शनिवार, 11 जून 2016

पागा कलगी-11//सुधा देवांगन

बेटी बर सिक्छा अऊ
संस्कार
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विकसित होथे दुनिया देश समाज,
बेटा ले बंस बेल बाढ़थे किथें
दुनिया के अजब होगे रिवाज।
बेटी ददा के दुलारी,दाई के संगवारी ए ,
भाई बर मया,सनेह के छलकत
गंगार ए।
बेटा ले कम झन समझव,नो है
धरती के भार
बेटी हे धरती के आधार।
दु आखर पढ़ लिख लिही नई
जावय बेकार,
ओ हर कोयली ए बोहावत रसधार,
ओकय ले हावय जिनगी मेरी झनकार।
दु कुल के मान बढ़ाथे दूर होथे
अंधियार,
बेटी ह थामहे हावय संसकीरिती
अऊ संसकार।।
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सुधा देवांगन
क्वा. नं.--99/B/1
बालको नगर कोरबा
(छ. ग.)

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