रविवार, 14 फ़रवरी 2016

पागाकलगी -3 //सूर्यकांत गुप्ता

छत्तीसगढ़ पागाकलगी -3 "कलेवा"
(अलवा जलवा दू चार लाइन)
पागा कलगी खोंच लौ, संउर कलेवा 'राज'।
ममादाइ सुरता करौं, रहि रहि के मैं आज।।
खुसी गमी दूनो जघा, बनै कलेवा जान।
खवा खवा पहुना सगा, राखन उंखर मान।।
बिना कलेवा जान लौ, मानन नही तिहार।
चढ़ै प्रेम के चासनी, नेउतौ झारा झार।।
नाव कलेवा देत हौं, देस काल अनुकूल।
कुछ बारो महिना बनै, सदा सोहागी फूल।।
सुख दुख दूनो के संगवारी।
बरा उरिद के अउ सोंहारी।।
मिठ मिठ चीज ल कहैं कलेवा।
कहैं सियानिन संग पतेवा।।
(पहिली हम अपन ममा दाइ ल कहत सुने हन के नई बनावत हौ का ओ कलेवा पतेवा...)
किसिम कसिम चीला चंउसेला।
दोसा के भाई सउतेला।।
बोबरा ठेठरी खुर्मी जान।
सावन भादो के पहिचान।।
बरा उरिद के पितर पाख के।
लौ सुवाद कोंहड़ा साग के।।
मनै दसहरा राँधौ रोंठ।
हनुमत भोग लगावौ पोठ।।
खाजा पपची खाव अनरसा।
करी लाड़ु बर झन मन तरसा।।
बर बिहाव पकवान जरूरी।
जोरैं संग संग बरी बिजउरी।।
होरी देवारी देहरउरी।
संग भांटा जी बरी अदउरी।।
छूटत हे बूंदी करी, बिरिया पिड़िया नाव।
सुरता अतके आत हे, मैं तो अड़हा आँव।।
हमर राज छत्तीसगढ़, खान पान के खान।
पहुना के सन्मान बर, आगू रथे सियान।।
जय जोहार.....
सूर्यकांत गुप्ता
1009 सिंधियानगर दुर्ग (छ. ग

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

पागा कलगी--3//मिलन मलरिहा



छत्तीसगढ के पागा कलगी"--3 "छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता"
विषय--------// '''कलेवा'''//-------------
.
.
सतजूग म रहीच धरम, बहुते पहुना आय।
मानय ओला देव सहि, कलेवा ओहि खाय।।
.
दूध खीर मेवा छनय, घर—घर भोज खवाय।
हिरदय गदगद हो जयव, भरभर थारी पाय।।
.
कलजुग मनखे नव करम, पहुना बन ललचाय।
दारु मुरगा मारबे, तभेच तो गुन गाय।।
.
बीही आमा कलिन्दर, असल मेवा कहाय।
सतके रद्दा नइ धरय, नसा म सब पोताय।।
.
गुटका पाउच अब हवय, अटल भोग चटुकार।
आजके 'कलेवा' एहि ल, मानत हे सनसार।।
.
.
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

पागा कलगी 3//राजेश कुमार निषाद

।।कलेवा।।

छत्तीसगढ़ के कलेवा बढ़ सुघ्घर लागथे ग।
आनि बानी के पकवान बने हे गजब के स्वाद आथे ग।
खीर पुड़ी बड़ा सुहारी।
घर म बनाये दीदी बहिनी अऊ महतारी।
पड़ोसी घलो येकर गोठ गोठियाथे ग।
आनि बानी के पकवान बने हे गजब के स्वाद आथे ग।
ठेठरी खुरमी अऊ नमकीन के बात निराला हे।
महर महर महके जे भजिया गुलगुला हे।
ये भजिया ल देख बबा के मुंह म पानी आथे ग।
आनि बानी पकवान बने हे गजब के स्वाद आथे ग।
होवत बिहनिया घर म बनय मुठिया रोटी अऊ चीला।
दतवन मुखारी करके खाये सब माईपीला।
रसगुल्ला अऊ बालुसाय के का कहना हे।
जलेबी ल देख के सबके लार टपकना हे।
अइरसा रोटी अऊ चउसेला मिरचा भजिया सब ल भाथे।
आनि बानी के पकवान बने हे गजब के स्वाद आथे।
परसा पान म बने अंगाकर रोटी सबके मन भाये।
टमाटर चटनी संग दबा के येला खाये।
ये हमर कलेवा खाये बर सब एक दूसर ल बलाथे।
छत्तीसगढ़ के कलेवा बढ़ सुघ्घर लागथे।
आनि बानी के पकवान बने हे गजब के स्वाद आथे।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

पागा कलगी क्र.3// अशोक साहू

।कलेवा छत्तीसगढ के।
मोर छत्तीसगढ के रोटी कलेवा
सुहावय मोला बढ़िया।
बड सुवाद ले ले के खाथन
हमन छत्तीसगढिया।।
अंगाकर रोटी के नाव सुन के
मुंह मे लार टपकथे।
फरा रोटी पताल चटनी संग
खाये खाये के मन करथे।।
गंहू पिसान के गुलगुल भजिया
के गोठ ल झन पूछ।
डोकरा बबा अउ डोकरी दाईं
लीलय गुट गुट।।
तिज तिहार के बेरा आथे
ठेठरी खुरमी के पारी।
ग़ज़ब सुहाथे चांऊर चौसेला
गंहूँ पिसान के सोंहारी।।
नवा चांउर के मुठिया रोटी
अबड मन ल भाथे।
माघ पुस म घरो घर
एकरेच गुण ल गाथे।।
बिडिया पपची खोजंव तोला
हाय रे मोर रोटी चीला।
अईरसा रोटी के काय कहना
मीठे मीठ खाथन माईपीला।।


अशोक साहू, भानसोज
तह. आरंग , जि. रायपुर

पागा कलगी 03//देवेन्द्र कुमार ध्रुव


**** कलेवा छत्तीसगढ के *****
जेन भी खाथे छत्तीसगढ़ के कलेवा ला
ओ भुला जथे मिठाई मिश्री अउ मेवा ला
पहुना के सत्कार बर परब तिहार बर
बनथे छत्तीसगढ़ में आनी बानी पकवान
जेन दिलाथे छतीसगढ़ ला अलगे पहिचान
चाउर पिसान सन मया घोरे बनथे चीला
पताल चटनी संग अंगाकर खावै माई पीला
बटकी मा बासी संग मा आमा के अथान
लहसुन मिर्चा पिसाये सील लोढहा मा
कोदोअउ मडिया पेज के सब करे गुणगान
गुलगुल भजिया अउ बरा सोहारी
मुठिया रोटी संग मा सबके चिन्हारी
करईया हरदम ख़ुशी अउ मया के बरसा
ठेठरी खुरमी कटवारोटी अरसा
लाई चना मुर्रा,करी लाडू ला नई भुलान
जब जब कोनो तिहार के बेरा आही
जुरमिल सबो एके जगा सकलाही
पागे कतरा थारी मा सज जाही
दुधफरा के स्वाद ला कोन भुलाही
मन गदगद होथे जब जाथे ओती धियान

रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव बेलर
(फुटहा करम)
9753524905

पागा कलगी 03 //दिनेश देवांगन "दिव्य"


छत्तीसगढ़ के पागा कलगी क्रमांक - 03 बर गीत
विषय - कलेवा (छत्तीसगढ़ के)
विधा - आल्हा छंद
सुनव सुनाथँव छत्तीसगढ़ी, 
किसम किसम के मय पकवान !
धान कटोरा जेखर भुँइया,
घर घर चांउर सोभयमान !!
घारी चीला अउ चौसेला,
बबरा खाजा कुसली रोंठ !
छतीसगढ़िया सबले बढ़िया,
नई लबारी सत ये गोंठ !!
दाई खाथय ददा खवाथय,
खुरमा कतरा के मिसठान !
सुनव सुनाथँव छत्तीसगढ़ी,
किसम किसम के मय पकवान !
धान कटोरा जेखर भुँइया,
घर घर चांउर सोभयमान !!
गर्भ सातवां बेटी के ता,
कुसली पपची माँ भिजवाय !
तीजा पोरा अउ तिहार मा,
ठेठरि खुरमी सब ला भाय !
खाथे बाबू अउ अधिकारी,
डार मया जब देत किसान !
सुनव सुनाथँव छत्तीसगढ़ी,
किसम किसम के मय पकवान !
धान कटोरा जेखर भुँइया,
घर घर चांउर सोभयमान !!
दूध फरा सावन मा बनथे,
भादों मा ईढर के चाप !
जाड़ महीना चाउंर चीला,
खा चटनी मा आगी ताप !!
बनय छींट के लाडू संगी,
होथे जब जब कन्यादान !!
सुनव सुनाथँव छत्तीसगढ़ी,
किसम किसम के मय पकवान !
धान कटोरा जेखर भुँइया,
घर घर चांउर सोभयमान !!
बरा कहाथे सुख दुख साथी,
छादी या मरनी के भोज !
पितर पाक मा घर घर बनथे,
सरलग बरा पनदरा रोज !!
इही हमर सनसकरिति हावय,
इही हमर हावय पहचान !
सुनव सुनाथँव छत्तीसगढ़ी,
किसम किसम के मय पकवान !
धान कटोरा जेखर भुँइया,
घर घर चांउर सोभयमान !!
दिनेश देवांगन "दिव्य"
सारंगढ़ जिला - रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

पागा के कलगी क्र.3/ओमप्रकाश चौहान

🌻बड़ गुरतुर रस के हमर पकुवा हे 🌻
🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾
" किसान अउ पकरिती के जम्मो भरे दुलार हे,
बड़ गुरतुर रस के बनत हमर पकुवा हे।
किसम किसम के कलेवा हम खाएन,
फेर हमर पकुवा के जोड़ कभु नई पाएन।
बाबु खुसियार के हे गुरतुर बने रस,
थोड़िक चाउंरे पिसान ल डारे दे बस।
दुध खोपरा संग मा बने इलाइची मिला देबे,
रस ल बने अउंटत ले अउ खऊला लेबे।
तात तात मा येहर कम मिठाय,
रात रात भर साधे ले मिठास अउ भर आय।
संझा ले रात भर रस के पकुवा बनाएंन,
बिहनिया "कतरा" नाव ऐखर नवा धराएंन।
सुग्घर कोपरा म येला जमा लव,
बिहना सुरपुट सुरपुट तिहाँ 'खा' लव।
खात ले तुंहर दाँत भलेच किनकिना जाहि,
छत्तीसगढ़िया कलेवा तभेच सुरता आहि।
येमा जम्मो हमर मया पिरित ह अउंटे हे,
कतकोमन गुरतुर खाके आज ले नुन ल धरे हे।
ये सब म भुईयाँ के किरपा समोय हे
रस के रंग तभे ले सुग्घर मट मइला हे।
बड़ गुरतुर रस के बनत अइसन हमर कतरा हे,
मोहनी मया कस हमर कलेवा हे।
" बड़ गुरतुर रस के हमर येहर पकुवा हे।"
🌻ओमप्रकाश चौहान🌻
🌻बिलासपुर🌻