रविवार, 19 जून 2016

पागा कलगी-12/13/ललित साहू "जख्मी"

"लकड़ी चोरहा" (बियंग)
अरे टूरा कहां जात हस रे
टंगिया धर के मटमटात हस रे
गोंदे तो रा एको ठन रुख ला
चपटा दुहुं साले तोर मुख ला
तोर बाप के राज चलत हे का
मोला रुख गोंदे बर छेंकत हस
कतको ला कटवात हे सरकार हा
फेर हर पईत तेहा मुही ला देखत हस
रुख गोंद के मेहा परवार पोसत हव
जंगल उजरईया मन ला महुं कोसत हव
हमन तो सुख्खा रुख ला गोंद के लानथन
ऊही लकड़ी मा तो अपन चुल्हा सिपचाथन
चार काड़ी कोरई मा छानही ला छाथन
चार काड़ी ला बेच के पईसा कमाथन
चार काड़ी कही-कही के जंगल चाट डारत हव
सुख्खा कही-कही के कांचा रुख ला मारत हव
वाह रे तुंहर पढ़े-लिखे मन के मतलबिहा गोठ
सरी जंगल ला बेच के हो गे हव बड़ पोठ
मोला बता जंगल के जगा का मोर बबा बेचत हे
रद्दा बर रुख गोंदथे तेला बता कोन छेंकत हे
आरा मे गोला चिरथे अऊ बंदुक मा चिरई तुकत हे
रुख ला उंडा के चिरई गुडा़ ला आगी फूंकत हे
जंगल के सबो जीव आज कांपत हावे
कोनहो आही बंचाय बर कहीके झांकत हावे
चिरई आगास मा उडीयाथे फेर ठिहा रुख राई ये
मरहा चिरई के टूटे पांख ये मनखे के चतुराई ये
साले तोला छेंकत हव ता तेहा सब ला गिनावत हस
धरती दाई ला भुला के परवार के फरज निभावत हस
अईसन मत का महु ला कुदरत के चिंता हे
फेर तेहा मोला बता नेता मन के पेट के बिता हे
रुख राई ला बचाना हे ता सबला एक होना परही
भोरहा मा हो जौन सोंचत होहु नेता मन देस गरही
चलो किरया खाओ आज ले सबो मोर संग दुहु
लकड़ी चोरहा जानहु तेला पानी घलो झन दुहु
रुख ले हे हवा पानी छांव अऊ सबो के जिनगानी
नई कटे जंगल, नई मरे जीव अब हमरो हावे बानी
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रचनाकार - ललित साहू "जख्मी"
ग्राम -छुरा
जिला - गरियाबंद (छ.ग.)
9144992879

पागा कलगी-12/11/ लता नायर

घिनहा कस काम काबर करेस गा l
घम छाँही तोहू तो पात रहेस
गवार कस काट देहेस गा !!
घर गोंसईयां कस होय कर
गर के काँटा बने तै !
जै गाछ ला दावन कुछु नहीं करिस
तैला तै गिधवा कस नोंच देहे गा !!
मोर बसेरा ला तिडी -बिडी़
गुरमट्टी कस कर देहेस गा !
तै कलेचुप काबर मोर सोन चिरई ला मुरईकस मुरकेट देहे गा !!
अब झेन कहबे आँधी घटा आइस है !
तै खुदे नियतखोर कस जमो भुईयां ला उजाड देहेस गा !!
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**** लता नायर
लखनपुर सरगुजा ******

