बुधवार, 22 मार्च 2017

पागा कलगी-29//6//चोवाराम बादल

विषय----होली।
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सम्माननीय मंच के सम्मुख एक ठन *गीत* प्रस्तुत हे।
अब तो होली खेले मा डर लागे सँगवारी,
अब तो होरी खेले मा डर लागे ।।
नेम प्रेम मोर गांव गँवई के,
कोन कोती जी गँवागे ।। अब तो--
(1)
काला रंग गुलाल लगाबे, कइसे हँसी गोठियाबे।
गाँव के गाँव बूड़े मंद मउहाँ, खोजे आरुग नइ पाबे।
मनखे के अंतस घपटे अँधियारी,मरी मसान समागे।
अब तो होली खेले मा डर लागे-------
(2)
बात बात मा चाक़ू छुरी, मुँह बंदूक गारी के गोली ।
नइये राधा नइये गोपी,सोंच समझ के करबे ठिठोली ।
हिरनाकश्यप के निसचर सेना, गली गली मा ढिलागे ।
अब तो होली खेले मा डर लागे-------
(3)
कोन गाही फाग कोन बजाही नंगारा,सुकालु दुकालू बुढ़ागे ।
का पिचकारी का रंग कटोरा, लइका लोग भूलागे ।
ठेठरी खुरमी के नाँव बुतागे, मछरी कुकरा पउलागे।
अब तो होली खेले मा डर लागे-----
(4)
गांव लहुटगे घोड़ा करायेत,आधा शहर आधा बस्ती।
सिधवा मन होगे घर खुसरा ,नंगरा लुच्चा के चलती।
पुरखा मन के जी पुरखौती,छईहाँ कस दुरिहागे ।
अब तो होली खेले मा डर लागे ।
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-चोवाराम बादल

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