सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

पागा कलगी -20//4//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"

विषय:- मन के अंधियारी मेटव।
माटी के दिया सजाके,सुरहुत्ती के दिया जलाके।
अंगना के अंधियारी संग,मन के अंधियारी मेटव।
भष्टाचार के जाला झारव,आतंकवाद के कचरा बहारव।
भेदभाव के डबरा पाटव,सतभाव के उपहार बांटव।
मनखे मनखे एक बरोबर,सतबानी संदेश भाखव।
मान देय ले मान मिलथे,मनखे बानी भेश राखव।
हिरदे घर द्वारी चउक पुराके,देशप्रेम के रंग पोताके।
भाई बहिनी बाप महतारी संग,संगी संगवारी भेंटव।
माटी के दिया .................मन के अंधियारी मेटव।
शिक्षा के बंबर बारव,अशिक्षा के मुख टारव।
बेटी बेटा एक समान,दुनो बर आंखी उघारव।
दुनो ल शिक्षा संस्कार देके,कुल परवार ल तारव।
पार लगालौ डोंगा जिनगी के,मानवता ल धारव।
दुनो अंग दिया बाती जलाके,माटी के चोला पागे।
पहावय जिनगी अंजोर संग,रद्दा बर उजियारी छेंकव।
माटी के दिया.................मन के अंधियारी मेटव।
रूखराई के सेवाभाव,सुघर हवा संग जुड़ छांव।
बालपन के निष्कपट भाव,भेद रहित दउड़त पांव।
भोंमरा जरत श्रम पांव,चांउर उपर नही लिखे नाव।
स्वच्छ पुरवैया साफ पानी,सरग बरोबर गांव।
मनखे धरम करम निभाले,तन मन धन श्रम लगाले।
स्वच्छ भारत बनाये बर,मिलजुल भागीदारी देवव।
माटी के दिया................मन के अंधियारी मेटव।
रचना:- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें