सोमवार, 25 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//मिलन मलरिहा

छत्तीसगढ़ के पागा कलगी 8 बर मोर रचना--
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मोर बहरा खार म, रोवत हे रुख-राई
पानी-पानी कहिके, कलपत हे सबोचिराई
जंगल-झाड़ी जरत हे, माते हे करलाई
पड़की कहे मैना ले, काला दुख सुनाई
नान नान नोनी-बाबू कहाँ घर बसाई
आगी बरसत, ए घाम म कहाँमेर जाई
मनखे जंगल उजारके, गरमी ल परघाई
कुंआ, नरवा-तरिया के अधाधून हे अटाई
मोर बहरा खार म...................................
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मैना कहे सुन दीदी पड़की, चला सबो गोहार लगाई
हे भगवान! मनखे ले परे एक अलगे जग बनाई
जिहा नान-नान जीव-जनतु पियास बुझाई
नदिया नरवा कलकल छलछल मया बरसाई
अमृत-जलधार बसय जिहा,अइसे जग पिरोई
सुना गोहार कलपत जीवके, कहूँतो जुगत मढ़ाई
मोर बहरा खार म........................................
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भगवान कहिच, हे मैना ! दुनिया भोजन-सृंखला हे
मौसम आना जाना हे, जीनगी म जिना-मरना हे
सबजीव एके संग करमबद्ध-सृन्खला म रहना हे
मनखे सरेस्ट जीव संसारके, ओला ए समझना हे
पानी हे अनमोल रतन, बिन पानी सब सुन्ना हे
प्रकरिति ल बिगाड़ीच ओहा, सनसार होगे दुखदाई
अपन घर बसाए बर, मनखे करत हे जंगल कटाई
मोर बहरा खार म..........................................
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पानी ले जीवन बने अउ उपजे पेड़-पवन-पुरवाई
बचावा संगी परियावरण, पानी सोरोत गहिलाई
थोरकन पानी बाचे कुआँ म, कई बाल्टी होत डुमाई
पेलिक-पेला, झूमा-झटकी ले मार-काट मच जाई
मनखे तरिया पाटके जघा-जघा घर-खेत सजाई
सब ओखरे परिनाम हे, पानी खसलत दूरिहाई
मनखे तो भोगत करनी, गहूँ संग कीरा दूसर रगड़ाई
मोर बहरा खार म..........................................
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आवा संगी पेड़ जगाके, कुआँ-तरिया घलो बनवाई
मिलजुल सब परन करके, भबिस्य बर पानी बचाई
मोर बहरा खार म, रोवत हे रुख-राई
पानी-पानी कहिके, कलपत हे सबो चिराई
जंगल-झाड़ी जरत हे, माते हे करलाई ।।
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मिलन मलरिहा
मल्हार-बिलासपुर
छत्तीसगढ़

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