सोमवार, 4 जुलाई 2016

पागा कलगी-12/33/लक्ष्मी नारायण लहरे

झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय 
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झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय 
बर- पीपल, नीम के छाँव म जी ल जुडाबो
सुघ्घर सीतल छाँव म बईठ के मया के गोठ बतियाबो
नान नान नोनी बाबु मन छैईयाँ म खेलहिं भंवरा -बांटी
दोपहरी के बेरा म पनिहारिन बईठ के छैहैहि
सखी -सहेली मन बईठ के करहीं ठठ्ठा - मुसकरी
खेत - खार ल थके हारे किसान ह बईठ बासी खाही
चिराई - चुरगुन मन बईठ के चहचहाही
कुकुर - बिलाई ह घलो छैईयाँ म सुसताही
सुघ्घर ,सीतल हवा मिलही
बरसा होही खूब
सुरुज के नखरा नी चलैय
सुर सुर हवा मिलही
जिनगी के अधार आय रुख- राई ....
झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय
० लक्ष्मी नारायण लहरे , साहिल, युवा साहित्यकार पत्रकार
कोसीर रायगढ़ - ०९७५२३१९३९५

पागा कलगी-12/32/हेमलाल साहू

@ हावे रुख राई मा जिनगी @
हावे रुख राई मा जिनगी, झन काटव ग परानी।
हवे सबो के डेरा संगी, झन करव ग मनमानी।
सबो जीव के ठउर ठिकाना, हावे रूख राई हा।
जंगल रहिथें बघवा भलुआ, पेड़ म रहै चिरई हा।।
हमर सवारथ मा सबके जी, उजरत हावे डेरा।
चिरई चुरगुन रोवत हावे, कहा करीन बसेरा।।
दिया बुझाये जिनगी के गा, जलय कहाँ अब बाती।
रुख राई हा कटगे संगी, जरथे भुंइया छाती।।
नई मिलै निरमल पुरवाई , खोज लवा तुम सासी।
बून्द बून्द पानी बर तरसे, जिनगी होगे फाँसी।।
सोचव समझव आवौ संगी, लगावौ रुख राई ला।
बाग बगइचा खूब लगावौ, बहाव पुरवाई ला।।
सुघ्घर धरती ह सम्भरे जी, पहिरे हरियर लुगरा।
मान रखव परिकरिती के जी, करव कभू झन उघरा।।
अपन बना ले बेटा संगी, तैहा रुख राई ला।
जिनगी भर तोर संग देही, लाही पुरवाई ला।।
जंगल झाड़ी रुख राई हा, हमार तो जिनगानी।
चिरई चुरगुन जम्मो हावे, इहि तो हमर निसानी।।
संगी मानव बात हेम के, करलव मया जगत ला।
सबके जिनगी अपने समझव, राखव मया भगत ला।।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़ जिला बेमेतरा
मो. नम्बर 9977831273

पागा कलगी-12/31/टीकाराम देशमुख "करिया"

"झन कांटव रुख-राई ल"
झन कांटव रुख-राई ल........
सुन लव मोर भाई ग..
1. जिनगी के अधार हावे ,जम्मों रुख-राई
नि रही भुईयाँ मं , हो जाही ग करलाई
राखव सम्हार.....2 , परकिति दाई ल....
सुन लव मोर भाई ग
झन कांटव ..............
2.रुख-राई कांट के, बनाये तैंहा डेरा
चिरगुन मन के तैँ , उझारे रे बसेरा
सुख के देवैय्या.....2 ,रुख सुखदायी ग....
सुन लव मोर भाई ग
झन कांटव..........
3. फूल,फर,कठवा ; झन अतके तैँ जान
चलत हे सुंवांसा सबके , एकर (रुख) सेती मान
चलन दे तैं संगी....2, सुग्घर पुरवाई ल .....
सुन लव मोर भाई ग
झन कांटव रुख-राई ल.....
सुन लव मोर भाई ग
@ टीकाराम देशमुख "करिया"
स्टेशन चौक कुम्हारी,जिला _दुर्ग
मो. 94063 24096

