शनिवार, 23 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//-हेमलाल साहू

‪#‎पानी‬ #
एक एक बूँद जल बर, तरसत हावे लोग।
देखव पानी के बिना, जिनगी भोगत भोग।।

चिरई जल खोजत हवे, लगे हवे गा प्यास।
कोनो मेरन जल नही, जीये के न आस।।

जगह जगह तंगी हवे, खाये जल बर मार।
एक एक बून्द जल बर, मचगे हाहाकार।।

तरिया नदिया सूखगे, कुँआ दे हवे पाट।
रुख रई ला काटके, सहर बनत इसमाट।।

अबूझ मनखे तैय हा, रखले जल के मान।
एक एक बूँद जल मा, जिनगी हावे जान।।

राखव जल संयोज के, जल के बोली बोल।
जल चिंतन करव गा, जल हावे अनमोल।।
जगह जगह मा जल रहे, लगाबोन चल रुख।
धरती हा गिल्ला रहे, झन जावय गा सूख।।
-हेमलाल साहू

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें