बुधवार, 11 मई 2016

पागा कलगी 9//चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

"ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि"
"""""""""""""""""""""""""""""""'"""""""
सुन भाई गरीब मनखे मन ल झन सता
अपन दबंगई अउ रहिसि ल झन जता
ठग मत झन कर काखरो ले मनमाने उगाहि
ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि।1।

गरीब मनखे मन गऊ कस सिधवा होथे गा
पइसा नई होय फेर उंखरो इज्जत होथे गा
ले डरे हे करजा गरीब हर धीरे बांधे छुटाहि
ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि।2।
कमाए खातिर रोजगार बर तरसत रहिथे
घर परिवार ला पोसे बर बड़ भटकत रहिथे
उंखर कोनो नई हे सुनईयाँ उन कोनला सुनाहि
ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि।3।
गरीब मनखे बर सरकार बनाए हे भारी योजना
चलत हे बन्दर बाँट नेता भरत हे अपन कोटना
रहिजा पांच बछर बाद फेर मुँह उठाके आहि
ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि।4।
भगवान् घर देर हे अंधेर नई हे कहे मनखे भाई
गरीब मनखे के करव मदद आवय हमरे भाई
कईथे जेन जइसे बोहि तेन तइसे फर ला पाहि
ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि।5।
चैतन्य जितेन्द्र तिवारी
थान खम्हरिया(बेमेतरा)

पागा कलगी 9//कुलदीप कुमार यादव

******** कँहा नंदागे********
खोजत खोजत मोर सरी उम्मर हा पहागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।

खेलत रेहेन बांटी-भौरा संग मा गुल्ली डंडा,
ऐ डारा वो डारा कुदके खेलन डंडा पचरंगा ।।
अब के लइका मन घर मा खुसरे रहिथे,
झन निकलहु घर ले बाहिर दाई-ददा हा कहिथे ।।
अउ जमाना हा तो किरकेट मा भुलागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
चउक चौराहा मा सियान मन के होवै हांसी-ठिठोली,
मंदरस सरिक मीठ लागै ओखर छत्तीसगढ़ी बोली ।।
अब ये भाखा ला बोले बर सबझिन हा शरमाथे,
एकरे खाये बर अउ ऐखरे चारी गोठियाथे ।।
सब मनखे अंगरेजी बोलके बिदेशिया ले ठगागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
भीजन ओइरछा पानी मा आये महीना सावन,
अउ डुबक-डुबक तरिया मा जाके हमन नहावन ।।
लहर-लहर लहरे पानी डोंगरी नरवा सरार मा,
सुग्घर बितय दिन हा हरियर हरियर कछार मा ।।
फेर अब पानी के दुकाल ले भुइंया हा दर्रागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
तइहा जमाना मा होवै हमर संगी मितान,
जुरमिल के रहिहो सिखावै हमर सियान ।।
कोन जनि ये छत्तीसगढ़ मा कइसन बरोड़ा आइस,
छिन भर मा सबो संसकिरिति ला लेके वो उड़ाइस ।।
अब मनखे ले मनखेपन के समंदर घलो अटागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे।
*****रचना*****
कुलदीप कुमार यादव
ग्राम-खिसोरा,धमतरी
मो.न-9685868975

पागा कलगी 9//ललित वर्मा

💐💐भोंदू-भवानी के गोठ💐💐
----------------------------------------------------------------
भवानी:का सोंचतहस भोंदू?
भोंदू:भईया,ये कोई विषय नही ह का हरे गा?
भवानी:काबर पूछथस भाई?
भोंदू:ए पागा कलगी वाले मन उही कोई बिसय नही ल बिसय बनाके रचना पोहे बर कहे हे गा
भवानी:अच्छा,अइसन बात हे,त सुन-कोई बिसय नही माने-निर्विषय,निमगा कोरा कागज,या दरपन या एकदम फरियाय पानी
भोंदू:नई समझ आते भईया,बने फोर के बता न गा?
भवानी:ले,सुन त

