मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

पागा कलगी-30/5/ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

विषय-गरमी छुट्टी मा ममा गॉव जाबो
विधा-दोहा
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सुरता मोला आत हें,आमा अमली छाँव।
होंगे छुट्टी स्कूल मा,जाहुँ ममा के गाँव।।
आथे जी अड़बड़ मजा,करथन मस्ती रोज।
मंझनियाँ भर घूमना,मामी करथें खोज।।
भाई बहिनी जुरमिलें,करथन चिहूँर चोर।
काले चुप मामी ममा,हँसय देखके जोर।।
परछी फाँदे झूलना,मिलके झूलन झूल।
ईटा हा गाड़ी बनें,उड़े चलय ता धूल।।
कहाँ लुकागे चोर हा,करे सिपाही खोज।
चोर पुलिस के खेल ला,खेलन संगी रोज।।
गिल्ली डंडा मिल हमन,खेलन संगी साथ।
बाटी राहय जेब मा,भौरा डोरी हाथ।।
टीपा हा बाजा बनय,मिलके गावन फाग।
हँसी खुसी जिनगी बितय,द्वेष रहय ना राग।।
ज्यादा बदमाशी करन,मामी अइठे कान।
भड़के नानी जोर हा,मामी के मरे बिहान।।
गाड़ी बइला मा नना,लेगय मेला हाट।
चना चबेना संगमा,खावन भजिया चाट।।
लेवय अउ कुरता नवा,जूता मोंजा साथ।
खुश होके जी हमन,चरन नवावन माथ।।
सुरता आथे बचपना ,गॉव गली अउ खोर।
मनमौजी फक्कड़ रहन,ना तोरी ना मोर।।
काबर होंगे हन बड़े,चिंता गज़ब सताय।
पेट बिकाली मा सबो,जिनगी रंग उड़ाय।।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा(छः ग)

पागा कलगी-30/4/कु. रेखा निर्मलकर

बिषय- गरमी के छुट्टी म ममा घर जाबो,
गरमी के छुट्टी म हम तो , ममा घर जाबो,
आमा अमली के दिन आए, मीठ चार तेंदू खाबो,
दिखथे कहा अब बैला गाडी़ शहर के रद्दा म,
बइठ बैला गाडी़ म बरातिया जाये के मजा पाबो,
बडे बिहनिया गांव म हवा निरमल बोहाथे
नदिया तरिया के नहावई म अडबड मजा आथे,
संझा बिहनिया होथे सुख दुःख के गोठ,
पांव परे ले बडे बुर्जुग के जिनगी हर संवरथे,
रतिहा के बोरे बासी गरमी म ठंडक देथे,
मामी के रांधे चिला रोटी अडबड मिठाथे,
निचट सिधवा गांव के लइका संग बाटी भांवरा खेलन,
हमला जीता के खुश हो जथे, अइसन संगी कहा होथे,
ममा दाई रोज सुनाथे राजा रानी के कहानी,
आजा बबा सिखाथे रामायण गीता के बानी,
आथे जब घर जाये के बेरा, मया अडबड बढ़ जथे,
ममा मामी के आंखी म आंसू के धार बोहाथे,,,
कु. रेखा निर्मलकर
ग्राम कन्नेवाडा
जिला बालोद छत्तीसगढ़

पागा कलगी-30/3/विक्रमसिंह

विषय - गर्मी के छुट्टी मा जाबो ममा गांव ..
फरवरी मा पेपर शुरू होईस
मार्च मा सिराईस हे । 
पेपर के बाद स्कूल के होगे छुट्टी
ममा गांव के सुरता आईस हे ।। 1।।
सम्बलपुर के ओ पार हावे
मोर ममा गांव खेड़ा ।
साइकिल धर के आईस मोर ममा
बईठेव नहीं मै बेड़ा ।।2।।
खेड़ा ले मुरता आय रहिस
मोर ममा लेगे बर मोला ।
जूता मोजा पहीरे रहीस
मोर ममा धरे रहीस झोला ।। 3।।
घर मा आके ममा ह
दाई के पांव परिस हे ।
संग मा लाय झोला ल
भीतरी कोती धरिस हे ।।4।।
ममा कहिस दाई ल
भेज दे भांचा ल घूम के आही ।
गर्मी के छुट्टी होगे हे
अपन ममा गांव देख आही ।। 5।।
दाई ह मोला हव जा
कहिके ममा गांव भेजीईस हे ।
ज्यादा झन घुमबे बेटा
कहिके मोला चेताईस हे ।। 6।।
मोला देख के ममा दाई ह
मुच ले मुस्काईस हे ।
बने अगेस बेटा कहिके
अपन तीर मा बलाईस हे।।7।।
ओतका मा लोटा मा
पानी धर के मामी निकगे ।
हमर आरो ल सुन के
मौसी अऊ नाना निकगे ।।8।।
आ बईठ भांचा कहिके
कुर्सी मा बईठारिस हे ।
बड दिन मा आय कहिके
मोर पांव ल पखारिस हे ।। 9।।
मोर भांचा आये हे कहिके
मोर मामी ह कुकरी रांध डारिस ।
मै ओला नई खाव कहेव त
आलू भाटा ल सुधार डारिस ।।10।।
बिक्कट मजा करेव ममा गांव मा
घूम घूम के खाय हव ।
गर्मी के दिन तो रहिस हे संगवारी
तरिया मा कुद कुद के नहाये हव ।।11।।
विक्रमसिंह #लाला
मुरता ,नवागढ , बेमेतरा
7697308413

बुधवार, 22 मार्च 2017

पागा कलगी-30//2//देवेन्द्र कुमार ध्रुव

गरमी के छुट्टी मा जाबो ममा गाँव...
रोज गिन गिन के बेरा ला मैहर पहांथव,
मन होगे हे अधिरहा,बेरा ले देके बिताथव,
गुनथो ऐ परिक्छा ला होवन तो दे एक घांव,
गरमी के छुट्टी मा हमन जाबो ममा गाँव....
आहूँ केहे ममा हा हमन ला लेगे बर,
अपन बहिनी अऊ दमांद ला देखे बर,
घेरी बेरी आरो पाके खोर कोती जांव,
जाना हे गाँव कहिके अब्बड़ मटमटांव....
गरमी के छुट्टी...
सबो झिन खुस रही,हमनला आही कहिके,
हांसी ठिठोली करही,भारी गदबदाही कहिके,
आवत हमनला जान,सबो हमरआरो लिही,
छानी मा बइठे कागा,जब करही काँव काँव..
गरमी के छुट्टी...
ममादाई बइठे होही हमर अगोरा मा,
नाना किस्सा सुनाही बईठार कोरा मा,
मौसी हा पुचकारही,ममा हा दुलारही,
अऊ मामी हा पानी देके,परही हमर पाँव...
गरमी के छुट्टी ....
आमा डार मा,कोयली कुक सुनावत होही,
फरगे चार,पाके तेन्दू सबो खावत होही,
बर मा डंडा पचरंगा खेलत,झुलबो लाहा मा,
बइठ सुरताये बर हे,सुघ्घर नीम के छांव...
गरमी के छुट्टी ...
रंग रंग के जीनिस ममादाई घर चुरथे,
खंगय नही कभू सबो झन ला पुरथे,
सबो मोला अपन अपन हाथ मा खवाये,
मन कथे,काला खाव अऊ काला मे बचाव..
गरमी के छुट्टी...
मोर बर नवा कुरता पैंठ लेवाहू,
अऊ मोर बहिनी बर नवा सांटी,
खेलबो दिनभर नंगत भंवरा अऊ बांटी,
चलही घेरी बेरी तिरी पासा के दांव...
गरमी के छुट्टी...
बाढ़हे गरमी ताहन तरिया मा कूदना,
रतिहा खटिया जठाये दुवार मा सूतना,
कतका मजा आथे तेला अऊ का बताव,
ममा गाँव के सुरता ला मे कभू नई भुलाव...
गरमी के छुट्टी...
लहुटे के बेरा मोर आंसू हा डबडबाही,
तीर मा बला के ममादाई,छाती ले लगाही,
फेर आबे बेटा कहिके,ओ पइसा धराही,
घर आवत आवत मे सबो ला सोरियाव...
गरमी के छुट्टी....
रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग)

पागा कलगी-30//1//​ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

विषय - गर्मी छुट्टी मा जाबो ममा गाँव
विधा - सार छंद।।
छुट्टी गरमी आगे भाई,ममा गाँव जी जाबो।
आनी बानी खाइ खजाना,दूध मलाई खाबो।।१
अमली पेड़ झूलना बँधही,झूले बर झूलेना।
बीच ताल मा तउड़त जाबो,तोड़े पान पुरेना।।२
पीपर पाना तुतरी बजही,खाली टीपा बाजा।
सगली भतली संग खेलबो,बनके रानी राजा।।३
कान पकड़ के ममा खीचही,करबो जब शैतानी।
हासी ठठ्ठा मामी सइही,करबो जी मनमानी।।४
सुने ममा दाई के लोरी,रतिहा रतिहा जगबो।
बढ़िया बढ़िया बात बताही,बांधे गठरी धरबो।।५
✍​ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
बिलासपुर (छ.ग.) 8889747888

पागा कलगी-29//11//अनिल कुमार पाली

विषय-होली हे
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रंग हे गुलाल हे
रंग हे गुलाल हे आगे फागुन के तिहार हे।
रंग म मोर रंग जा गोरी तोर बर मया अउ दुलार हे।
लाल-लाल रंगे गोरी तोर गाल हे।
दिखे राधा रानी कस तै तो कमाल हे।
रंग म अपन तै रंग ले मोला गोरी
आये हे सुग्घर फागुन के तिहार हे।
मीठ हे अउ रंग के बने मिठास हे।
तोर अंगना म मोर बंधे बढ़ आस हे।
नवा खवाई के घर म नवा-नवा स्वाद हे।
रंग के तिहार हे गोरी मया अउ दुलार हे।
लाईक खेले रंग अउ बुढ़वा दिखे जवान हे।
होली के तिहार हे माते रंग अउ गुलाल हे।
सब संगवारी मिल के मनात होली के तिहार हे।
रंग म तै आ रंग जा मोर ।
आये होली फागुन के तिहार हे।
कविता रचना:-
अनिल कुमार पाली तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़
आईटीआई मगरलोड धमतरी।

पागा कलगी-29//10//ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

विषय - होली
विधा - सरसी छंद
नइ तो अब मन रंगय होली,फीका होगे रंग।
गली खोर अब सुन्ना लागे,छुटगे साथी संग।।
संग फाग नंगाड़ा बाजय,उड़य रंग गुलाल।
अब तो फूहड़ गाना बजथे,होथे गांव बवाल।।
छोड़ शहर ला दौड़त जाँवव,माने होली गाँव।
मया पिरित मैं सुघ्घर पाँवव,संग फगुनवा छांव।।
कहाँ नदाँगे ठेठरी खुरमी,चौसेला पकवान।
अब तो दारू मुरगा चढ़थे,पथरा के भगवान।।
राधा तरसे मुरली खाती,मीरा तरसे रंग।
प्रेम बिना अब होली तरसे,खेलिन काकर संग।।
आवव मिलके होली खेलिन,जंगल-पानी थाम।
प्रकृति हे जिनगी के संगी,इही कृष्ण अउ राम।।
कहाँ गवाँ गे पुरखा गहना,सोचव मानुष जात।
लावव भाईचारा के रद्दा,गजानंद के बात।।
✍​ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
बिलासपुर -8889747888