बुधवार, 22 मार्च 2017

पागा कलगी-29 //3//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

विषय-होली हे
विधा-दोहा मा लिखे के प्रयास
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सरसों माते खेत मा,मउहाँ हा ममहाय।
झूमत हे हरियर ग़हूँ,देखत मन हरषाय।।
आमा डारा कोयली,बइठे छेड़े तान।
आत फगुनवाँ देखके,टेसू मारे शान।।
होली हे होली भई,कहत हवे सब आज।
गॉव गली के चौक मा,सजे फाग के साज़।।
लइका पिचकारी धरे,संगे रंग गुलाल।
नीला पीला लाल मा,रंगे हावय गाल।।
गॉव गॉव बाजत हवे,झाँझ नगाड़ा ढोल।
देवत हे संदेश ला,मीठा बानी बोल।।
मया प्रीत के रंग मा,रंगव सबला आज।
बैर कपट ला छोड़ दव,होवय झन नाराज।।
सुग्घर मिलके सब रहय,छोड़ राग अउ द्वेष।
दया मया ला बाँट लव,देवत हे संदेश।।
खेलत कूदत हे सबो,संगी साथी मस्त।
दारू गाँजा पी बबा,होंगे हावय पस्त।।
देवर भौजी के हँसी,गुँजत हवे चहुँओर।
लाज शरम ला छोड़के,किंजरय गली खोर।।
दुश्मन मौका खोजथे,करथे जी हुड़दंग।
देख ताक के खेलहूँ,होली सबके संग।।
दया मया पाबे कहाँ,जबरन डाले रंग।
कखरो झन होवय बुरा,होली के हुड़दंग।।
माते होली रंग मा,संगी साथी संग।
फुँकत हवे कोनों चिलम,दारू गाँजा भंग।।
सोहारी भजिया बरा,घर घर चुरथे आज।
दाई हा भीड़े हवे,दिन भर करथे काज।।
मिलके होली खेलबो,संगी साथी साथ।
छोटे ला देबो मया,बड़े नवाबो माथ।।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

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