शनिवार, 23 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8 //हेमंतकुमार मानिकपुरी

पानी बूंद अमोल हे.....
विधा-------दोहा
पानी बूंद अमोल हे, राखव एखरे मान।
बूंद बूंद बचावव जल, बात समझलव जान॥
खरचा कर देव पानी, जनम जनम भरमान।
अब धरती ले पानी ह, कति ले आवय जान॥
पानी रहत खूब करे ,छकल छकल तंय जान।
भर भर लोटा नहाये, अब अंजली असनान॥
कपड़ा लत्ता बरतन ल,छिन छिन मांजय सान।
पानी बऊरे अइसे, जइसे पर घर जान॥
टेड़ा नल झुख्खा हवय,नल बन गे हे बांझ।
माथा धर पछतात हे,गुनव ज्ञानी सुजान॥
सब रूख रई काटेव, आंखी मूंद नदान।
जीव जंगल नंदागे हे, तब फरकत हे कान॥
रूख लगावव कोरि त हे, तभे धरा के जान।
अभी ले समझव बात ल, झन बनव ग नादान॥
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

पागा कलगी -8//राजेश कुमार निषाद

 पानी हे जिनगानी ।।
 पानी हे अनमोल भईया फोक्कट म झन गंवाबे ग। 
पानी के जब होहि किल्लत बड़ तै पछताबे ग। 
पानी म तै कपड़ा धोबे अऊ पानी म ही नहाबे ग। 
पानी ल सकेल संगी फोक्कट झन बोहाबे ग। 
पानी हे अनमोल भईया फोक्कट म झन गंवाबे ग।। 
पानी बिन सोच ले संगी बड़ दुख तै पाबे ग। 
जगह जगह म झगड़ा होही झगड़ालू तै कहाबे ग। 
पानी म हे जिनगानी भईया जीवन के आधार बनाबे ग। 
पानी ल बचा के भईया सबके भाग जगाबे ग। 
पानी हे अनमोल भईया फोक्कट म झन गंवाबे ग। 
पानी बचाय बर बनाव सुघ्घर योजना बाद में ओकर लाभ उठाबे ग। 
पानी ल तै सकेल ले भईया बड़ नाम तै एक दिन कमाबे ग। 
पानी हे अनमोल भईया फोक्कट म झन गंवाबे ग।

 रचनाकार÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद

पागा कलगी -8//-हेमलाल साहू

‪#‎पानी‬ #
एक एक बूँद जल बर, तरसत हावे लोग।
देखव पानी के बिना, जिनगी भोगत भोग।।

चिरई जल खोजत हवे, लगे हवे गा प्यास।
कोनो मेरन जल नही, जीये के न आस।।

जगह जगह तंगी हवे, खाये जल बर मार।
एक एक बून्द जल बर, मचगे हाहाकार।।

तरिया नदिया सूखगे, कुँआ दे हवे पाट।
रुख रई ला काटके, सहर बनत इसमाट।।

अबूझ मनखे तैय हा, रखले जल के मान।
एक एक बूँद जल मा, जिनगी हावे जान।।

राखव जल संयोज के, जल के बोली बोल।
जल चिंतन करव गा, जल हावे अनमोल।।
जगह जगह मा जल रहे, लगाबोन चल रुख।
धरती हा गिल्ला रहे, झन जावय गा सूख।।
-हेमलाल साहू

पागा कलगी -8//रामेशवर शांडिलय

पानी बचाई
नल के टोटी ले बूंद बूंद
पानी टपकत हे।
टूरा मुहं लगा के एक एक
बूंद गटकत हे।
= = = =
शहर के तलाव कुआं पटागे
गांव के तलाव कुआं अटागे
तरिया नदिया म नहाई नदागे
सरकार के पानी टंकी नठागे
= = = =
पथरा पथरा के सुनदर शहर होगे।
साफ पानी के नाली डगर होगे।
भूइया कइसे सोखे गटर होगे
पानी बर हाहाकार नगर होगे।
= = = =
मनसे के देखा बाढत अबादी,
पानी के देखा इहां बरबादी।
तीसरा युध होही पानी बर,
पानी बचाई जिनगानी बर।
= = = =
चला हम सब कसम खाई,
बुंद बुंद पानी बचाबो।
जेतका जरूरत होही,
ओतके म काम चलाबो।
= = = =
रामेशवर शांडिलय
हरदीबाजार कोरबा

पागा कलगी -8//सुनिल शर्मा"नील"