शनिवार, 25 जून 2016

पागा कलगी-12/30/शालिनी साहू

परयावरण बचाबो
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हरियर हरियर रुख लगाबो
सुग्घर सितल छंईहा पाबो
करत रहव तुमन अइसनहे कटाई
फेर झिन कहू कइसे बिपदा आई
परयावरण ले छेडछाड करहू
अपने डोंगा म खुदे छेद करहू
करत रहव जंगल परबत के छटाई
फेर झिन कहू कइसे बिपदा आई
परकिरिती ल रुष्ट करहू
जीनगी भर कष्ट सइहू
चिरइ चिरगुन के संख्या घटाहू
सितल हवा काहा पाहू
शेर भालू के दहाड कइसे आही
जंगल नइ रिही त जम्मो गाव डहर आही
परदुषन ल दुरिहा भगाहू
जीनगानी ल खुशहाली बनाहू
जेन ए बात ल नइ समझिस
तब देखव कइसे घोर बिपदा मातिस।
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शालिनी साहू
अमली पारा कुरुद

पागा कलगी-12/29/ललित वर्मा

बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
अपन डेरा के सिरजन खातिर
चिरई के खोंधरा गिरावथे
कटथे पेंड अउ चीखत हाबय
सुन मूरख इनसान
सुक्खा अकाल ह परत हाबय
काबर गुन पहिचान
महल अटारी बनाये के खातिर
बिनास के बारी बोवावथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
रोवथे चिरई तडफत हाबे
छूटत हे जी परान
अतेक निरदई कईसे होगे
देवता सरिक इनसान
निज-स्वारथ ल साधे खातिर
करम के लेख बिगाडथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
घपटथे परदूसन के बादर
करनी म तोर इनसान
भूख-बिमारी के बाजथे मांदर
नाचथे जम भगवान
परयावरन ल बचाये खातिर
पागाकलगी ह सबला जगावथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
अपन डेरा के सिरजन खातिर
चिरई के खोंधरा गिरावथे
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रचना -ललित वर्मा छुरा गरियाबंद

पागा कलगी-12/28/देव साहू

रो रो के गोहरावत हव
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लहू के हर कतरा ले भिज गे हव
टंगिया ले अब झन मारव मोला
आगास के बादर ले पूछलव
मोला कइसे लइका सरिक पोसे हे
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मउसम ह खुन पसिना ले सिचे हे
माटी तको बरबसी झाडे हे
फुरफुर पुरवाही हवा ले पूछलव
जेन मया के झुलना म झुलाय हे
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हर पल मोर खियाल रखे हे
तभे अंतस ले बिजा मोर जागे हे
तय सुखा ये भुंइया म
रुखराई के एक बगिचा बना लव
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रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला जमिन ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु सगी मोला झन काटव
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ए भुंइया के सुग्घर छंइहा
रुखराई चिरइ चिरगुन ले बने हे
फुरफुर पुरवाई के ए हवा
अमरित बन के चलत हे
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हमरे नत्ता हे जम्मो जीव ले
जेन ए भुंइहा म संगी आही
हमरे ले रिस्ता ह मनखे मनखे के
जेन ए भुंइया म संगी जाही
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हवा गरेर ले डारा खांधा टूटगे
जगे जगाए रुख ल चुलहा म झन डारव
रो रो के गोहरावत हव
मोला जमिन ले झन उखाडव
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कतको फल फलहरी ल हमन देथन
तभो ले अजनबी सरिक पडे हन
धरे टंगिया हाथ म हमला ताक झन
जवाब देवव काबर मुरदा सन खडे हन
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हमरे ले सुग्घर जिनगी मिले हे तोला
पारत हव गोहार झन काटव मोला
बुरा नजर मोर उपर म झन डारव
तुहर मया के छंइहा ले झन मारव
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रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला भुंइया ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु मितान मोला झन काटव
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कहू जमिन म नई रिही रुख राई
तुहर जिनगी हो जाही एक दिन दुखदाई
तराही तराही मनखे मनखे ल होही
दुनिया म हाहाकार तको मच जाही
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तभे पछताहू तुमन ह गा संगी
हमन एला काबर बिगाडे हन
हमर ले जब घर कुरिया बनथे
दु बखत के भरपेट चाउर चुरथे
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हर घर म खडे किवाड हे
गली गली म रुख लगावव
जम्मो मनखे म आस जगावव
सुग्घर मया के रुख लगावव
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला भुंइया ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु मितान मोला झन काटव
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देव साहू
गवंइहा संगवारी
कपसदा धरसीवा

पागा कलगी-12/27/सुशील यादव

का नफा नुकसान हे भाई
तुहर अलग भगवान हे भाई
रुख राई ला काट मढ़ाएव
गाव उही पहिचान हे भाई
तरिया पार पीपर हवा में
बर्नी भर अथान हे भाई
चिरइ चिरगुन के बसेरा में
बिहिनिया के अजान हे भाई
एके पेड़ ऐ जनम उगा लो
इहि म जम्मो ज्ञान हे भाई
सुशील यादव