सोमवार, 4 जुलाई 2016

पागा कलगी-12 /45/दिलीप वर्मा

गीत
झन काटौ रे झन काटव गा
जिनगी के अधार ल झन काटौ रे
जिनगी के अधार ल झन काटौ गा
एकरे देये खाथन संगी
पिथन एकरे देये ला
फर फूल अउ लकड़ी पाथन
पानी एकरे गिराये ला
हवा सुधरथे सुग्घर संगी
एकरे करे कमाल रे
झन काटौ रे झन काटौ गा
भूखा रहिबे चलजही संगी
पियासा रहिबे चलही गा
आज नहीं त काली मिलहि
सबके दिन ह बदलहि गा
बिना हवा के मरना होही
पल म जाहि जान रे
झन काटौ रे झन काटौ गा
एक काटौ त दसे लगावौ
बोवौ ओरी ओरी गा
हर भाठा अउ हर टिकरा म
दिखे लाख कड़ोरी गा
धरती के अछरा ह सुधरही
जिनगी बने खुशहाल रे
झन काटौ रे झन काटौ गा
जिनगी के अधार ल झन काटौ रे
जिनगी के अधार ल झन काटौ गा।
दिलीप वर्मा
बलौदा बाजार

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