गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8 //चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

"जल हे त कल हे"
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पानी हर अटावत हे
भुंइया हर सुखावत हे
बिन पानी तरसत हे किसान
मनखे घूमत हे होके परिसान ।1।
भुंइया हर रिसावत हे
रुख राई हर सुखावत हे
जीव जंतु मरत हे पियास
न जतन हे न कुछु परियास ।2।
सरकार कुछु करय नई
सुध काखरो लेवय नई
खुद कुछ करन नई देवन नई धियान
आँखि मूँदें बइठे हन बनके अनजान।3।
नल चलत हे बिन टोटी के
बोर दउड़त हे बिन खेती के
मनखे सुते हे गोड़ हाँथ लादे तान...
दांव में लगे हे सब जीव के परान ।4।
जल हे त कल हे
नभ हे अउ थल हे
बड़ सुग्घर कहे हमर मनखे सियान
जल बिन सब सुन ए बात ला जान।5।
चलो पेड़ लगाबोन
पानी ला बचाबोन
मनखे किसान के सुसि ला बुतान
जीव-जंतु हमर भुंइया ला बचान...।6।
-चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

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