शनिवार, 23 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//सुनिल शर्मा"नील"

"पानी जिनगानी हरय"
(मनहर घनाक्षरी)
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बूँद-बूँद पानी बर होवत हे मारामारी
कहना हे मोर अब तो चेत जावव जी
तड़फत सबो जीव देवत हे तालाबेली
पानी जिनगानी हरय एला बचाव जी|
पाटव झन कभू रे कुआँ अउ तरिया ल
तहुमन पुरखा कस पेड़ लगाव जी
रहीके पियासी खुद तोला कहा दय पानी
जुरमिल भुइयां के पियास बुताव जी
कई कोस रेंग पानी एक गुंडी पाथे जेन
थोकुन उखरोबर सोग तो देखाव जी
दुए घूंट पीना अउ गिलास भर फेकना
बेवकूफी कर तुम झन इतराव जी|
ताक झन मुहु पहली खुद ला सुधाररे
नाननान बात ले बदलाव लावव जी
बउरव वतके कि जतका जरूरत हो
सदउपयोग के आदत ल डारव जी|
परकिरती हे तब तक मनखे घलो हे
जीयो-जीयन दव के मंत्र अपनाव जी
दयाबिन मनखे के जीना तो अभिरथा हे
रहवास कखरो झन तो उजारव जी
करनी के फल ले तो सुनामी-भूकम होथे
परकिरती देबी ल झन रिसवावव जी
कल के सुराज बर छोरबो सुवारथ ल
गाँव-गाँव ए संदेशा ल बगरावव जी|
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छ.ग.)
7828927284
रचना-18/04/2016
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