बुधवार, 11 मई 2016

पागा कलगी 9//कुलदीप कुमार यादव

******** कँहा नंदागे********
खोजत खोजत मोर सरी उम्मर हा पहागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।

खेलत रेहेन बांटी-भौरा संग मा गुल्ली डंडा,
ऐ डारा वो डारा कुदके खेलन डंडा पचरंगा ।।
अब के लइका मन घर मा खुसरे रहिथे,
झन निकलहु घर ले बाहिर दाई-ददा हा कहिथे ।।
अउ जमाना हा तो किरकेट मा भुलागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
चउक चौराहा मा सियान मन के होवै हांसी-ठिठोली,
मंदरस सरिक मीठ लागै ओखर छत्तीसगढ़ी बोली ।।
अब ये भाखा ला बोले बर सबझिन हा शरमाथे,
एकरे खाये बर अउ ऐखरे चारी गोठियाथे ।।
सब मनखे अंगरेजी बोलके बिदेशिया ले ठगागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
भीजन ओइरछा पानी मा आये महीना सावन,
अउ डुबक-डुबक तरिया मा जाके हमन नहावन ।।
लहर-लहर लहरे पानी डोंगरी नरवा सरार मा,
सुग्घर बितय दिन हा हरियर हरियर कछार मा ।।
फेर अब पानी के दुकाल ले भुइंया हा दर्रागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
तइहा जमाना मा होवै हमर संगी मितान,
जुरमिल के रहिहो सिखावै हमर सियान ।।
कोन जनि ये छत्तीसगढ़ मा कइसन बरोड़ा आइस,
छिन भर मा सबो संसकिरिति ला लेके वो उड़ाइस ।।
अब मनखे ले मनखेपन के समंदर घलो अटागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे।
*****रचना*****
कुलदीप कुमार यादव
ग्राम-खिसोरा,धमतरी
मो.न-9685868975

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