शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

पागा कलगी -21//1//श्रवण साहू

।।जय मोर छत्तीसगढ़ महतारी।।
जय जय हे छत्तीसगढ़ महतारी।
तोर महिमा जग मा बड़ भारी।।
ऋषि मुनि अऊ तपसी के डेरा।
सबो जीव जंतु के तैंहा बसेरा।।
हरियर हावय मा तोर कोरा।
रूप तोर मोहय चंद्र चकोरा।।
तीरथ तंही, तंही चारो धाम।
पांव रखे जिंहा मोर प्रभु राम।।
बड़ निक लागे धनहा डोली।
हवे सुग्घर तोर गुरतुर बोली।।
धान पान के तैंहा उपजईया।
सबो प्राणी के प्रान बचईया।।
बड़े बिहना कोयली गुन गाये।
चिरई चिरगुन महिमा बताये।।
नाचय रूखवा झुमरय खेती।
भारत मां के तैं दूलौरिन बेटी।।
नरवा, डोंगरी मन ला भाये।
परबत मुकुट शोभा बढ़हाये।।
तोर चरण मा माथ नवांवय।
तोर 'दुलरवा',गुन तोर गावय।।
रचना- श्रवण साहू
गांव-बरगा जि. बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा. - +918085104647

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

//पागा कलगी-20 के परिणाम //


पागा कलगी-20 जेखर विषय-‘मन के अंधियारी मेटव‘ रहिस, ये विषय मा कुल 8 रचना प्राप्त होइस । सबो रचनाकार संगी मन के रचना म देवारी के दीया जगमगावत हे, सबो झन ला अंतस ले बधाई । दे गे विषय म जेन रचना सबले लकठा लगीस ओही ल ये दरी पागा के भेट करे जात हे ।
भाई गुमान साहू के मुड़ मा ‘पागा कलगी-20‘ के पागा ला धरे जात हे ।

भाई गुमान साहू ला छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच डइर ले अंतस ले बधाई

सोमवार, 31 अक्टूबर 2016

पागा कलगी -20//8//धर्मेन्द्र डहरवाल

----- माटी के चोला संगी माटी म मिल जाही------
कतको कमाले धन अउ दौलत तोर संग कहां ये जही,
हाड़ मास के बने ये तन ह कतका दिन ले खंटाही,
दया धरम तै करले भइया तोर नाव ह जग म छाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
का रखे हे जात पात मे जम्मो मनखे ह भाई ये,
सुघ्घर पिरीत के गोठ गोठीयाले इही ह प्रेम सगाई ये,
जे करथे भेद जात पात म सिरतो म उही कसाई ये,
मांथ नवालव धरती दाई के इही जगजननी माई ये,
जेन सत के रद्दा म रेगही सरग उही ह जाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
सब जानत हे का होथे ग पापी मन के कहानी,
बैर झन कर ककरो बर तै तोर सुखी रही जिनगानी,
प्रेम भाव ले रहा सब संग करले संगी मितानी,
दुखीया के तै दुख हर ले पोछदे आंखी के पानी,
धरम के बाट ल तै अपनाले तोर जिनगी सुख म पहाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
मतलबीहा झन तै बन भईया छल कपट ल छोड़दे,
चारी चुगली अउ द्वेश भाव संग जम्मो नता ल टोरदे,
करू कासा अभीमान छोड़ के मया के रंग ल घोरदे,
भेद भाव अउ पाप बैर ल माटी के पोरा कस फोर दे,
मीठ बोली तै बोल तोला सब सौ बछर ले सोरयाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
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रचनाकार--- धर्मेन्द्र डहरवाल
ग्राम- सोहागपुर पोस्ट परपोड़ी
जिला बेमेतरा (C.G.)

पागा कलगी -20//7//दिलीप वर्मा

पागा कलगी 20 बर रचना।
विषय--मन के अंधियारी मेटव।
विधा--कुण्डली
करम अपन सुधार के,मया म सब ल लपेट। 
बैर भाव सब भूल के,मन अंधियारी मेंट।
मन अंधियारी मेट,देख जग सुंदर लागय।
प्रीत बढ़े हर एक ले,सोये भाग हर जागय।
मानव सच हे बात,कि सुख के इही मरम।
मया म सब ल लपेट,सुधार के अपन करम। ।1।
बैर रखे अंतस जरे,तन हर खीरत जाय।
मन अंधियारी मेट लौ,घर घर ख़ुशी ह आय।
घर घर ख़ुशी ह आय,अउ धन ह बाढ़त जावय।
बढ़य कुटुम कबीला,मया मा सबो समावय।
रख तै सब ले प्रेम,नहीं ते नई हे ख़ैर।
तन हर खीरत जाय,कि अंतस रखे ले बैर। ।2।
दिलीप वर्मा
बलौदा बाज़ार

पागा कलगी -20//6//ज्ञानु मानिकपुरी"दास"

