बुधवार, 22 मार्च 2017

पागा कलगी-30//2//देवेन्द्र कुमार ध्रुव

गरमी के छुट्टी मा जाबो ममा गाँव...
रोज गिन गिन के बेरा ला मैहर पहांथव,
मन होगे हे अधिरहा,बेरा ले देके बिताथव,
गुनथो ऐ परिक्छा ला होवन तो दे एक घांव,
गरमी के छुट्टी मा हमन जाबो ममा गाँव....
आहूँ केहे ममा हा हमन ला लेगे बर,
अपन बहिनी अऊ दमांद ला देखे बर,
घेरी बेरी आरो पाके खोर कोती जांव,
जाना हे गाँव कहिके अब्बड़ मटमटांव....
गरमी के छुट्टी...
सबो झिन खुस रही,हमनला आही कहिके,
हांसी ठिठोली करही,भारी गदबदाही कहिके,
आवत हमनला जान,सबो हमरआरो लिही,
छानी मा बइठे कागा,जब करही काँव काँव..
गरमी के छुट्टी...
ममादाई बइठे होही हमर अगोरा मा,
नाना किस्सा सुनाही बईठार कोरा मा,
मौसी हा पुचकारही,ममा हा दुलारही,
अऊ मामी हा पानी देके,परही हमर पाँव...
गरमी के छुट्टी ....
आमा डार मा,कोयली कुक सुनावत होही,
फरगे चार,पाके तेन्दू सबो खावत होही,
बर मा डंडा पचरंगा खेलत,झुलबो लाहा मा,
बइठ सुरताये बर हे,सुघ्घर नीम के छांव...
गरमी के छुट्टी ...
रंग रंग के जीनिस ममादाई घर चुरथे,
खंगय नही कभू सबो झन ला पुरथे,
सबो मोला अपन अपन हाथ मा खवाये,
मन कथे,काला खाव अऊ काला मे बचाव..
गरमी के छुट्टी...
मोर बर नवा कुरता पैंठ लेवाहू,
अऊ मोर बहिनी बर नवा सांटी,
खेलबो दिनभर नंगत भंवरा अऊ बांटी,
चलही घेरी बेरी तिरी पासा के दांव...
गरमी के छुट्टी...
बाढ़हे गरमी ताहन तरिया मा कूदना,
रतिहा खटिया जठाये दुवार मा सूतना,
कतका मजा आथे तेला अऊ का बताव,
ममा गाँव के सुरता ला मे कभू नई भुलाव...
गरमी के छुट्टी...
लहुटे के बेरा मोर आंसू हा डबडबाही,
तीर मा बला के ममादाई,छाती ले लगाही,
फेर आबे बेटा कहिके,ओ पइसा धराही,
घर आवत आवत मे सबो ला सोरियाव...
गरमी के छुट्टी....
रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग)

पागा कलगी-30//1//​ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

विषय - गर्मी छुट्टी मा जाबो ममा गाँव
विधा - सार छंद।।
छुट्टी गरमी आगे भाई,ममा गाँव जी जाबो।
आनी बानी खाइ खजाना,दूध मलाई खाबो।।१
अमली पेड़ झूलना बँधही,झूले बर झूलेना।
बीच ताल मा तउड़त जाबो,तोड़े पान पुरेना।।२
पीपर पाना तुतरी बजही,खाली टीपा बाजा।
सगली भतली संग खेलबो,बनके रानी राजा।।३
कान पकड़ के ममा खीचही,करबो जब शैतानी।
हासी ठठ्ठा मामी सइही,करबो जी मनमानी।।४
सुने ममा दाई के लोरी,रतिहा रतिहा जगबो।
बढ़िया बढ़िया बात बताही,बांधे गठरी धरबो।।५
✍​ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
बिलासपुर (छ.ग.) 8889747888

पागा कलगी-29//11//अनिल कुमार पाली

विषय-होली हे
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रंग हे गुलाल हे
रंग हे गुलाल हे आगे फागुन के तिहार हे।
रंग म मोर रंग जा गोरी तोर बर मया अउ दुलार हे।
लाल-लाल रंगे गोरी तोर गाल हे।
दिखे राधा रानी कस तै तो कमाल हे।
रंग म अपन तै रंग ले मोला गोरी
आये हे सुग्घर फागुन के तिहार हे।
मीठ हे अउ रंग के बने मिठास हे।
तोर अंगना म मोर बंधे बढ़ आस हे।
नवा खवाई के घर म नवा-नवा स्वाद हे।
रंग के तिहार हे गोरी मया अउ दुलार हे।
लाईक खेले रंग अउ बुढ़वा दिखे जवान हे।
होली के तिहार हे माते रंग अउ गुलाल हे।
सब संगवारी मिल के मनात होली के तिहार हे।
रंग म तै आ रंग जा मोर ।
आये होली फागुन के तिहार हे।
कविता रचना:-
अनिल कुमार पाली तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़
आईटीआई मगरलोड धमतरी।

