शनिवार, 18 जून 2016

पागा कलगी-12/6/राजेश कुमार निषाद

।। झन काटव ग रुखराई ल ।।
चिरई चिरगुन मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
इहि म हावय हमर बसेरा छोड़ के कहाँ जाबो अपन डेरा
ये रुखराई के कटईया सुन लव ग हमर करलाई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
प्रदुषण ल कम करईया देथे सुघ्घर प्राण वायु ल।
गरमी ल दूर भगईया नई बदलन दय जलवायु ल।
इखरे ले तो हमर जिनगानी हे झन घटन दव सुखदाई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
रुखराई सबो ल छईयां देथे अपन लोग लईका जईसन।
पर हमन ओला काट के अन्याय करत हन कईसन।
पेड़ लगावव ग जतन के बने महकन दव अमराई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
किसान मन के संगवारी त खेत बर पानी गिरईया ये।
घाम पियास ले दूर रखथे अऊ दुख पिरा के हरईया ये।
इखर बिना तो काही नइये बचा लव ग ये जीवनदाई ल
चिरई चिरगुन मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी मन काहत हे झन काटव क रुखराई ल।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983

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