शनिवार, 11 जून 2016

पागा कलगी-11//सूर्यकांत गुप्ता

बेटी ला शिक्षा अउ सन्सकार दौ
बिन शिक्षा सँसकार के, जिनगी बिरथा जान।
मानुस तन हम पाय हन, बन के रहन सुजान।।
बेटा अउ बेटी घलो, शिक्षा के हकदार।
संस्कार के आज हे, दूनो ला दरकार।।
नर नारी बिन जगत के, रचना कइसे होय।
कोख म बेटी जान के, मनखे काबर रोय।।
दाई देवी मान के, पूजौ पथरा चित्र।
घर मा ओकर प्रान के, काबर भूखे मित्र।।
मन के मैला ला घुरुवा मा डार दौ।
बेटी ला शिक्षा सँसकार दौ।।
देखौ बेटी मन बढ़ चढ़ के कइसे आघू आइन।
जीवन के हर क्षेत्र मा देखौ कइसे नाव कमाइन।।
रानी लछमी के कुरबानी कइसे कउनो भुलाही।
मदर टेरेसा के ममता के सबला सुरता आही।।
अंतरिक्ष के सैर करइया कल्पना भर नोहै।
बेटी कल्पना चावला नाव जगत मा सोहै।।
खेल जगत मा चमकिन बेटी, सानिया सायना जानौ।
मेरी कॉम के बॉक्सिंग क्षमता काबर नइ पहिचानौ।।
शासन के तो सबो महकमा, बिटिया मने सम्हालैं।
मऩोरंजन के छेत्र मा देखौ, डंका अपन बजालैं।।
कतका कतका नाँव गनावौं, लंबा हावै सूची।
मानैं इँखर जीवन शैली, सफल होय के कूची।
फेसन संग मरजादा अउ सालीनता अपनालौ।
दुराचार व्यभिचार ले भाई, बेटी मन ल बचा लौ।।
अलग अलग कर्तव्य निभाथे, मइके ससुरे बेटी।
सबके सुख दुख मा तो आखिर कामेच आथे बेटी।।
मन ले दाई ददा सबो झन, बेटी के अवतार दौ।
ओकर सदा सुखी जीवन बर शिक्षा अउ संस्कार दौ।।
जय जोहार...
सूर्यकांत गुप्ता
1009 लता प्रकाश,
वार्ड नं. 21, सिंधिया नगर
दुर्ग (छ. ग.)

पागा कलगी-11//सुधा देवांगन

बेटी बर सिक्छा अऊ
संस्कार
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विकसित होथे दुनिया देश समाज,
बेटा ले बंस बेल बाढ़थे किथें
दुनिया के अजब होगे रिवाज।
बेटी ददा के दुलारी,दाई के संगवारी ए ,
भाई बर मया,सनेह के छलकत
गंगार ए।
बेटा ले कम झन समझव,नो है
धरती के भार
बेटी हे धरती के आधार।
दु आखर पढ़ लिख लिही नई
जावय बेकार,
ओ हर कोयली ए बोहावत रसधार,
ओकय ले हावय जिनगी मेरी झनकार।
दु कुल के मान बढ़ाथे दूर होथे
अंधियार,
बेटी ह थामहे हावय संसकीरिती
अऊ संसकार।।
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सुधा देवांगन
क्वा. नं.--99/B/1
बालको नगर कोरबा
(छ. ग.)

पागा कलगी-11//ललित साहू "जख्मी"

"बेटी के सिक्छा अऊ संस्कार"
जेखर कोरा ले जनम धरेंन
वो दाई के सम्मान जरुरी हे
जेखर दम ले दुनिया टिके हे
वो नारी के पहिचान जरुरी हे
बेटी करही अंजोर ये जग मा
फेर पहिली सिक्छा के दान जरुरी हे
समाज के सुग्घर आघू बढ़े बर
बेटी ला संस्कार के वरदान जरुरी हे
भेदभाव मेटा के बेटी-बेटा ला
एक समझईया खानदान जरुरी हे
रद्दा भटकत लोग लईका मन बर
हमर संस्कृति के गियान जरुरी हे
देवव ऊंच ले ऊंच सिक्छा बेटी ला
बेटी के अब बढ़ाना मान जरुरी हे
देवव संस्कार जनम ले हर बेटी ला
कलजुग मा देना धियान जरुरी हे
अब बंद करो ननपन के बिहाव
बिधवा के फेर अब बिहाव जरुरी हे
लेसईस गोसान संग आगी मे नारी
कुरीति के खच्चित मेटाव जरुरी हे
जम्मो समझे जम्मो बात ला अइसन
समाज मा सिक्छा आना जरुरी हे
बेटी जिनगी के पहिली अधार हरे
वोखर सिक्छा,संस्कार पाना जरुरी हे
रचनाकार - ललित साहू "जख्मी"
ग्राम - छुरा
जिला- गरियाबंद (छ.ग.)
9144992879

