सोमवार, 15 अगस्त 2016

पागा कलगी-15//18//पी0 पी0 अंचल

"देश बर जीबो देश बर मरबो"

सरबस जिनगी इहि देश बर,
जियत भर सेवा करबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
सबो बने करनी इहि देश बर,
दया धरम करम इहि देश बर।
फूंक फूंक के पाँव धरबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
नारी के सनमान के खातिर,
नोनी के अधिकार के खातिर।
रोटी कपड़ा मकान के खातिर,
सबो के उत्थान के खातिर।
चलव अईसन कछु करबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
आज ले देश में जात पात हे,
दिनमान घलो इन्हा रात हे।
आंखी बाला घलो हें अंधरा,
मंडरावत हे देश म खतरा।
आवव जुरमिल के हरबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
कश्मीर ले कन्याकुमारी तक,
लइका सियान आउ महतारी तक।
अपन करनी कमाई के अन्न,
सबो के बटकी आउ थारी तक।
चला आवा जेवन ल रखबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
बिजली, शिक्षा, सडक आउ पानी,
सबो के कंठ में विकास के कहानी।
चारो डहर रहय साफ सफाई,
सबो के चलय देश म सियानी।
आवव स्कुल डहर पाँव धरबो।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
इहि देश म उपजेन इहि बाढ़ेन,
जब तक रही जान म जान गुंइय्यां।
दुबारा जनम लेहे बर हदरबो।
बिकास दिन दूना रात चौगुना
होय इहि हम रात दिन सुमरबो
कोनो दुर्जन घात मढ़ाय मिलही
ईमान से ओला भारी थुथरबो।।
देश बर जिबो देश बर मरबो।।
जय हिन्द
रचना:- पी0 पी0 अंचल
हरदीबाज़ार कोरबा

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