"पानी जिनगानी हरय"
(मनहर घनाक्षरी)
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बूँद-बूँद पानी बर होवत हे मारामारी
कहना हे मोर अब तो चेत जावव जी
तड़फत सबो जीव देवत हे तालाबेली
पानी जिनगानी हरय एला बचाव जी|
पाटव झन कभू रे कुआँ अउ तरिया ल
तहुमन पुरखा कस पेड़ लगाव जी
रहीके पियासी खुद तोला कहा दय पानी
जुरमिल भुइयां के पियास बुताव जी
कई कोस रेंग पानी एक गुंडी पाथे जेन
थोकुन उखरोबर सोग तो देखाव जी
दुए घूंट पीना अउ गिलास भर फेकना
बेवकूफी कर तुम झन इतराव जी|
ताक झन मुहु पहली खुद ला सुधाररे
नाननान बात ले बदलाव लावव जी
बउरव वतके कि जतका जरूरत हो
सदउपयोग के आदत ल डारव जी|
परकिरती हे तब तक मनखे घलो हे
जीयो-जीयन दव के मंत्र अपनाव जी
दयाबिन मनखे के जीना तो अभिरथा हे
रहवास कखरो झन तो उजारव जी
करनी के फल ले तो सुनामी-भूकम होथे
परकिरती देबी ल झन रिसवावव जी
कल के सुराज बर छोरबो सुवारथ ल
गाँव-गाँव ए संदेशा ल बगरावव जी|
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छ.ग.)
7828927284
रचना-18/04/2016
copyright

पागा कलगी -8//सुनील साहू"निर्मोही"

"बस एक बूंद के आस हे"
पियास पानी के नहीं आस के हे।
हमर भरोसा अउ बिस्वास के हे।
कोनो पियास म मर जाथे।
तव कोनो पी के तर जाथे।
तरसत इंहा एक बूंद पानी बर।
तव आखी म आंसू के धार भर जाथे।
दुनिया उलझे बिकास करे म।
फेर का फायदा बिस्वास करे म।
नीत बनईया मीत भुलागे।
एती गरीब मनके टोटा सुखागे।
रुख राई इंहा सोझ्झे झर जाथे।
नेता पारटी अपन म लड़ जाथे।
भूख ले बांचे तव पियास म मरगे।
बइठे बइठे एती आस म मरगे।
अब काला सियान बनावव जी।
मैं कोन भागीरथी ल बलावव जी।
सुनील साहू"निर्मोही"
ग्राम -सेलर
जिला-बिलासपुर
मो.न. 8085470039

सोमवार, 18 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//ललित साहू "जख्मी"

"कोनहो जुगत लगाव"
पानी बर सब तरसत हे
घाम मे थरथरावत हे
कोनहो कोनटा मे छंईहा नई हे
झांझ मे अलकरहा लेसावत हे
कांक्रीट के जंगल बर
कांच्चा रूख ला काटे हे
पम्प मे गरभ ला चुहक के
कुंआ बावली ला पाटे हे
अब नल मे मुहु टेंका के
एक-एक बुंद ला चांटत हे
अऊ थोकन मछरी के लालच मे
तरीया डबरी ला आंटत हे
एक ठोमा महुआ अऊ तेंदु पान बर
सफ्फा जंगल ला सुलगावत हे
कभु खेल कभु कातिक नहाय बर
बांधा के पानी ला उरकावत हे
रद्दा तिरन के फुहारा मे
हांस के फोटु तिरवावत हे
अऊ भटके चिरई चिरगुन ला
दाना पानी बर तरसावत हे
जंगल उजार के घर सजाथन
अऊ गाना हरियाली के गावत हे
गरीबहा तरसे पीये के पानी बर
हमन स्वीमिंग पुल मे नहावत हे
गाडी धोत हन पाईप लगा के
कुकुर ला रगड के नवहावत हे
अऊ मोहाटी के गाय भंईस ला
डंडा मार के हकालत हे
भुंईया सोखे रुख संजोये पानी
बरखा के नियम ला भुलावत हे
सोंखता बोर खनाय बर जियान परथे
सिरमिट मे सरबस ला बरंडावत हे
कईसे सोखही पानी ये भुंईया
का कोनो जुगत लगावत हे
मोला तो लागथे संगवारी हो
सब अपने घमंड मे मर जावत हे
हमर पानी के बोहई ला देख के
भगवान घलो हा थर्रावत हे
सतयुग ले बोहात नरवा झरना मन
आज कलियुग मे सुखावत हे
रचनाकार - ललित साहू "जख्मी"
ग्राम - छुरा
जिला - गरियाबंद (छ.ग.)
मो. नं. - 9144992879