शनिवार, 14 मई 2016

पागा कलगी 9// सुनील साहू"निर्मोही"

"काय कमी हे तोर म"
राम के माया राम देखाए,
लीला ओखर निराला हे।
सबला दिए हे जिनगी जिए बर,
कहे करम के जिनगी उजाला हे।
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मनखे जेखर हाथ नई हे,
का कांही कुछु कमात नई हे,
हाथ रहईया मनखे ल घलौ।
मैं ठलहा बईठत देखे हव।
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ठट्ठा मुट्ठा मजाक करत हस,
नाम क अपन खराब करत हस,
नई हे का तोर गोड़ हाथ,
करे सकच नही गोठ बात,
गोड़ रहईया मनखे ल घलौ।
मैं आँखी म घिसलत देखे हव।
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कान रहईया मनखे ल देख,
भैरा कस अईठत देखे हव।
जेन कखरो बात ल नई टारय,
मैं अईसन भैरा देखे हव।
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मुह दिए भगवान जेला ओला,
घर म आगि लगावत देखे हव।
जेला समझे सब भोकवा मनखे,
ओला मया बगरावत देखे हव।
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जेखर मेर कमी नई हे,
ओ कमी ल गिनावत हे।
अउ जेखर मेर कमी हे,
ओहि करम के भाग जगावत हे।
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सुनील साहू"निर्मोही"
ग्राम -सेलर
जिला-बिलासपुर
मो.8085470039

पागा कलगी 9//ललित साहू "जख्मी"

"जीव करत हे जांव-जांव"
मरघट के लकडी बेचा गे
मंहगाई मे फुल गे हांथ-पांव
चारो मुडा हाहाकार मचे हे
नेता मन करत हे खांव-खांव
एक जुआर बर रोटी नई हे
नई हे बिता भर छंईहा ठांव
सिधवा बिचारा दुबके बईठे
कोलिहा मन करत हे हांव-हांव
साधु के चोला होगे दगहा
परभु के कोन जपवाही नाव
बडे छोटे के फेर मे ये दुनिया
मईनखे करत हे कांव-कांव
भाई बैरी परोसी ढोंगी होगे
पातर होगे ममता के छांव
मया पिरीत के लजलजहा गोठ
सुने ला मिलत हे गांव-गांव
कलजुग मे लबरा दोगला हमाय
परमारथ करों ते करों के घांव
भरोसा के रद्दा पट सुन परे हे
मितान के खोर करत हे सांव-सांव
गाडी चलात हे आंखी मुंद के
हारन बजावत हे चींव-चांव
ऊपर चित्रगुप्त खाता लिखत हे
यमराज कहात हे आंव-आंव
नसा मानुस के मन भरमाये
चलत हे फड मे जुंआ के दांव
बिमारी पसरे कोंटा-कोंटा मे
जीव करत हे अब जांव-जांव
रचनाकार-
ललित साहू "जख्मी"
ग्राम-छुरा
जिला-गरियाबंद
9144992879

पागा कलगी 9//देव हीरा लहरी

गरमी मे हाहाकार
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गरमी ले जम्मो कोती
अब्बड़ मचत हे हाहाकार
जईसे सुरूज देवता ह
गुस्सा म करत हे ललकार

बहुत होगे प्रभु दिखा जा
अपन कुछू चमत्कार
अब तो हमरो ईही कहना
हे ये मउसम हे बेकार
सबो झन झांझ ले बचे
के कर लव बने धियान
घाम म घर ले झन
निकलहु लईका,सियान
अतेक कलकल गरमी
ले कब मिलही निदान
लु लग जाही घाम म
जादा झन घुमबे मितान
चिरई चुरगुन मरत हे
झन कर प्रभु अतेक आहत
भगादे प्रभु गरमी ल देजा
जिनगी म कुछू राहत
गरमी म तीप गेहे मोर
नाक मुह अऊ कान
अब कतेक ल लिखव में
होगे हव हलाकान
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रचना - देव हीरा लहरी
चंदखुरी फार्म रायपुर

पागा कलगी 9//आशा देशमुख

धरती के गोहार
झन बेचव गा धरती ला
मोर किसान बेटा ,मैं बिनती करत हव
मोर सिधवा बेटा ,मैं बिनती करत हव

पुरखा मन हा संजो के राखिस
तहुँ हा मोला संजो ले
बिन भाखा के मोरो बोली
मन मा अपन भंजो ले
ये माटी चंदन अय बेटा
माथ म अपन लगा ले
डार पसीना ये माटी मा
जिनगी अपन बनाले
दाई ददा हे घन अमरैया
झन फेकव गा गरती ला
मोर किसान बेटा ,मैं बिनती करत हौ
जंगल झाड़ी खेत खार हा
मोर गहना गुरिया अय
तुंहर पसीना तुंहरे मेहनत
रहय के मोर कुरिया अय
वो दिन दूरिहा नई हे गा
रीत जाही धान कटोरा
बचाले ग कोठी डोली ला
झन कर बखत अगोरा
लालच के टंगिया मा गा
झन काटव रुख फरती ला
मोर किसान बेटा ,मैं बिनती करत हौ
तिही बता गा दू रुपिया मा
कब तक चऊर खवाही
अलग अलग राजा आही गा
कानून अलग बनाही
जांगर तोर जंग लग जाही ता
का उदीम तैँ करबे
लोग लइका के जिनगानी ला
उज्जर कइसे करबे
तोरेच घर मा बनाके बंधुआ
तोला दिही ग झरती ला
मोर किसान बेटा , मैं बिनती करत हौ
झन बेचव गा धरती ला
-आशा देशमुख

