गुरुवार, 7 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/1/डी .पी .लहरे

माटी के मितान
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धर के नांगर बईला तैहा
धनहा डोली जाथस••
कभु बो देथस बीज ल तैहा
कभु परहा लगाथस••
सब कहिथें तोला किसान रे "मोर माटी के मितान"
दिन भर खेत म रहिके तैहा जांगर टोर कमाथस••
पानी, झडी म रहिके
तैहा बासी चटनी खाथस••
सब कहिथें तोला महान रे "मोर माटी के मितान"
जम्मो परानी के पेट भरथस
धरती के सेवा करथस••
का गरमी का बरसा म तैहा
हंकर हंकर कमाथस••
धरती दाई के कोरा म तैहा
रंग रंग अन उपजाथस••
तोला कहिथें भूईयाॅ के भगवान रे मोर"माटी के मितान"
रचना-डी .पी .लहरे
कबीरधाम छ .ग

‘‘छत्तीसगढ़ के पागा कलगी-13‘ के विषय

छत्तीसगढ़ी कविता के प्रतियोगिता ‘‘छत्तीसगढ़ के पागा कलगी-13‘ के विषय रूपरेखा ए प्रकार के हावय-
समय- दिनांक 1/7/16 से 15/7/16 तक
मंच संचालक- श्री हेमलाल साहू (छत्तीसगढ़ मंच संचालक समिति के अंग)
निर्णायक-
1.श्रीमति शकुन्तला शर्मा (वरिष्ठ साहि0 भिलाई) 
2. श्री अंजनी कुमार अंकुर, वरिष्ठ साहित्यकार व छ0ग0 राजभाषा आयोग समन्वयक जिला रायगढ़
विषय - ''माटी के मितान''।
विधा- विधा कोनो बंधन नई हे, फेर रचना संक्षिप्त अउ गंभीर होय अइसे निवेदन हे ।
परिणाम घोषण 17/7/16

//पागा कलगी 12के परिणाम //




विषय-‘दे गे चित्र के भाव के अनुसार‘
मंच संचालक- श्रीललित टिकरिहा (छत्तीसगढ़ पागा कलगगी 5 के विजेता)

निर्णायक-1.सुश्री सुधा वर्मा ;देशबंधु मंड़ई के संपादक, वरिष्ठ साहित्यकार, रायपुर
2. श्री रामेश्वर शर्माए वरिष्ठ गीतकार, रायपुर

संगी हो,
सबले पहिली आप सब ला ये आयोजन म हिस्सा ले बर आभार । आप सबके सहयोग ले हमर साहित्य निश्चित रूप ले आघू बढ़ही । सबो झन विजेता नइ हो सकन । लेकिन कोनो रचना बेकार नई होवय, कोनो मेहनत निरर्थक नई होवय । आप सबला अच्छा रचना लिखेबर बधाई ।
ये प्रतियोगिता के शिर्षक दे गे चित्र ले लेना रहिस, चित्र मा पेड़ काटे के दुष्परिणाम अउ चिरई मन के कलपना रहिस दूनों भाव मा सामंजस्य करना रचनाकार के योग्यता ला देखाथे। ये प्रतियोगिता के रचना के मूल्यांकन येही आधार मा करे गे हे ।
परिणाम घोषित करे के पहिली एक बात के निवेदन आप सब से करना चाहत हंव हमर देश म ‘पंच परमेश्वर‘ कहे गे हे । कोनो निर्णय करना आसान नई होवय । सबके अपन सोच अपन कसौटी होथे, निर्णायक ऊपर अविश्वास नई करना चाही ।
ये आयोजन के पहिली, दूसर अउ तीसर विजेता के संगे संग प्रशंसनीय रचना घोषित करे जात हे -
आदरणीया निर्णायक के अनुसार -
प्रशंसनीय रचना-
श्री आचार्य तोषण धनगांव डौंडीलोहारा बालोद छत्तीसगढ़
श्रीश्रवण साहू ग्राम.बरगा, जि- बेमेतरा
श्री देव साहू ‘गवंइहा संगवारी‘ कपसदा धरसीवा

तीसर विजेता-
श्री तरूण साहू ‘भाठीगढ़िया‘ ग्राम भाठीगढ़, मैनपुर,जिला गरियाबन्द ; छ.ग.
मो.न. 9755570644, 9754236521

दूसर विजेता-
श्री जीतेन्द्र वर्मा ‘खैरझिटिया‘ बाल्को, कोरबा 9981441795

पहिली विजेता-
श्री चोवाराम वर्मा ‘बादल‘ ग्राम पोस्ट हथबंध

सबो विजेता संगीमन ला छत्तीसगढ़ी मंच अउ छत्तीसगढ़ के पागा कलगी के संचालक समीति डहर ले बहुत-बहुत बधाई ।

