो सुखागे,
संगे संग ,माई पीला जानवर पक्षी के टोटा घलो सोखा गे ,,
आई पी एल ,के नचकरहा नचकरहिं बर ,,
सट्टा जूवना खिलाए के साध ,,,
सोच कैसे कांडी ल हरियवत हैवे ,
घेरी बेरी पनि सींचत कैसे
आँखि ल मत कावट हैवे ,
पानी सिट्टा कर के पानी बचाव अभियान चलावत हैवे,,
फेर पानी के बदला में ,सस्ता दारू बोहावत हैवे ,
तेखर बर गांव गांव चौपाल चौपाल दारू दूकान खोलवावत हैवे,
निर्धन कन्या ला आशीष देबर देख कैसे मुस्कियावत हैवे,
बिहाव होते एक बेर ,,,,,फेर दहेज़ खातिर,,लक्ष्य बनाए ,
डुबेर हाथ पिवुरा करवावत हैवे,,,
फेर जोँहर हुए एक तन गोत सुनो ,
लैकोर हीं के घलो हाथ ल कैसे रंगववत हावी,,
आशीष देबर देख ऐसे मच मचावत हैवे,
लइका महतारी के स्वास्थ सुधारे ,
देख कैसे अलकरहा जतन करे हैवे
माखी भिनभिनाहट किउ रा पड़े ,
करु होवत पोषण आहार खवा वत हैवे ,,
अरहर ,बटकर,गुड शकककर संग देख शाग भाजी,
कइसे मट मटा वत भागतहैवे,
महंगाई के सांसो भुला देख कैसे ग्राम सुराज लावत हैवे,
कभु लोक सुराज , कभु ग्रामशहर नगर सुराज के झांसा ,,
कभु जनसमस्या निवारण के दिखावा ,
तो कभु करावत अपन संग अधिकारी के दर्शन जी ,
जैमा लेवत दरख्वास्त ऊपर दरख्वास्त जी ,
खाल्हे तरी ऊपर गंजए कतका दरख्वास्त जी ?
विकास के चोचला ये दरख्वास्त जी ,
का होते का होते ,,ये दरख्वास्त के जी ,,?
अधिकारी कर्मचारी मन के करम जाग जथे,
दरखास्त के टोकना हा रद्दी के भाव बिक जाथे,
दारु संग चखना के घलो जुगाड़ हो जथे,
आ वु सबो समस्या ,
समस्या बने गरियावत रहिथे
कागज में विकास नजर आते ,
अधिकारी कर्मचारी के प्रमोशन हो जाथे
धुर्रा खाये के सेती ,,
गोल्ड मैडल ले सम्मान घलो करावा लेते
नवीन कुमार तिवारी ,,,,२८.४.२०१६

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8 //चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

"जल हे त कल हे"
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पानी हर अटावत हे
भुंइया हर सुखावत हे
बिन पानी तरसत हे किसान
मनखे घूमत हे होके परिसान ।1।
भुंइया हर रिसावत हे
रुख राई हर सुखावत हे
जीव जंतु मरत हे पियास
न जतन हे न कुछु परियास ।2।
सरकार कुछु करय नई
सुध काखरो लेवय नई
खुद कुछ करन नई देवन नई धियान
आँखि मूँदें बइठे हन बनके अनजान।3।
नल चलत हे बिन टोटी के
बोर दउड़त हे बिन खेती के
मनखे सुते हे गोड़ हाँथ लादे तान...
दांव में लगे हे सब जीव के परान ।4।
जल हे त कल हे
नभ हे अउ थल हे
बड़ सुग्घर कहे हमर मनखे सियान
जल बिन सब सुन ए बात ला जान।5।
चलो पेड़ लगाबोन
पानी ला बचाबोन
मनखे किसान के सुसि ला बुतान
जीव-जंतु हमर भुंइया ला बचान...।6।
-चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//आचार्य तोषण

