शनिवार, 14 मई 2016

पागा कलगी 9//आशा देशमुख

धरती के गोहार
झन बेचव गा धरती ला
मोर किसान बेटा ,मैं बिनती करत हव
मोर सिधवा बेटा ,मैं बिनती करत हव

पुरखा मन हा संजो के राखिस
तहुँ हा मोला संजो ले
बिन भाखा के मोरो बोली
मन मा अपन भंजो ले
ये माटी चंदन अय बेटा
माथ म अपन लगा ले
डार पसीना ये माटी मा
जिनगी अपन बनाले
दाई ददा हे घन अमरैया
झन फेकव गा गरती ला
मोर किसान बेटा ,मैं बिनती करत हौ
जंगल झाड़ी खेत खार हा
मोर गहना गुरिया अय
तुंहर पसीना तुंहरे मेहनत
रहय के मोर कुरिया अय
वो दिन दूरिहा नई हे गा
रीत जाही धान कटोरा
बचाले ग कोठी डोली ला
झन कर बखत अगोरा
लालच के टंगिया मा गा
झन काटव रुख फरती ला
मोर किसान बेटा ,मैं बिनती करत हौ
तिही बता गा दू रुपिया मा
कब तक चऊर खवाही
अलग अलग राजा आही गा
कानून अलग बनाही
जांगर तोर जंग लग जाही ता
का उदीम तैँ करबे
लोग लइका के जिनगानी ला
उज्जर कइसे करबे
तोरेच घर मा बनाके बंधुआ
तोला दिही ग झरती ला
मोर किसान बेटा , मैं बिनती करत हौ
झन बेचव गा धरती ला
-आशा देशमुख

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