सोमवार, 15 अगस्त 2016

पागा कलगी-15 //24//ओमप्रकाश घिवरी

देश बर जीबो देश बर मरबो ।
धन हे मोर भारत, भुईयाँ के माटी ल,
देवत हे चारा सब ला , चीर के अपन छाती ल ।
अईसन महतारी के , सेवा ल करबो ।
देश बर जीबो , देश बर मरबो ।
खाँध म खाँध जोर के ,एके संग रहना हे ।
सबो परानी ल जुर मिल के , सुमत के रस्दा गढ़ना हे ।
मोर देश के माटी पबरित, ईही माटी मा तरबो ।
देश बर जीबो , देश बर मरबो ।
रचना
ओमप्रकाश घिवरी

पागा कलगी-15//23//ज्ञानु मानिकपुरी "दास"

"देश बर जीबो अउ देश बर मरबो"
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गीत
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बंदे मातरम् बंदे मातरम् गाबो
देश बर जीबो अउ देश बर मरबो।
1-भूल जावव संगी मज़हब के बात ल।
झन करव संगी मतलब के बात ल।
मनखे अव मनखे बनके रहव जी।
गीता के संग कुरान घला पढ़व जी।
हिन्दू-मुस्लिम,सिक्ख-ईसाई संग साथ रहिबो
देश बर जीबो अउ देश बर मरबो।
2-सरग ले सुघ्घर ये पावन धरा हे।
जिहा बहत तिरवेनि के अमरितधारा हे।
बैर,कपट ,राग,द्वेष ल छोड़व जी।
सबले भाईचारा के नता जोड़व जी।
ऊच-नीच, जाति-पाती के भेदभाव ल दूर करबो
देश बर जीबो अउ देश बर मरबो।
3-तोर सेवा करत कतको होंगे बलिदानी।
आज़ादी मिले हमला वीर सपूत मनके क़ुरबानी।
आवव सब जुरमिल के येखर जतन करि।
देश बर अपन जिनगी ल अरपन करि।
येखर सम्मान बर सदा लड़बो
देश बर जीबो अउ देश बर मरबो।
4-हरदम नेक रसता म चलबो।
देशसेवा,देशहित बर काम करबो।
मातृभूमि बर सदा निछावर रहिबो।
बईरी दुश्मन ल मज़ा चखाबो।
लहर लहर तिरंगा ल लहराबो।
देश बर जीबो अउ देश बर मरबो।
बंदे मातरम् बंदे मातरम् गाबो।
देश बर जीबो अउ देश मरबो।
ज्ञानु मानिकपुरी "दास"
चंदेनी कवर्धा
9993240143

पागा कलगी-15 //22//शुभम् वैष्णव

अपन देस बर जीबो-मरबो (चौपाई)
अपन देश बर जीबो मरबो।
जतना हिम्मत ततना करबो।।
मुड़ी घलो कटवा देबो जी।
मर के जस अमरत पाबो जी।।
एहि ह माता अउ एहि पिता।
एखर बखान ल करव कतका।।
महतारी हम मानबो अपन।
सुमरत रहिबो जी जनम जनम।।
एखर माटी जस सोना हे।
अमरत जइसे माँ गंगा हे।।
इहाँ सबो भगवान बसय जी।
जनम इहाँ बरदान हरय जी।।
सुन ले मोरो कहना भइया।
देश हरय ग साक्छात मइया।।
एखर तैं ह जतन तो करले।
अपन देश बर जीले मरले।।
खेत खार अउ बारी कोला।
माटी धरती माटी चोला।।
दुनिया भर के देव बसे हे।
सियान मन तो एहि कहे हे।।
दुसमन बइठे घात लगाए।
अपन करम ले जात बताए।।
मार नई तो मर जा तैं हा।
सहीद हो के तर जा तैं हा।।
भ्रष्टाचार ह एखर दुसमन।
बसे देस मा पापी जन-मन।।
चलव संघरावव तो भाई।
देस ल देस बनावव भाई।।
हरय संत महंत के धरती।
कइसे कोनो कबजा करही।।
सच के हिम्मत देखा देबो।
ए जिनगी अरपित कर देबो।।
-शुभम् वैष्णव
नवागढ़, बेमेतरा

पागा कलगी-15//21//लक्ष्मी नारायण लहरे ,साहिल,

बिषय---देश बर जीबो, देश बर मरबो .....
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देश बर जीबो ,देश बर मरबो ....
सुन ले ग संगवारी मोर मितान
हमर भारत देश हे महान
हमन छत्तीसगढ़ीया सबले बढ़िया
जय जवान -जय किसान
हमर भारत देश हे महान
वीर सपूत सुभाष - आजाद के हे हमर देश
गांधी - अम्बेडकर अउ खुदीराम बोस के अमर हे कहानी
लक्ष्मी बाई , सरोजनी जी ल देश के पहचान
हमर तिरंगा झंडा देश म हे महान
आजादी के लड़ाई म वीर सपूत मन दे दिन बलिदान
हांसत -हांसत फांसी म झूल गिन भारत माता के लाल
ऐसे हे हमर भारत के पहचान
हमर भारत देश हे महान
मया प्रीत के सन्देश भेजत हंव
सुन ले ग संगवारी मोर मितान
हमर भारत देश हे महान
हमन छत्तीसगढ़ीया सबले बढ़िया
जय जवान -जय किसान
हमर भारत देश हे महान
देश बर जीबो ,देश बर मरबो ....
सुन ले ग संगवारी मोर मितान
हमर भारत देश हे महान
जब - जब देश म बिपति आही
हांसत - हांसत देबो जान
भारत माता के हमन लाल
जय - जवान, जय किसान
अमर शहीद के राख़ु ग मान
जिनगी म जब मिलही मौका
हांसत -हांसत देदुहू अपन प्रान
भारत माता के करहु ग मान
हमर भारत देश हे महान
हमन छत्तीसगढ़ीया सबले बढ़िया
जय जवान -जय किसान
० लक्ष्मी नारायण लहरे ,साहिल,
युवा साहित्यकार पत्रकार कोसीर रायगढ़
मो० ९७५२३१९३९५