निमगा कोरा कागज,जेमा कांही लिखाय नई राहय
दरपन अइसन,जेमा कोनो आकार नई राहय
फरियाय पानी,जेमा भीतर के सबकुछ दिखय
अंतस अइसन राहय जी,जेला कहिथे निर्विषय
भोंदू:अभो नई समझेंव भईया,अउ फोर न गा
भवानी:ले,बने धियान देके सुन
जीव अउ ईश्वर बीच भाई, माया के हे खेल
राग-द्वेष ईर्ष्या-तृष्णा के,मचे हे रेलमपेल
अंतस होगेहे काजरे-काजर, घस-घस एला मिटाबोन
छल-कपट के घपटेेहे बादर, जेला फूक-फूक भगाबोन
अच्छा करम ल करबोन संगी, सत के संग हम जाबोन
मानवता के रद्दा चलबोन, अंतस ल फरियाबोन
कोरा अंतस म भक्ती के, सादा लकीर बनाबोन
ढाई-अक्छर परेम के लिखबोन,पढबोन अउ पढाबोन
दरपन जईसे निरमल अंतस के, ब्यवहार होथे निसानी
सूर-तुलसी घलो गाये हाबय, निरमल-अंतस बानी
नानक-कबीर-सहजो-मीरा, सबके इही कहानी
समझे भोंदू?
भोंदू:हां भवानी,जय हो भवानी
-----------------------------------------------------------------
रचना - ललित वर्मा छुरा गरियाबंद

पागा कलगी 9//मिलन मलरिहा

**आखरी बेरा**
"""""""""""""""""""
काबर मति छरियाथच बबा
तोरगोठ कोनो नइ मानय जी
उमर खसलगे झीन गुन तैहा
बिगड़य चाहे बनय जी
दिन उंकरे हे मानले तय
संसो टार चुप देखव जी
करेनधक सियानी नवाजूग हे
कलेचुप किस्सा सुनव जी
तोर बनाए नइ बनय कछु
फेर का बात के मोह तोला
का बात के मया जी
का बात के गरभ हे सियान
मोला तय बताना जी......
.
कतेक रुपिया कतेक पईसा
कतेक साईकिल गाड़ा भईसा
ए जिनगी के ठुड़गा बमरी
एकदिन चुल्हा म जोराही
जाए के बेरा अकेल्ला जाबे
कोनो संग म नई जाही
जिनगी के आखरी बेरा
सब्बो दूरिहा हट जाही
दूई दिन रो-गा के ओमन
महानदि म तोला फेक आही
दसनहावन म जम्मो जुरके
तोर बरा सोहारी ल चाबही
फेर का बात....................
.
तय ह सिधवा गियानी बने
लईका होगे आने- ताने
चारो कोती तय मान कमाएँ
नाती-पोती सब धूम मचाएँ
बनी-भूति, कमा-कोड़ के
खेत बारी-भाठा ल सकेले
टूरा-टूरी फटफटी खातिर
छिनभर म ओला ढकेले
तोर खुन-पसीना के कमाई
किम्मत दूसर का जानय जी
फेर का बात....................
.
गाँव गाँव तोर गियान फइले
घरो-घर तोर बात म चले
अपन घर-छानही धूर्रा मईले
जइसे दिया तरी मुंधियार पेले
अब कब आही तोर घर अंजोर
बइठके डेहरी करत सोंच
अंगाकर रोटी ल टोर-टोर
चार कोरी बेरा जिनगी पहागे
नाती छंती के दिन आगे
अब बनावय चाहे बिगाड़य जी
फेर का बात....................