"जल-जीवन":::::::
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चइत बइसाख महिना मा
भुंइया ह तिपत जात हे।
चिरई-चिरगून रूखराई संग
मनखे तन हा अइलात हे।
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भरे घाम के दिन ह आगे
टोटा घलोक सुखात हे।
कुंआ बावली बोरिंग नल ले
पानी थोरकुन नइ आत हे।
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नरवा ढोरगा तरिया डबरा
नल के पानी सिरात हे।
बिन पानी सुन्ना जिनगानी
काबर समझ नइ पात हे।
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एकेक बुंद पानी बर हम
संचय गुन ल भरबो गा।
पानी ल बचाय बर हममन
कलयुगी भगीरथ बनबो गा ।
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जमदरहा पानी बरस ही
पेंड़ जगाबे जब भुंइया म।
पानी जतके बरस ही संगी
ओतकी रिसाही भुंइया म।
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भुंइया के पानी गंगा असन
निकले कुंआ बोरिंग नल ले।
गाय गरूवा नारी परानी सब
पियास बुझाय खल खल ले।
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सब्बे कहिथे जल जीवन हे
कोलिहा सही हुंआ कहिथे।
एला बचाए बर भैय्या मोर
कतको सबले पाछू रहिथे ।
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कहिथे आचार्य तोषण ह
सबझन पानी बचाईंगे।
पानी बांचही जिनगी नांचही
अपन भाग संहराईंगे।
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आचार्य तोषण
गांव -धनगांव
डौंडीलोहारा
बालोद(छ. ग.)

पागा कलगी -8//लक्ष्मी नारायण लहरे

पानी जीवन के रंग आय .....
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पानी तरिया नरवा के सुखा जाथे
कुँआ बावली के पानी बससा जाथे
जब गाँव सहर म नल जल बिछा जाथे
मीठा पानी तो सबो हर आय
महानदी , इन्द्रावती के पानी
कहाँ लुकावत हे
बस्तर म झरिया के पानी मिठावत हे
पानी जीवन के रंग आय
पानी ल मंगलू कुआं बावली म भर
तरिया -नरवा के कर मान
नदी -नाला ह जीवन के आधार आय
बरसा के पानी ल सकेलव् जी
जीवन ल पानी कस जियव् जी
पानी हे गुरु बानी
पानी बिना जीवन अबिरथा
पानी के मान ल जानव जी
पानी जीवन के रंग आय ..... 


०लक्ष्मी नारायण लहरे ,

साहिल, कोसीर सारंगढ़ रायगढ़

पागा कलगी -8//महेन्द्र देवांगन माटी

पानी ल बचावव
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दिनों दिन गरमी ह बाढ़त, तरिया नदियां सुखावत हे
कुंवा बोरिंग सुक्खा परगे, पानी घलो लुकावत हे
बूंद बूंद अनमोल होगे , अब समझ में आवत हे
एक कोस में पानी भरे बर, नवा बहुरिया जावत हे
चिरई चिरगुन के मरना होगे, पियास में फड़फड़ावत हे
गाय गरुवा मन भूख पियास में, भारी हड़बड़ावत हे
पेड़ पौधा के पत्ता झरगे, खड़े ठाड़ सुखावत हे
धरती दाई पियासे हाबे, पानी कहां लुकावत हे ।
जल हाबे त जीवन हाबे, एला तुम बचावव
बिना पेड़ के पानी नइ गिरे, एला सब समझावव ।
पानी बिना जग हे सुना , बात ल तुमन मानव
एक एक पेड़ लगाके संगी, सबके जीव बचावव ।
रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम ( छ. ग. )