सोमवार, 4 जुलाई 2016

पागा कलगी-12/47/आशा देशमुख

परकिति के गोहार
सुनलव ......रोवत हे कलप कलप के
धरती हा तरवा धरके ,
किंजरत हे अतियाचारी
देवत हे दुख बड़ भारी .....राम हो
कइसे .......पीरा बतावंव मोरे राम हो |
1 पाँच पदारथ हा जुल मिलके
परकिति ला सिरजावय
ये ....परकिति.....
रुखवा राई जीव जनावर
सबो म साँस समावय |
हाँ....सबो....
देखव ......नदिया नरवा ह खिरत हे
भुइँया हा परिया परत हे ,
मनखे हा बन गे आरी
काटय साँसा के नारी (नाड़ी ) राम हो
कइसे ....दुःख ला गिनावंव मोरे राम हो |
रोवत हे कलप कलप के ..........
2.......मोरे सब बिन मुँह के धन के
कोनो नइहे बचईया
टपकत हे आँखी ले आँसू
नइ हे कोनो पोछइया |
देखव ....मरत हे खुरच खुरच के
कसई मन टोंटा मसके
गिधवा के साहूकारी
हंसा के चाम उघारी ..राम हो
कइसे....पीरा बतावंव मोरे राम हो |
रोवत हे कलप कलप के............|
3.........जागव रे सब मनखे मन हा
भरम के तोपना खोलव ,
इहि परकिति मा जिनगी हावे
मया के बोलना बोलव |
माँनव ....रुखवा हे छइहाँ सुख के
संगी अय सबके दुख के ,
आही ग मया के पारी
भरही भुइँया के थारी ....राम हो |
अइसे.....धरती ममहावव मोरे राम हो
सुघ्घर.....धरती लहरावव मोरे राम हो |

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

पागा कलगी-12/46/उमेश श्रीवास,सरल

परियावरन ला बचाबो🌾
।।।।।🌴गीत🌴।।।।। कटगे कतिक रुख-रइया,/ए भइया/
जलगे कतिक रुख-रइया।
रुख लगाए बर जाबो, परियावरन ला बचाबो
ए भइया कटगे कतिक रुख-रइया----
रुख बिन देख बदरिया लुकागे,
खेतखार अउ नरवा सुखागे।
चिरई-चिरगुन बघवा-भालू
फलमूल बिन सबो हावें दुखालू
फलदार रुख लगाबो
परियावरन ला बचाबो
ए भइया कटगे कतिक रुख-रइया----
हवा बिन जग के सांस ह अटके,
बिन पानी जइसे मछरी ह तड़पे।
परदूषित जिनगानी ह होंगे,
अपन करम ला सब कोई भोगे।
सुखी जिनगानी बनाबो
परियावरन ला बचाबो।
ए भइया कटगे कतिक रुख-रइया----
त्रेता में लछिमन मुरछा खाए,
तब हनु संजीवन परान बचाए।
जड़ी-बुटी ला बचाबो
परियावरन ला बचाबो।
ए भइया कटगे कतिक रुख-रइया----
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उमेश श्रीवास,सरल,,
रत्नान्चल साहित्य परिषद अमलीपदर,वि.ख.मैनपुर
जिला-गरियाबंद छ.ग
7077219546
9302927785

पागा कलगी-12 /45/दिलीप वर्मा

गीत
झन काटौ रे झन काटव गा
जिनगी के अधार ल झन काटौ रे
जिनगी के अधार ल झन काटौ गा
एकरे देये खाथन संगी
पिथन एकरे देये ला
फर फूल अउ लकड़ी पाथन
पानी एकरे गिराये ला
हवा सुधरथे सुग्घर संगी
एकरे करे कमाल रे
झन काटौ रे झन काटौ गा
भूखा रहिबे चलजही संगी
पियासा रहिबे चलही गा
आज नहीं त काली मिलहि
सबके दिन ह बदलहि गा
बिना हवा के मरना होही
पल म जाहि जान रे
झन काटौ रे झन काटौ गा
एक काटौ त दसे लगावौ
बोवौ ओरी ओरी गा
हर भाठा अउ हर टिकरा म
दिखे लाख कड़ोरी गा
धरती के अछरा ह सुधरही
जिनगी बने खुशहाल रे
झन काटौ रे झन काटौ गा
जिनगी के अधार ल झन काटौ रे
जिनगी के अधार ल झन काटौ गा।
दिलीप वर्मा
बलौदा बाजार

पागा कलगी-12/44/ज्वाला विष्णु कश्यप

झन कर बिगाड़ काट काट के झाड़ ल,
अपन तन ल झन काटव ग आरा म|
रुखुवा के संग चिरई पावत हावय तंग,
आनी बानी के चिरई के बसेरा हे डारा म,
चिरई संगआज तड़फत हावे भालू बाज,
सबो हावय रूख राई के सहारा म||
सुनव ग संगी झन होवव मतंगी,
पेंड.लगावव गांव,बस्ती पारा पारा म ||
अपन पांव झन करव घाव,
रूख ह आए जिनगी के अधार ग|
रूख ले सांस बुतवाथे भूंख पियास,
अही एक ठन जिनगी के सार ग||
देथे जिनगानी गिराथे बड़ पानी,
अपन जिनगी ल झन तैं मार ग||
कर ले जतन पेंड़ आए रतन,
लईका एक झन पेंड़ ल हजार ग||
ज्वाला विष्णु कश्यप
आ.हिं.सा.स.मुंगेली