)
मिलन मलरिहा
मल्हार, बिलासपुर

पागा कलगी 9//रामेश्वर शांडिल्य

नवा बहुरिया
दाई ददा के कोरा म इतरात रहे ओ ऩ
खेले कूदे के उमर म ससुरार आगे ओ ऩ
छुटगे संग भाई बहिनी के.
दाई ददा के कोरा ऩ
छुटगे संग सखी सहेली के.
घर अंगना गाव के खोरा ऩ
ससुरार म मुड ढाके लजात रहे ओ ऩ
खेले कूदे के उमर म ससुरार आगे ओ ऩ
मइके म फूल कस महमहावत रहे.
पारा पारा म तितली कस मडरावत रहे ऩ
ससुरार म आके समझदार होगे ओ ऩ
खेले कूदे के उमर म ससुरार आगे ओ ऩ
सास ननद करा मइके के.
गोठ गोठियात रहे.
अपन गांव के कुकूर ल.
सहरात रहे.
तेार गोठ ल सुन ननद खिसियात रहे ओ ऩ
दाई ददा के कोरा म इतरात रहे ओ ऩ
रामेश्वर शांडिल्य
हरदीबाजार कोरबा

पागा कलगी 9//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

--: परचे देवत रूख :--
...गीत....
मोर नाव हे बीरवा रुखवा ..
गांव के उत्ती म मोर ठिकाना हे।
मोर संग पिरित के गठरी ल जोरके,
जिनगी के बछर बिताना हे,जिनगी के बछर बिताना हे।
मोर नांव हे बीरवा रूखवा ,
गांव के उत्ती म मोर ठिकाना हे।
'१' उवत सूरुज संग भोजन बनाथव,
जीव जन्तु ल खवाथव...।
कुहरा धुआं ल पियत रहिथव,
सुघर हवा बगराथव...।
हरियर-हरियर गीत मै गाथव...
हरियर-हरियर गीत मै गाथव,
मोर संग सबो ल गाना हे,मोर संग सबो ल गाना हे।
मोर नांव हे .........
'२' मोर सुघ्घर फूल मोर गुरतुर फल,
लकड़ी घलो ल बउरत हव...।
कागज कपड़ा अवषधि तरकारी,
चटनी घलो ल संउरत हव...।
पर उपकार के मोर करतब ल..
पर उपकार के मोर करतब ल,
जम्मो झन ल बताना हे,जम्मो झन ल बताना हे।
मोर नांव हे........
'३' भुमि ल बांध अपरदन रोकव,
पानी घलो बलाथव...।
जल थल अउ वायु परदुषन ल,
दूर भगाथव...।
माटि म मिलके संगवारी...
माटि म मिलके संगवारी,
तुंहरेच काम मे आना हे,तुंहरेच काम मे आना हे।
मोर नांव हे बीरवा रूखवा,
गांव के उत्ती म मोर ठिकाना हे...।
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा
९६८५२१६६०२

शनिवार, 7 मई 2016

पागा कलगी 9//राजेश कुमार निषाद

मोर जनम देवईया दाई
तोला खोजंव कति कति।
तै हावस ओ एति ओति
मैं तोला खोजंव कति कति।
नौ महीना ले अपन कोख म
रखे ओ मोला जतन के।
पांच बरस के होवत ले
दूध पिलाये अपन तन के।
कोख ले अपन जनम दे हस मोला
लाख लाख पीड़ा ल सहिके।
किसम किसम के मोला भोजन कराये हस
अपन लांघन भूखन रहिके।
कतेक तै दुख सहे ओ मोर सति
मोर जनम देवईया दाई
तोला खोजंव कति कति।
नान्हे पन ले मैं तोर दुलरवा रेहेंव
नई जानेंव तोर दुलार ओ।
कतेक मैं रोवंव चिल्लावंव
पर देवस तै भुलार ओ।
तोर मया के कतेक करंव बखान
पांव पखारंव तोर कोटि कोटि
मोर जनम देवईया दाई
तोला खोजंव कति कति।
अंगरी धर के चले बर मोला
दाई तहीं हर सिखाये हस।
मैं तोर लईका दुलरवा दाई
गली खोर म घुमाये हस।
महिमा तोर निराली दाई
तोर गुण ल गावंव सबो कोति
मोर जनम देवईया दाई
तोला खोजंव कति कति।

रचनाकार÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद (समोदा )