सोमवार, 4 जुलाई 2016

पागा कलगी-12/44/ज्वाला विष्णु कश्यप

झन कर बिगाड़ काट काट के झाड़ ल,
अपन तन ल झन काटव ग आरा म|
रुखुवा के संग चिरई पावत हावय तंग,
आनी बानी के चिरई के बसेरा हे डारा म,
चिरई संगआज तड़फत हावे भालू बाज,
सबो हावय रूख राई के सहारा म||
सुनव ग संगी झन होवव मतंगी,
पेंड.लगावव गांव,बस्ती पारा पारा म ||
अपन पांव झन करव घाव,
रूख ह आए जिनगी के अधार ग|
रूख ले सांस बुतवाथे भूंख पियास,
अही एक ठन जिनगी के सार ग||
देथे जिनगानी गिराथे बड़ पानी,
अपन जिनगी ल झन तैं मार ग||
कर ले जतन पेंड़ आए रतन,
लईका एक झन पेंड़ ल हजार ग||
ज्वाला विष्णु कश्यप
आ.हिं.सा.स.मुंगेली

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