बुधवार, 11 मई 2016

पागा कलगी 9//ललित वर्मा

💐💐भोंदू-भवानी के गोठ💐💐
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भवानी:का सोंचतहस भोंदू?
भोंदू:भईया,ये कोई विषय नही ह का हरे गा?
भवानी:काबर पूछथस भाई?
भोंदू:ए पागा कलगी वाले मन उही कोई बिसय नही ल बिसय बनाके रचना पोहे बर कहे हे गा
भवानी:अच्छा,अइसन बात हे,त सुन-कोई बिसय नही माने-निर्विषय,निमगा कोरा कागज,या दरपन या एकदम फरियाय पानी
भोंदू:नई समझ आते भईया,बने फोर के बता न गा?
भवानी:ले,सुन त

निमगा कोरा कागज,जेमा कांही लिखाय नई राहय
दरपन अइसन,जेमा कोनो आकार नई राहय
फरियाय पानी,जेमा भीतर के सबकुछ दिखय
अंतस अइसन राहय जी,जेला कहिथे निर्विषय
भोंदू:अभो नई समझेंव भईया,अउ फोर न गा
भवानी:ले,बने धियान देके सुन
जीव अउ ईश्वर बीच भाई, माया के हे खेल
राग-द्वेष ईर्ष्या-तृष्णा के,मचे हे रेलमपेल
अंतस होगेहे काजरे-काजर, घस-घस एला मिटाबोन
छल-कपट के घपटेेहे बादर, जेला फूक-फूक भगाबोन
अच्छा करम ल करबोन संगी, सत के संग हम जाबोन
मानवता के रद्दा चलबोन, अंतस ल फरियाबोन
कोरा अंतस म भक्ती के, सादा लकीर बनाबोन
ढाई-अक्छर परेम के लिखबोन,पढबोन अउ पढाबोन
दरपन जईसे निरमल अंतस के, ब्यवहार होथे निसानी
सूर-तुलसी घलो गाये हाबय, निरमल-अंतस बानी
नानक-कबीर-सहजो-मीरा, सबके इही कहानी
समझे भोंदू?
भोंदू:हां भवानी,जय हो भवानी
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रचना - ललित वर्मा छुरा गरियाबंद

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