शनिवार, 18 जून 2016

पागा कलगी-12 /7/असकरन दास जोगी "अतनु"

"बसेरा🏡"
मनखे होगे अतका निरदई, आगे कौऊन बेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!
करेजा नई फाटीच तुंहर, जब चलायेव आरी !
धरहा टंगिया म छोप डारेव, रूखवा के झिलारी !!
लुटागे छईहां मुड़ी ले, नई निकले हे पाँखी !
अंधरौटी आथे का तुंहला, नई दिखय आँखी !!
तुंहरे जईसन हमूं ल सिरजाये, नोहन हम लमेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!१!!
खर-खर बाजीच आरी, कलपिच महतारी !
बचा नई सकिच हमला, रहिगे फड़फड़ावत भारी !!
खुन के आंसू रोवत रहिगे, करत चिवं-चावं !
झर्रट ले खोंधरा टुटगे, कोन मेरा मिलही छावं !!
थोर-थार चलत सांसा , का बांचे हमर मेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!२!!
काट-काट के रूख-राई, नास करत हव जंगल ल !
पहुना कस नेवता नेवतत हव, अपन जिनगी म अमंगल ल !!
तुंहरो बसेरा एक दिन लुटाही , बताव तब कईसे लागही !
करम ठठावत रई जाहव, मांगे म छांव नई मिल पाही !!
बिन जंगल झाड़ी के , बंज्जर हो जाही धरती के कोरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!३!!
सुरूज जंग्गाये रईही रोज, करही मनमानी !
नई आही गर्रा धुका, कईसे गिरही पानी !!
हमर बिगाड़ करके, का तुंहर बन जाही !
हम तो माटी म मिल जाबो, फेर माटी रईही गवाही !!
कहां उड़ागे परवार हमर, कति डारिन होहीं डेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!४!!
पलंग पलगई बनाहव, धुन बनाहव फईरका !
एक दुठन नही , काटे परत हव रूख खईरखा !!
मानवता मरगे का मनखे के, कबले होगे निरदई !
चिरई चिरगुन ल कलपावत हें, होगे हे करलई !!
आँखी म छावत हे हमर, अंधियारी के घेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!५!!
चेत जावव अभी ले, बांचे हे बहूंत बेरा !
जंगल ल झन उजाड़ करव, झन टोरव ककरो डेरा !!
रूख-राई लगा-लगा के , ए धरती के सिंगार करव !
अपन संग-संग सबे जीव जंत्तु के , तुमन दुख ल हरव !!
नई करहव अईसन त, तुंहरो भभिस ल हे खतरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!६!!
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असकरन दास जोगी "अतनु"
पता : ग्राम-डोंड़की,पोस्ट+
तह-बिल्हा,जिला-बिलासपुर ( छग)
मो.नं. 9770591174

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