सोमवार, 4 जुलाई 2016

पागा कलगी-12/33/लक्ष्मी नारायण लहरे

झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय 
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झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय 
बर- पीपल, नीम के छाँव म जी ल जुडाबो
सुघ्घर सीतल छाँव म बईठ के मया के गोठ बतियाबो
नान नान नोनी बाबु मन छैईयाँ म खेलहिं भंवरा -बांटी
दोपहरी के बेरा म पनिहारिन बईठ के छैहैहि
सखी -सहेली मन बईठ के करहीं ठठ्ठा - मुसकरी
खेत - खार ल थके हारे किसान ह बईठ बासी खाही
चिराई - चुरगुन मन बईठ के चहचहाही
कुकुर - बिलाई ह घलो छैईयाँ म सुसताही
सुघ्घर ,सीतल हवा मिलही
बरसा होही खूब
सुरुज के नखरा नी चलैय
सुर सुर हवा मिलही
जिनगी के अधार आय रुख- राई ....
झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय
० लक्ष्मी नारायण लहरे , साहिल, युवा साहित्यकार पत्रकार
कोसीर रायगढ़ - ०९७५२३१९३९५

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