छत्तीसगढ़ी गजल
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नफरत के काँटा ल छाटे ल परही जी।
मया पिरीत के पौधा लगाये ल परही जी।
काबर भुलागे मनखे अपन करम ल
करम धरम मनखे ल सिखायें ल परही जी।
भुले रहिथे ऐहर नशाखोरी दुराचारी म
खींच के सोझ रद्दा म रेंगाये ल परही जी।
पुरखा के रीति रिवाज ल छोड़त जात हे
दिखावा छोड़के रीति रिवाज ल अपनाये ल परही जी।
ये माटी के सेवा जतन करेबर भुलागे रे
मशीनी के भरोसा ल छोड़ाये ल परही जी।
21वीं सदी म जीयत हन अउ बलि देथन ग
अंधविश्वास के थाती ल हटाये ल परही जी।
अबके लईकामन लोक लिहाज नइ जानय ग
पढ़ें लिखे के संग संस्कार धराये ल परही जी।
बहु बेटा मन दाई ददा के मान नइ करय ग
दाई ददा हे भगवान के रूप बताये ल परही जी।
ना कोनो अमीर ना कोनो गरीब जी
उच्च नीच के भेदभाव ल मिटाये ल परही जी।
कब तक जीबो हमन अंधियारी म"ज्ञानु"
जुरमिलके ये सब 'अंधयारी ल मिटाये' परही जी।
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -20//5//आचार्य तोषण

"मन के अंधियारा मिटाबो"
चल न ग भइय्या चल ओ दीदी ,सुमता के दीया जलाबो
देवारी तिहार के पावन परब म ,मन के अंधियारा मिटाबो

लाबोन दीया नवा करसा मढाबो, डेहरी हमर उजियार होही
लछमी दाई के किरपा बरसही, अन्न धन के भंडार बोही
दया मया अऊ भाईचारा के ,जूरमिल दीया जराबो
चल न ग भइय्या चल ओ दीदी ,सुमता के दीया जलाबो
देवारी तिहार के पावन परब म ,मन के अंधियारा मिटाबो

धनतेरस म तेरा दीया संन ,देव धनवंतरी मनाइके
नरक चउदस के यमराजा ल,सरधा ले मांथ नंवाइके
आमावस म लछमी दाई बर,दीया के अंजोर बगराबो
चल न ग भइय्या चल ओ दीदी ,सुमता के दीया जलाबो
देवारी तिहार के पावन परब म ,मन के अंधियारा मिटाबो

एक्कम के दिन गोवरधन ल, हांथ जोड़ दुनो मनालेबो
बबरा सोंहारी खीर भात संग,गउमाता ल भोग लगालेबो
भाईदूज म भाई बहिनी संग,दुआ आशीष मनाबो
चल न ग भइय्या चल ओ दीदी ,सुमता के दीया जलाबो
देवारी तिहार के पावन परब म ,मन के अंधियारा मिटाबो

आतंकवाद के छाए अंधियारा, मोर भारत के कोरा म
कब उजियारा मोर देश म आही ,जवान सीरावय अगोरा म
जाए के पहिली ए दुनिया ले आतंकवाद ल दूरिहा कूदाबो
चल न ग भइय्या चल ओ दीदी ,सुमता के दीया जलाबो
देवारी तिहार के पावन परब म ,मन के अंधियारा मिटाबो
©®
आचार्य तोषण, धनगांव, डौंडीलोहारा बालोद
छत्तीसगढ़ ४९१७७१

पागा कलगी -20//4//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"

विषय:- मन के अंधियारी मेटव।
माटी के दिया सजाके,सुरहुत्ती के दिया जलाके।
अंगना के अंधियारी संग,मन के अंधियारी मेटव।
भष्टाचार के जाला झारव,आतंकवाद के कचरा बहारव।
भेदभाव के डबरा पाटव,सतभाव के उपहार बांटव।
मनखे मनखे एक बरोबर,सतबानी संदेश भाखव।
मान देय ले मान मिलथे,मनखे बानी भेश राखव।
हिरदे घर द्वारी चउक पुराके,देशप्रेम के रंग पोताके।
भाई बहिनी बाप महतारी संग,संगी संगवारी भेंटव।
माटी के दिया .................मन के अंधियारी मेटव।
शिक्षा के बंबर बारव,अशिक्षा के मुख टारव।
बेटी बेटा एक समान,दुनो बर आंखी उघारव।
दुनो ल शिक्षा संस्कार देके,कुल परवार ल तारव।
पार लगालौ डोंगा जिनगी के,मानवता ल धारव।
दुनो अंग दिया बाती जलाके,माटी के चोला पागे।
पहावय जिनगी अंजोर संग,रद्दा बर उजियारी छेंकव।
माटी के दिया.................मन के अंधियारी मेटव।
रूखराई के सेवाभाव,सुघर हवा संग जुड़ छांव।
बालपन के निष्कपट भाव,भेद रहित दउड़त पांव।
भोंमरा जरत श्रम पांव,चांउर उपर नही लिखे नाव।
स्वच्छ पुरवैया साफ पानी,सरग बरोबर गांव।
मनखे धरम करम निभाले,तन मन धन श्रम लगाले।
स्वच्छ भारत बनाये बर,मिलजुल भागीदारी देवव।
माटी के दिया................मन के अंधियारी मेटव।
रचना:- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602