पागा कलगी-11//चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

"बेटी ला शिक्षा अउ संस्कार दव"
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बेटी पढ़य अउ बेटी बढ़य
अइसन शिक्षा अउ संस्कार दव ।1।
पढ़ लिख के बनय आत्मनिर्भर
अइसन सुग्घर ज्ञान के भण्डार दव ।2।
अरे झन मारव बेटी ला गरभ म
झन करव महापाप, जीवनदान दव ।3।
बेटी करत हे अब बेटा कस काम
थामौ ओखर हाँथ दुनिया म आन दव ।4।
घर म हे नारी त सुख हे बड़ भारी
समझ मरम ला ए बात म धियान दव ।5।
बेटी हमर नौ कन्या इही दुर्गा दाई
झन समझौ अबला,मान सम्मान दव ।6।
नारी के महिमा पुरान सुनावत हे
मनखे कहत हे अउ कईसे परमान दव ।7।
भगवान घलोक अब गुनत होही
कइसे समझावव अउ का सद्ज्ञान दव।8।
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ मुहिम ला
चलव जम्मों जुर मिल के अब साथ दव ।9।
अरे अब तो जागव अउ जगावव
भेदभाव ला मिटाए बर हाथ म हाथ दव ।10।
चैतन्य जितेन्द्र तिवारी
थान खम्हरिया(बेमेतरा)

पागा कलगी-11 //सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

बेटी ल दौ शिक्षा अउ संगे संस्कार दुलार,
भरजै खुशी अपार बेटी के घर द्वार ग।
बहरी सूपा छोड़ाव हाथ कलम धराव,
लिखके अपन भाग पांवय अधिकार ग।
बेटी बर कापी पेन बेटी जेन मांगे तेन,
कमी मत होय कभु बेटी बर दुलार ग।
बेटी कोनो श्राप नोहे बेटी पुन पाप नोहे,
बेटी मन आवय जी कीमती उपहार ग।
बेटी बिना जग सुन्ना बेटी बिना दुख दुन्ना,
बेटी के बिना तो संगी जिनगी निराधार ग।
बेटी पढ़ही लिखही संगे संस्कार गढ़ही,
उमर भर रयिही जिनगी के तिहार ग।
सीमा म जवान बन हाथ म धरही गन।
दुश्मन देख डेराही दुर्गा के अवतार ग।
नेता मंत्री यंत्री बन चलहीं जनता संग,
समानता बिकास के तभे बोहाही धार ग।
बेटी ल मिलही मान बेटी होयके सम्मान,
चारो मुड़ा खुशी छाही कुलकही संसार ग।
डोंगा बनही संस्कार शिक्षा हर पतवार,
दु ठन कुल के नैया बेटी लगाही पार ग।
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर 'शिक्षक'
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602

पागा कलगी-11//आचार्य‬ तोषण

शिक्षा अउ संस्कार के पहिली बेटी जग म आय
मया भरे डेरोठी चिरई सही चींव चींव चहचहाय
बेटी हे तभे हमर जिनगी हे ए पूनित धराधाम म
पढ़े लिखे गुणी मुनी ल काबर समझ नइ आय
बेटा पाए के आस म बेटी ल कोख म मारत हस
शिक्षा अउ संस्कार दौ काबर गोहार पारत हस
वाह रे पढ़े लिखे परबुधिया नइहे थोरकन बुध
बेटा-बेटी एक समान कहिके सेखी बघारत हस
बोली अइसन बोलव मत जेखर न कोनो अर्थ हे
ऊंच शिक्षा ऊंचहा बिचार संस्कार बिन बियर्थ हे
मया बेटा बर आनी बानी बेटी के थोर नइहे सुध
शिक्षा-संस्कार दे बेटी ल थोरकन नइ समर्थ हे
खडे कर दे पढ़ा लिखा बना बेटी ल तै हुंशियार
सीता जीजा मनु जइसन कुटके भरदे तै संस्कार
भरत भूमि के मान बढही फक्र करही हिन्दुस्थान
कल्पना सही उडाही नभ म फैलही जग उजियार
लहर-लहर लहरावै नभ म बेटी सही परचम नइहे
पढ़ा लिखा तै बेटी ल अउ दुसर कोई धरम नइहे
बरत रहे नित दीया सरी चमकत रहे चंदा असन
बांटै जग ल ए परकाश बेटी सूरूज ले कम नइहे
"बेटी बचाओ बेटी पढाओ"
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‪#‎आचार्य‬ तोषण
धनगांव डौंडीलोहारा
बालोद छत्तीसगढ़

पागा कलगी-11 //शुभम वैष्णव

हाइकु-
बेटी ल सब,
सिक्छा संसकार दे,
पहिली तैं ह।
तोर मेर तो,
पइसा बहुँत हे,
बेटी ल पढ़ा।
ओला तो अब
जनम के दुखिया,
मत बना ग।
तोर घर म,
बेटी ह अनपड़,
काबर हे ग।
शरम कर,
जग रचइया के,
हाल ल देख।
लाचार नोहय,
जगतजननी ए,
साक्षात् बेटी।
शुभम वैष्णव
ग्राम-भीमपुरी नवागढ़
जिला-बेमेतरा