बुधवार, 11 मई 2016

पागा कलगी 9//चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

"ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि"
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सुन भाई गरीब मनखे मन ल झन सता
अपन दबंगई अउ रहिसि ल झन जता
ठग मत झन कर काखरो ले मनमाने उगाहि
ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि।1।

गरीब मनखे मन गऊ कस सिधवा होथे गा
पइसा नई होय फेर उंखरो इज्जत होथे गा
ले डरे हे करजा गरीब हर धीरे बांधे छुटाहि
ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि।2।
कमाए खातिर रोजगार बर तरसत रहिथे
घर परिवार ला पोसे बर बड़ भटकत रहिथे
उंखर कोनो नई हे सुनईयाँ उन कोनला सुनाहि
ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि।3।
गरीब मनखे बर सरकार बनाए हे भारी योजना
चलत हे बन्दर बाँट नेता भरत हे अपन कोटना
रहिजा पांच बछर बाद फेर मुँह उठाके आहि
ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि।4।
भगवान् घर देर हे अंधेर नई हे कहे मनखे भाई
गरीब मनखे के करव मदद आवय हमरे भाई
कईथे जेन जइसे बोहि तेन तइसे फर ला पाहि
ज्यादा झन इतरा एक दिन तोरो पारी आहि।5।
चैतन्य जितेन्द्र तिवारी
थान खम्हरिया(बेमेतरा)

पागा कलगी 9//कुलदीप कुमार यादव

******** कँहा नंदागे********
खोजत खोजत मोर सरी उम्मर हा पहागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।

खेलत रेहेन बांटी-भौरा संग मा गुल्ली डंडा,
ऐ डारा वो डारा कुदके खेलन डंडा पचरंगा ।।
अब के लइका मन घर मा खुसरे रहिथे,
झन निकलहु घर ले बाहिर दाई-ददा हा कहिथे ।।
अउ जमाना हा तो किरकेट मा भुलागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
चउक चौराहा मा सियान मन के होवै हांसी-ठिठोली,
मंदरस सरिक मीठ लागै ओखर छत्तीसगढ़ी बोली ।।
अब ये भाखा ला बोले बर सबझिन हा शरमाथे,
एकरे खाये बर अउ ऐखरे चारी गोठियाथे ।।
सब मनखे अंगरेजी बोलके बिदेशिया ले ठगागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
भीजन ओइरछा पानी मा आये महीना सावन,
अउ डुबक-डुबक तरिया मा जाके हमन नहावन ।।
लहर-लहर लहरे पानी डोंगरी नरवा सरार मा,
सुग्घर बितय दिन हा हरियर हरियर कछार मा ।।
फेर अब पानी के दुकाल ले भुइंया हा दर्रागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
तइहा जमाना मा होवै हमर संगी मितान,
जुरमिल के रहिहो सिखावै हमर सियान ।।
कोन जनि ये छत्तीसगढ़ मा कइसन बरोड़ा आइस,
छिन भर मा सबो संसकिरिति ला लेके वो उड़ाइस ।।
अब मनखे ले मनखेपन के समंदर घलो अटागे,
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे ।।
कोन जनी वो दिन हा अब कँहा नंदागे।
*****रचना*****
कुलदीप कुमार यादव
ग्राम-खिसोरा,धमतरी
मो.न-9685868975

पागा कलगी 9//ललित वर्मा

💐💐भोंदू-भवानी के गोठ💐💐
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भवानी:का सोंचतहस भोंदू?
भोंदू:भईया,ये कोई विषय नही ह का हरे गा?
भवानी:काबर पूछथस भाई?
भोंदू:ए पागा कलगी वाले मन उही कोई बिसय नही ल बिसय बनाके रचना पोहे बर कहे हे गा
भवानी:अच्छा,अइसन बात हे,त सुन-कोई बिसय नही माने-निर्विषय,निमगा कोरा कागज,या दरपन या एकदम फरियाय पानी
भोंदू:नई समझ आते भईया,बने फोर के बता न गा?
भवानी:ले,सुन त

निमगा कोरा कागज,जेमा कांही लिखाय नई राहय
दरपन अइसन,जेमा कोनो आकार नई राहय
फरियाय पानी,जेमा भीतर के सबकुछ दिखय
अंतस अइसन राहय जी,जेला कहिथे निर्विषय
भोंदू:अभो नई समझेंव भईया,अउ फोर न गा
भवानी:ले,बने धियान देके सुन
जीव अउ ईश्वर बीच भाई, माया के हे खेल
राग-द्वेष ईर्ष्या-तृष्णा के,मचे हे रेलमपेल
अंतस होगेहे काजरे-काजर, घस-घस एला मिटाबोन
छल-कपट के घपटेेहे बादर, जेला फूक-फूक भगाबोन
अच्छा करम ल करबोन संगी, सत के संग हम जाबोन
मानवता के रद्दा चलबोन, अंतस ल फरियाबोन
कोरा अंतस म भक्ती के, सादा लकीर बनाबोन
ढाई-अक्छर परेम के लिखबोन,पढबोन अउ पढाबोन
दरपन जईसे निरमल अंतस के, ब्यवहार होथे निसानी
सूर-तुलसी घलो गाये हाबय, निरमल-अंतस बानी
नानक-कबीर-सहजो-मीरा, सबके इही कहानी
समझे भोंदू?
भोंदू:हां भवानी,जय हो भवानी
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रचना - ललित वर्मा छुरा गरियाबंद