पागा कलगी-12/10/राजकिशोर धिरही

झन काटव रुख ल।
झन काटव रुख ल।।
उजर जाथे हमर खोंधरा
पाथन हमन जाड़ भोंभरा।
बड़ कल्लइ होथे जीये ल
मरथन जम्मों माइ पिला।।
समझव भाखा,दुख ल।
झन काटव रुख ल।।
धर के आरी तै काट देथच
टांगी टांगा ले छांट देथस।
ची ची चूं चूं करत रइथन
भिंया मा गिर गिर मरथन।।
छमा करव भूल चूक ल।
झन काटव रुख ल।।
केप केप करथे पिला,
महतारी हर उड़ जाथे।
काट काट रुख राइ,
मनखे हर दुख लाथे।।
सही के सहथन भूख ल।
झन काटव रुख ल।।
रुख काटे ले भईया
आसरा उजर जाथे।।
चिरई चुरगुन मन
बिन रुख मर जाथे।।
जीये देवव जिव मूक ल
झन काटव रुख ल।।
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🙏🏼राजकिशोर धिरही🙏🏼
ग्राम+पोस्ट-तिलई
तहसील-अकलतरा
जिला-जांजगीर चांपा(छ.ग.)
पिन-495668

पागा कलगी-12/9/इंजी.गजानंद पात्रे"सत्यबोध"

रुख राई हे बेटा बरोबर
सुघ्घर पोसव पालव जी।
जिंदगी के ये आधार हे भईया
मिलके पेड़ लगावव जी।
सुख दुःख के साथी हमर
तनहा के मितान जी।
देवता रूप विराजे ये म
कहत हे पोथी पुराण जी।
मया दया के शीतल छाँव देथे
जिंदगी बर पुरवाई जी।
भूखे प्यासे ल खाना देथे
तन काया बर दवाई जी।
दुनिया के आधार खड़े हे
बड़े बड़े कारखाना जी।
झईन काटव् रुख राई ल भाई
ये हे जीवन समाना जी।
रुख राई पानी बरसावय
किसान के मन हरसावय जी।
सरग के बादर ल खिंच
धरती म उतारय जी।
अन्न धन्न सब हुए मतंगा
करम किसान के सिरजावय जी।
सोये बर पलंग सुपेती बने हे
बइठे बर सोफ़ा दीवाना जी।
लकड़ी काठ कस जीवन बने हे
सब ल हे एक दिन इही म जल जाना जी।
आज शहरीकरण औद्योगीकरण के कारन
बन के होवत हे विनाश जी
भविष्य के बात ल सोचव
जीना दूभर हो जाहि सबके,
जब शुद्ध हवा नई मिलहि
लेह बर हमला स्वांस जी।
बइठे बर छाँव नई मिलहि,
सब मरही भूखे प्यास जी।
करत पुकार हे पात्रे भाई,
कहना मोर मानव जी।
सब कोई अपन जीवन म
भाई रुख राई लगावव जी।
तन मन धन !
सब ले ऊपर वन !
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रचना-- इंजी.गजानंद पात्रे"सत्यबोध"

शनिवार, 18 जून 2016

पागा कलगी-12/8/राजकिशोर पाण्डेय

मनखे मन के मन ले मया सिरावत हे ।
घरी घरी, घरी जातरी के आवत हे ॥
साँस के धरखन हावै दुनियाँ के रुख राई,
इंकरे ले झक्कर, झड़ी अउ हे पुरवाई ।
रुख ल काट के कस्साई कस गिरावत हे ॥
खोंधरा के भीतर ले चूजा चिंचियावत हे,
आरा टाँगा धर ओदे मनखे आवत हे ।
चिऊचींउ सुन के घलाव नइ सोगावत हे ॥
घाम ह आगी होगे अक्कल फेर नइ आइस,
केदार के परलै देखिस परछो फेर नइ पाइस ।
बादर के पुरुत पुरुत ह परपरावत हे ॥
धुर्रा गर्रा बादर आगी अउ पानी बर,
रुख राई बहुत ज़रूरी हें जिनगानी बर ।
कतेक जुग ले कवि हर चिंचियावत हे ॥
घरी घरी, घरी जातरी के आवत हे ॥
🌷🌹राजकिशोर पाण्डेय 🌹🌷
नगर पंचायत मल्हार 
मों न 9981713645
🌸🌷🌹🌻🌻🌻🌻🌻