पागा कलगी-15 //20//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

देस बर जीबो,देस बर मरबो।
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चल माटी के काया ल,हीरा करबो।
देस बर जीबो , देस बर मरबो।
सिंगार करबों,सोन चिरंईया के।
गुन गाबोंन , भारत मईया के।
सुवारथ के सुरता ले, दुरिहाके।
धुर्रा चुपर के माथा म,भुईंया के।
घपटे अंधियारी भगाय बर,भभका धरबो।
देस बर जीबो , देस बर मरबो।
उंच - नीच ल , पाटबोन।
रखवार बन देस ल,राखबोन।
हवा म मया , घोरबोन।
हिरदे ल हिरदे ले , जोड़बोन।
चल दुख-पीरा ल , मिल हरबो।
देस बर जीबों , देस बर मरबो।
मोला गरब-गुमान हे,
ए भुईंया ल पाके।
खड़े रहूं मेड़ो म ,
जबर छाती फईलाके।
फोड़ दुहुं वो आँखी ल,
जेन मोर भुईंया बर गड़ही।
लड़हु-मरहु देस बर ,
तभे काया के करजा उतरही।
तंउरबों बुड़ती समुंद म,उक्ती पहाड़ चढ़बो।
देस बर जीबो , देस बर मरबो।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795

पागा कलगी-15//19// लोकेन्द्र"आलोक"

शीर्षक- देश बर जीबो देश बर मरबो
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भारत दाई के संतान हम हर
देश बर जीबो देश बर मरबो ।
सीमा मा पहरा देवत हम हर
चल संगी देश के सेवा करबो ।।
भारत दाई के संतान हम हर
देश बर जीबो देश बर मरबो ।।
ये भुईहा ला हरियाये बर
हम हाथ मा नांगर धरबो ।
धान जगा हम हर जम्मो
देशवासी के पेट भरबो ।।
भारत दाई के संतान हम हर
देश बर जीबो देश बर मरबो ।।
बनके सैनिक हम सीमा में
बईरी के छाती मा गोली भरबो ।
बन मजदुर ये भुईहा मा
नवा कामबुता ला करबो ।।
भारत दाई के संतान हम हर
देश बर जीबो देश बर मरबो ।।
बन महाराणा के जोश हम
आतंकी मन ले लड़बो ।
सुबाषचंद्रबोश के क्रांति बोली
बन , जन में क्रांति भरबो ।।
भारत दाई के संतान हम हर
देश बर जीबो देश बर मरबो ।।
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कवि - लोकेन्द्र"आलोक"
ग्राम+पोष्ट - अरमरीकला
तहसील - गुरुर
जिला - बालोद
पिन कोड - 491222
मो. - 9522663949

पागा कलगी-15//18//पी0 पी0 अंचल

"देश बर जीबो देश बर मरबो"

सरबस जिनगी इहि देश बर,
जियत भर सेवा करबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
सबो बने करनी इहि देश बर,
दया धरम करम इहि देश बर।
फूंक फूंक के पाँव धरबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
नारी के सनमान के खातिर,
नोनी के अधिकार के खातिर।
रोटी कपड़ा मकान के खातिर,
सबो के उत्थान के खातिर।
चलव अईसन कछु करबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
आज ले देश में जात पात हे,
दिनमान घलो इन्हा रात हे।
आंखी बाला घलो हें अंधरा,
मंडरावत हे देश म खतरा।
आवव जुरमिल के हरबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
कश्मीर ले कन्याकुमारी तक,
लइका सियान आउ महतारी तक।
अपन करनी कमाई के अन्न,
सबो के बटकी आउ थारी तक।
चला आवा जेवन ल रखबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
बिजली, शिक्षा, सडक आउ पानी,
सबो के कंठ में विकास के कहानी।
चारो डहर रहय साफ सफाई,
सबो के चलय देश म सियानी।
आवव स्कुल डहर पाँव धरबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
इहि देश म उपजेन इहि बाढ़ेन,
जब तक रही जान म जान गुंइय्यां।
दुबारा जनम लेहे बर हदरबो।
बिकास दिन दूना रात चौगुना
होय इहि हम रात दिन सुमरबो
कोनो दुर्जन घात मढ़ाय मिलही
ईमान से ओला भारी थुथरबो।।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
जय हिन्द
रचना:- पी0 पी0 अंचल
हरदीबाज़ार कोरबा