होरी आगे हवय....
ब्रज म खेले हवय होरी,
राधा अउ कृष्ण ह।
राधा अउ कृष्ण ह।
उड़े गुलाल चारों कोति,
माया के रंग बिखरे।
आनी बानी के रंग आगे,
एक-दूसर मनके चेहरा म लगाये।
माया के रंग बिखरे।
आनी बानी के रंग आगे,
एक-दूसर मनके चेहरा म लगाये।
आनी बानी ढंग ले खेलही मनखे मन
भज डरहिं मनखे मन फागुन के गोठ ल।
भज डरहिं मनखे मन फागुन के गोठ ल।
एकदिन होरी आजही
होरे जलाये बर जाहि गांव के मुखिया ह,
सुभमुहर्त म जलाये बर जाहि मनखे मन।
होरे जलाये बर जाहि गांव के मुखिया ह,
सुभमुहर्त म जलाये बर जाहि मनखे मन।
चारो कोति उड़ाही रंग,
आगे हवय होरी तिहार
फागुन के महीना जाढ़ बुझा गे।
आगे हवय होरी तिहार
फागुन के महीना जाढ़ बुझा गे।
आगे हवय होरी तिहार,
मिल जुल के रंग लगाये
सबके घर म बने गढ़ कलेवा
अपन अपन ले बधाई देवय।
मिल जुल के रंग लगाये
सबके घर म बने गढ़ कलेवा
अपन अपन ले बधाई देवय।
-अमित चन्द्रवंशी "सुपा"
उम्र-17•11वर्ष 'विद्यार्थी'
उम्र-17•11वर्ष 'विद्यार्थी'