शनिवार, 14 मई 2016

पागा कलगी 9//ललित साहू "जख्मी"

"जीव करत हे जांव-जांव"
मरघट के लकडी बेचा गे
मंहगाई मे फुल गे हांथ-पांव
चारो मुडा हाहाकार मचे हे
नेता मन करत हे खांव-खांव
एक जुआर बर रोटी नई हे
नई हे बिता भर छंईहा ठांव
सिधवा बिचारा दुबके बईठे
कोलिहा मन करत हे हांव-हांव
साधु के चोला होगे दगहा
परभु के कोन जपवाही नाव
बडे छोटे के फेर मे ये दुनिया
मईनखे करत हे कांव-कांव
भाई बैरी परोसी ढोंगी होगे
पातर होगे ममता के छांव
मया पिरीत के लजलजहा गोठ
सुने ला मिलत हे गांव-गांव
कलजुग मे लबरा दोगला हमाय
परमारथ करों ते करों के घांव
भरोसा के रद्दा पट सुन परे हे
मितान के खोर करत हे सांव-सांव
गाडी चलात हे आंखी मुंद के
हारन बजावत हे चींव-चांव
ऊपर चित्रगुप्त खाता लिखत हे
यमराज कहात हे आंव-आंव
नसा मानुस के मन भरमाये
चलत हे फड मे जुंआ के दांव
बिमारी पसरे कोंटा-कोंटा मे
जीव करत हे अब जांव-जांव
रचनाकार-
ललित साहू "जख्मी"
ग्राम-छुरा
जिला-गरियाबंद
9144992879

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