रविवार, 24 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

बड़ किमती ये पानी हे।
एकरे ले जिनगानी हे।
पानी ले बिहान होवत हे।
पानी ले स्नान होवत हे।
पानी ले तोर धियान होवत हे।
पानी ले बिज्ञान होवत हे।
पानी ले तइयार तोर,
खाय पीये के समान होवत हे।
पानी ल बरबाद कहुं करबे,
तंय रोबे तोर परान रोहि।
लइकन संग म सियान रोहि।
सरहद ले बीर जवान रोहि।
खेती के तीर किसान रोहि।
गांव के चतुरा कंतरी रोहि।
घुम-घुम के मंतरी रोहि।
माते गंजहा दरुहा रोहि।
कोठा ले गाय गरुवा रोहि।
उड़त-उड़त पुरवाई रोहि।
खड़े-खड़े रूखराई रोहि।
मंदीर ले पुजारी रोहि।
बिन लिपाय घरद्वारी रोहि।
कांदा मुराई संग बारी रोहि।
चपरासी संग करमचारी रोहि।
पानी बंचाय बर करिहो लाचारी।
एक-दुसर संग ईसगापारी।
नंदा जहि सब दुनियादारी।
फेर काकर करिहो रखवारी।
पानी के बरबादी ल रोकव।
जतेक जरूरत ओतकेच झोंकव।
बिछा जहि तोर सपना हीरा।
उघर जहि अंतस के पीरा।
जब रिसाजहि जलदेवति नीरा।
बोहा जहि कहुं भाग ले पानी।
हांथ ले बिहांथ होजहि जिनगानी।
किरिया खावन पानी बचायके,
पानी बचायबर उदीम रचायके।
बड़ किमती ये पानी हे।
एकरे ले जिनगानी हे।
रचना:---सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
शिक्षक पंचायत
गांव-गोरखपुर,कवर्धा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें