छत्तीसगढ के पागा कलगी"--3 "छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता"
विषय--------// '''कलेवा'''//-------------
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विषय--------// '''कलेवा'''//-------------
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सतजूग म रहीच धरम, बहुते पहुना आय।
मानय ओला देव सहि, कलेवा ओहि खाय।।
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दूध खीर मेवा छनय, घर—घर भोज खवाय।
हिरदय गदगद हो जयव, भरभर थारी पाय।।
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कलजुग मनखे नव करम, पहुना बन ललचाय।
दारु मुरगा मारबे, तभेच तो गुन गाय।।
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बीही आमा कलिन्दर, असल मेवा कहाय।
सतके रद्दा नइ धरय, नसा म सब पोताय।।
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गुटका पाउच अब हवय, अटल भोग चटुकार।
आजके 'कलेवा' एहि ल, मानत हे सनसार।।
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
सतजूग म रहीच धरम, बहुते पहुना आय।
मानय ओला देव सहि, कलेवा ओहि खाय।।
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दूध खीर मेवा छनय, घर—घर भोज खवाय।
हिरदय गदगद हो जयव, भरभर थारी पाय।।
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कलजुग मनखे नव करम, पहुना बन ललचाय।
दारु मुरगा मारबे, तभेच तो गुन गाय।।
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बीही आमा कलिन्दर, असल मेवा कहाय।
सतके रद्दा नइ धरय, नसा म सब पोताय।।
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गुटका पाउच अब हवय, अटल भोग चटुकार।
आजके 'कलेवा' एहि ल, मानत हे सनसार।।
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
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