सोमवार, 18 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//ललित साहू "जख्मी"

"कोनहो जुगत लगाव"
पानी बर सब तरसत हे
घाम मे थरथरावत हे
कोनहो कोनटा मे छंईहा नई हे
झांझ मे अलकरहा लेसावत हे
कांक्रीट के जंगल बर
कांच्चा रूख ला काटे हे
पम्प मे गरभ ला चुहक के
कुंआ बावली ला पाटे हे
अब नल मे मुहु टेंका के
एक-एक बुंद ला चांटत हे
अऊ थोकन मछरी के लालच मे
तरीया डबरी ला आंटत हे
एक ठोमा महुआ अऊ तेंदु पान बर
सफ्फा जंगल ला सुलगावत हे
कभु खेल कभु कातिक नहाय बर
बांधा के पानी ला उरकावत हे
रद्दा तिरन के फुहारा मे
हांस के फोटु तिरवावत हे
अऊ भटके चिरई चिरगुन ला
दाना पानी बर तरसावत हे
जंगल उजार के घर सजाथन
अऊ गाना हरियाली के गावत हे
गरीबहा तरसे पीये के पानी बर
हमन स्वीमिंग पुल मे नहावत हे
गाडी धोत हन पाईप लगा के
कुकुर ला रगड के नवहावत हे
अऊ मोहाटी के गाय भंईस ला
डंडा मार के हकालत हे
भुंईया सोखे रुख संजोये पानी
बरखा के नियम ला भुलावत हे
सोंखता बोर खनाय बर जियान परथे
सिरमिट मे सरबस ला बरंडावत हे
कईसे सोखही पानी ये भुंईया
का कोनो जुगत लगावत हे
मोला तो लागथे संगवारी हो
सब अपने घमंड मे मर जावत हे
हमर पानी के बोहई ला देख के
भगवान घलो हा थर्रावत हे
सतयुग ले बोहात नरवा झरना मन
आज कलियुग मे सुखावत हे
रचनाकार - ललित साहू "जख्मी"
ग्राम - छुरा
जिला - गरियाबंद (छ.ग.)
मो. नं. - 9144992879

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें