विषय - होली
विधा - सरसी छंद
विधा - सरसी छंद
नइ तो अब मन रंगय होली,फीका होगे रंग।
गली खोर अब सुन्ना लागे,छुटगे साथी संग।।
गली खोर अब सुन्ना लागे,छुटगे साथी संग।।
संग फाग नंगाड़ा बाजय,उड़य रंग गुलाल।
अब तो फूहड़ गाना बजथे,होथे गांव बवाल।।
अब तो फूहड़ गाना बजथे,होथे गांव बवाल।।
छोड़ शहर ला दौड़त जाँवव,माने होली गाँव।
मया पिरित मैं सुघ्घर पाँवव,संग फगुनवा छांव।।
मया पिरित मैं सुघ्घर पाँवव,संग फगुनवा छांव।।
कहाँ नदाँगे ठेठरी खुरमी,चौसेला पकवान।
अब तो दारू मुरगा चढ़थे,पथरा के भगवान।।
अब तो दारू मुरगा चढ़थे,पथरा के भगवान।।
राधा तरसे मुरली खाती,मीरा तरसे रंग।
प्रेम बिना अब होली तरसे,खेलिन काकर संग।।
प्रेम बिना अब होली तरसे,खेलिन काकर संग।।
आवव मिलके होली खेलिन,जंगल-पानी थाम।
प्रकृति हे जिनगी के संगी,इही कृष्ण अउ राम।।
प्रकृति हे जिनगी के संगी,इही कृष्ण अउ राम।।
कहाँ गवाँ गे पुरखा गहना,सोचव मानुष जात।
लावव भाईचारा के रद्दा,गजानंद के बात।।
लावव भाईचारा के रद्दा,गजानंद के बात।।
✍ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
बिलासपुर -8889747888
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