पागा कलगी-29//10//ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

विषय - होली
विधा - सरसी छंद
नइ तो अब मन रंगय होली,फीका होगे रंग।
गली खोर अब सुन्ना लागे,छुटगे साथी संग।।
संग फाग नंगाड़ा बाजय,उड़य रंग गुलाल।
अब तो फूहड़ गाना बजथे,होथे गांव बवाल।।
छोड़ शहर ला दौड़त जाँवव,माने होली गाँव।
मया पिरित मैं सुघ्घर पाँवव,संग फगुनवा छांव।।
कहाँ नदाँगे ठेठरी खुरमी,चौसेला पकवान।
अब तो दारू मुरगा चढ़थे,पथरा के भगवान।।
राधा तरसे मुरली खाती,मीरा तरसे रंग।
प्रेम बिना अब होली तरसे,खेलिन काकर संग।।
आवव मिलके होली खेलिन,जंगल-पानी थाम।
प्रकृति हे जिनगी के संगी,इही कृष्ण अउ राम।।
कहाँ गवाँ गे पुरखा गहना,सोचव मानुष जात।
लावव भाईचारा के रद्दा,गजानंद के बात।।
✍​ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
बिलासपुर -8889747888

पागा कलगी-29 //9//अमित चन्द्रवंशी "सुपा"

होरी आगे हवय....
ब्रज म खेले हवय होरी,
राधा अउ कृष्ण ह।
उड़े गुलाल चारों कोति,
माया के रंग बिखरे।
आनी बानी के रंग आगे,
एक-दूसर मनके चेहरा म लगाये।
आनी बानी ढंग ले खेलही मनखे मन
भज डरहिं मनखे मन फागुन के गोठ ल।
एकदिन होरी आजही
होरे जलाये बर जाहि गांव के मुखिया ह,
सुभमुहर्त म जलाये बर जाहि मनखे मन।
चारो कोति उड़ाही रंग,
आगे हवय होरी तिहार
फागुन के महीना जाढ़ बुझा गे।
आगे हवय होरी तिहार,
मिल जुल के रंग लगाये
सबके घर म बने गढ़ कलेवा
अपन अपन ले बधाई देवय।
-अमित चन्द्रवंशी "सुपा"
उम्र-17•11वर्ष 'विद्यार्थी'

पागा कलगी-29 //8//संतोष फरिकार(मयारू)

***होली हे***
संगी गांव आय हे तीहार मनबो होली हे
खेलबोन रंग गुलाल होली तीहार आय हे
गुड़ी चौक जाबोन नगाड़ा ल बजाबोन
फाग गीत गाबोन जमो संगी सकलाय हे
बरसे रंग अउ गुलाल,बरसे रंग अउ गुलाल,
आगे फागुन तिहार संगी उडाबोन रंग लाल
जिनगी हे चार दिन के मनाबो होली तीहार
महुआ के रस पीए जमो झन भकवाय हे
बाजत हे ढोल नगारा उड़त हे रंग गुलाल
पीहव झन मंउहा रस तीहार हो जहय बेकार
दिन के पीचकारी संझा कुन खेलबोन गुलाल
चौक चौक म संगी मन एक साथ जुरियाय हे
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संतोष फरिकार(मयारू)
देवरी भाटापारा

पागा कलगी-29//7//कु. रेखा निर्मलकर

"होली"
मया के रंग घोलें होली
मया के बोली बोलें होली।
-तन मन ला रंगले सुग्घर
बैर-कपट छोड़ करले उज्जर।
मनखे ला मनखे संग जोड़े होली
मया के बोली...
2-रंगी बिरंगी उड़त गुलाल हे
लाली गुलाबी सबके गाल हे।
भेदभाव ऊँचनीच ला तोड़े होली
मया के बोली...
3-रंग भरके मारे पिचकारी
लइकामन मिल मारे किलकारी
तन मन संगे संग डोले होली
मया के बोली....
4-बजे नँगारा अउ फाग गावय
संगी जहूँरिया मिलके नाचय
दुःख सुख ला बाँटे होली
मया के बोली....
कु. रेखा निर्मलकर
कन्नेवाड़ा बालोद(छः ग)