पागा कलगी -8//मिलन मलरिहा

छत्तीसगढ़ के पागा कलगी 8 बर मोर रचना--
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मोर बहरा खार म, रोवत हे रुख-राई
पानी-पानी कहिके, कलपत हे सबोचिराई
जंगल-झाड़ी जरत हे, माते हे करलाई
पड़की कहे मैना ले, काला दुख सुनाई
नान नान नोनी-बाबू कहाँ घर बसाई
आगी बरसत, ए घाम म कहाँमेर जाई
मनखे जंगल उजारके, गरमी ल परघाई
कुंआ, नरवा-तरिया के अधाधून हे अटाई
मोर बहरा खार म...................................
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मैना कहे सुन दीदी पड़की, चला सबो गोहार लगाई
हे भगवान! मनखे ले परे एक अलगे जग बनाई
जिहा नान-नान जीव-जनतु पियास बुझाई
नदिया नरवा कलकल छलछल मया बरसाई
अमृत-जलधार बसय जिहा,अइसे जग पिरोई
सुना गोहार कलपत जीवके, कहूँतो जुगत मढ़ाई
मोर बहरा खार म........................................
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भगवान कहिच, हे मैना ! दुनिया भोजन-सृंखला हे
मौसम आना जाना हे, जीनगी म जिना-मरना हे
सबजीव एके संग करमबद्ध-सृन्खला म रहना हे
मनखे सरेस्ट जीव संसारके, ओला ए समझना हे
पानी हे अनमोल रतन, बिन पानी सब सुन्ना हे
प्रकरिति ल बिगाड़ीच ओहा, सनसार होगे दुखदाई
अपन घर बसाए बर, मनखे करत हे जंगल कटाई
मोर बहरा खार म..........................................
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पानी ले जीवन बने अउ उपजे पेड़-पवन-पुरवाई
बचावा संगी परियावरण, पानी सोरोत गहिलाई
थोरकन पानी बाचे कुआँ म, कई बाल्टी होत डुमाई
पेलिक-पेला, झूमा-झटकी ले मार-काट मच जाई
मनखे तरिया पाटके जघा-जघा घर-खेत सजाई
सब ओखरे परिनाम हे, पानी खसलत दूरिहाई
मनखे तो भोगत करनी, गहूँ संग कीरा दूसर रगड़ाई
मोर बहरा खार म..........................................
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आवा संगी पेड़ जगाके, कुआँ-तरिया घलो बनवाई
मिलजुल सब परन करके, भबिस्य बर पानी बचाई
मोर बहरा खार म, रोवत हे रुख-राई
पानी-पानी कहिके, कलपत हे सबो चिराई
जंगल-झाड़ी जरत हे, माते हे करलाई ।।
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मिलन मलरिहा
मल्हार-बिलासपुर
छत्तीसगढ़

रविवार, 24 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

बड़ किमती ये पानी हे।
एकरे ले जिनगानी हे।
पानी ले बिहान होवत हे।
पानी ले स्नान होवत हे।
पानी ले तोर धियान होवत हे।
पानी ले बिज्ञान होवत हे।
पानी ले तइयार तोर,
खाय पीये के समान होवत हे।
पानी ल बरबाद कहुं करबे,
तंय रोबे तोर परान रोहि।
लइकन संग म सियान रोहि।
सरहद ले बीर जवान रोहि।
खेती के तीर किसान रोहि।
गांव के चतुरा कंतरी रोहि।
घुम-घुम के मंतरी रोहि।
माते गंजहा दरुहा रोहि।
कोठा ले गाय गरुवा रोहि।
उड़त-उड़त पुरवाई रोहि।
खड़े-खड़े रूखराई रोहि।
मंदीर ले पुजारी रोहि।
बिन लिपाय घरद्वारी रोहि।
कांदा मुराई संग बारी रोहि।
चपरासी संग करमचारी रोहि।
पानी बंचाय बर करिहो लाचारी।
एक-दुसर संग ईसगापारी।
नंदा जहि सब दुनियादारी।
फेर काकर करिहो रखवारी।
पानी के बरबादी ल रोकव।
जतेक जरूरत ओतकेच झोंकव।
बिछा जहि तोर सपना हीरा।
उघर जहि अंतस के पीरा।
जब रिसाजहि जलदेवति नीरा।
बोहा जहि कहुं भाग ले पानी।
हांथ ले बिहांथ होजहि जिनगानी।
किरिया खावन पानी बचायके,
पानी बचायबर उदीम रचायके।
बड़ किमती ये पानी हे।
एकरे ले जिनगानी हे।
रचना:---सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
शिक्षक पंचायत
गांव-गोरखपुर,कवर्धा