बुधवार, 3 मई 2017

पागा कलगी -32//1//राजकिशोर धिरही

*गर्मी मा स्कूल*
उसनत हे गर्मी,नइये कोनो लंग कूल,
चलव पढ़े बर चली, गर्मी मा स्कूल।
दिन भर बेड़ी देवाए हवे, फइरका के,
घाम मा जरत रहिथे गोड़, लइका के।
लादे बस्ता,कान ल झांझ झोरत हे,
स्कूल जाए बर,संगवारी अगोरत हे।
स्कूल मा पढ़त क ख ग मांगत पानी,
गुरु जी टेबल मा उंघत सुना कहानी।
सुरुज उथे,बड़े बिहनहिया झूल झूल,
चलव पढ़े बर चली,गर्मी मा स्कूल।
पसीना हर चुचवावत हे,मुड़ी ले गोड़,
करी प्राथना,स्कूल मा हम हांथ जोड़।
गुरूजी के हवे, गर्मी मा हाल बेहाल,
गर्मी मा पढ़ावत, हांथ मा धर रुमाल।
डंडा पचरंगा,आमा टूकत झन भूल,
चलव पढ़े बर चली,गर्मी मा स्कूल।
राजकिशोर धिरही
ग्राम+पोस्ट-तिलई
जांजगीर-चांपा

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