पागा कलगी-12 /7/असकरन दास जोगी "अतनु"

"बसेरा🏡"
मनखे होगे अतका निरदई, आगे कौऊन बेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!
करेजा नई फाटीच तुंहर, जब चलायेव आरी !
धरहा टंगिया म छोप डारेव, रूखवा के झिलारी !!
लुटागे छईहां मुड़ी ले, नई निकले हे पाँखी !
अंधरौटी आथे का तुंहला, नई दिखय आँखी !!
तुंहरे जईसन हमूं ल सिरजाये, नोहन हम लमेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!१!!
खर-खर बाजीच आरी, कलपिच महतारी !
बचा नई सकिच हमला, रहिगे फड़फड़ावत भारी !!
खुन के आंसू रोवत रहिगे, करत चिवं-चावं !
झर्रट ले खोंधरा टुटगे, कोन मेरा मिलही छावं !!
थोर-थार चलत सांसा , का बांचे हमर मेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!२!!
काट-काट के रूख-राई, नास करत हव जंगल ल !
पहुना कस नेवता नेवतत हव, अपन जिनगी म अमंगल ल !!
तुंहरो बसेरा एक दिन लुटाही , बताव तब कईसे लागही !
करम ठठावत रई जाहव, मांगे म छांव नई मिल पाही !!
बिन जंगल झाड़ी के , बंज्जर हो जाही धरती के कोरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!३!!
सुरूज जंग्गाये रईही रोज, करही मनमानी !
नई आही गर्रा धुका, कईसे गिरही पानी !!
हमर बिगाड़ करके, का तुंहर बन जाही !
हम तो माटी म मिल जाबो, फेर माटी रईही गवाही !!
कहां उड़ागे परवार हमर, कति डारिन होहीं डेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!४!!
पलंग पलगई बनाहव, धुन बनाहव फईरका !
एक दुठन नही , काटे परत हव रूख खईरखा !!
मानवता मरगे का मनखे के, कबले होगे निरदई !
चिरई चिरगुन ल कलपावत हें, होगे हे करलई !!
आँखी म छावत हे हमर, अंधियारी के घेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!५!!
चेत जावव अभी ले, बांचे हे बहूंत बेरा !
जंगल ल झन उजाड़ करव, झन टोरव ककरो डेरा !!
रूख-राई लगा-लगा के , ए धरती के सिंगार करव !
अपन संग-संग सबे जीव जंत्तु के , तुमन दुख ल हरव !!
नई करहव अईसन त, तुंहरो भभिस ल हे खतरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!६!!
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असकरन दास जोगी "अतनु"
पता : ग्राम-डोंड़की,पोस्ट+
तह-बिल्हा,जिला-बिलासपुर ( छग)
मो.नं. 9770591174

पागा कलगी-12/6/राजेश कुमार निषाद

।। झन काटव ग रुखराई ल ।।
चिरई चिरगुन मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
इहि म हावय हमर बसेरा छोड़ के कहाँ जाबो अपन डेरा
ये रुखराई के कटईया सुन लव ग हमर करलाई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
प्रदुषण ल कम करईया देथे सुघ्घर प्राण वायु ल।
गरमी ल दूर भगईया नई बदलन दय जलवायु ल।
इखरे ले तो हमर जिनगानी हे झन घटन दव सुखदाई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
रुखराई सबो ल छईयां देथे अपन लोग लईका जईसन।
पर हमन ओला काट के अन्याय करत हन कईसन।
पेड़ लगावव ग जतन के बने महकन दव अमराई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
किसान मन के संगवारी त खेत बर पानी गिरईया ये।
घाम पियास ले दूर रखथे अऊ दुख पिरा के हरईया ये।
इखर बिना तो काही नइये बचा लव ग ये जीवनदाई ल
चिरई चिरगुन मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी मन काहत हे झन काटव क रुखराई ल।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983