शनिवार, 18 जून 2016

पागा कलगी-12/8/राजकिशोर पाण्डेय

मनखे मन के मन ले मया सिरावत हे ।
घरी घरी, घरी जातरी के आवत हे ॥
साँस के धरखन हावै दुनियाँ के रुख राई,
इंकरे ले झक्कर, झड़ी अउ हे पुरवाई ।
रुख ल काट के कस्साई कस गिरावत हे ॥
खोंधरा के भीतर ले चूजा चिंचियावत हे,
आरा टाँगा धर ओदे मनखे आवत हे ।
चिऊचींउ सुन के घलाव नइ सोगावत हे ॥
घाम ह आगी होगे अक्कल फेर नइ आइस,
केदार के परलै देखिस परछो फेर नइ पाइस ।
बादर के पुरुत पुरुत ह परपरावत हे ॥
धुर्रा गर्रा बादर आगी अउ पानी बर,
रुख राई बहुत ज़रूरी हें जिनगानी बर ।
कतेक जुग ले कवि हर चिंचियावत हे ॥
घरी घरी, घरी जातरी के आवत हे ॥
🌷🌹राजकिशोर पाण्डेय 🌹🌷
नगर पंचायत मल्हार 
मों न 9981713645
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