शनिवार, 7 मई 2016

पागा कलगी 9//राजेश कुमार निषाद

मोर जनम देवईया दाई
तोला खोजंव कति कति।
तै हावस ओ एति ओति
मैं तोला खोजंव कति कति।
नौ महीना ले अपन कोख म
रखे ओ मोला जतन के।
पांच बरस के होवत ले
दूध पिलाये अपन तन के।
कोख ले अपन जनम दे हस मोला
लाख लाख पीड़ा ल सहिके।
किसम किसम के मोला भोजन कराये हस
अपन लांघन भूखन रहिके।
कतेक तै दुख सहे ओ मोर सति
मोर जनम देवईया दाई
तोला खोजंव कति कति।
नान्हे पन ले मैं तोर दुलरवा रेहेंव
नई जानेंव तोर दुलार ओ।
कतेक मैं रोवंव चिल्लावंव
पर देवस तै भुलार ओ।
तोर मया के कतेक करंव बखान
पांव पखारंव तोर कोटि कोटि
मोर जनम देवईया दाई
तोला खोजंव कति कति।
अंगरी धर के चले बर मोला
दाई तहीं हर सिखाये हस।
मैं तोर लईका दुलरवा दाई
गली खोर म घुमाये हस।
महिमा तोर निराली दाई
तोर गुण ल गावंव सबो कोति
मोर जनम देवईया दाई
तोला खोजंव कति कति।

रचनाकार÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद (समोदा )

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