गुरुवार, 9 जून 2016

पागा कलगी-11//डॉ गिरजा शर्मा

बेटी ला सिक्छा संस्कार दौ
नोनी हर बाढ़ जाथे त दाई ददा के माथा के शिकन गहराथे ।
बने रिसता ल पाके गरूर म ददा सबो जोखिम ल मढ़ाथे।
नानकुन रहे बेटी तैं हर घर के रहे चिराई मैना ओ।
कुलकत लपकत कब बचपन पहाथे न ई जाने बर होय।
हाँसत खेलत संगी मन संग तैं हर समय बिताये ओ।
ददा के छाती दरकथे दाई गोहार लगाथे जब बेटी विदा के बेला आथे ।
अपन जी केटुकड़ा ल कैसे भेजी कहिके देंह कंपकंपाथे ओ।
न ई जाने बर होय कौन हर मारहि पीटहि कौन हाँसत बेटी के जी ल ले डारहि ओ
आवा सब झन किरिया खाई बेटी ल हमन पढ़ाबो रे पढ़ लिख जाही बेटी हमर त ओकर घर ल बसाबो ।
दू कूल ल तारहि बेटी हमर नावा रोशनी जगर मगर करही ।
हाँसत खेलत लैका मन संग नावा संदेशा ल गढ़ही ।
डॉ गिरजा शर्मा
क्वाटर नम्बर 225
सेक्टर 4/ए टाइप
बालको नगर कोरबा

पागा कलगी-11//सरवन साहू

नाव चढ़ादे भले बेटा के,
धन दउलत घर दूवार ला,
बेटी घलो तोरे उपजाये
बस दे सिक्छा संस्कार ला।
नइ पढ़ाबे बेटी ला तब
होही बपरी संग अनियाव।
जिनगी ओखर दुसवार करेबर
अढ़हा संग करबे बिहाव।
बेटी के सिक्छा संस्कार
बिरथा कभू नई जावय जी।
सिक्छित बेटी बिदा करइया
सिक्छित बहू घलो पावय जी।
बेटी बनके घर के फूलवारी
मंहकाही घर अऊ परिवार ला।
गुरतुर बोली संग बेटी ला,
बस दे सिक्छा संस्कार ला।
करम कहूं करथे बेटा हा,
बेटी हा घलो धरम करथे।
निर्लज हो जाथे कतको बेटा
फेर बेटी सदा सरम करथे।
पढ़ही लिखही बेटी सुग्घर
बाप के नाव ला जगाही जी।
सिक्छित संस्कारी बेटी हा
घर ला सरग जस बनाही जी।
हक मत मार बेटी के तैं,
झटक तो झन अधिकार ला।
मां बाप के नता ला निभादे
बस दे सिक्छा संस्कार ला।
रचना- सरवन साहू
गांव- बरगा, थानखम्हरिया

पागा कलगी-11 //डी पी लहरे

"बेटी ल शिक्षा अउ संस्कार दौ"
ओखर हक के ओला अधिकार दौ
मयारू होथे बेटी
मया अउ दुलार दौ
पढा दौ लिखा दौ
दुनिया म चले बर सीखा दौ
अंधियारी म भटकय मत बेटी ह
स्कूल के रद्दा दिखा दौ
बडे बडे साहब बनही
करमचारी अउ अधिकारी बनही
बनके सिपाही धरके बंदूक तनही
बेटी ल शिक्षा अउ संस्कार दौ
ओखर हक के ओला अधिकार दौ
दरद ल जादा बेटी समझथे
बेटी ल मया के बौछार दौ
भेजव स्कूल बेटी ल
शिक्षा अउ संस्कार दौ
बेटी बेटा म भेद नईहे
दुनो ल बरोबर दुलार दौ
बेटी ल शिक्षा अउ संस्कार दौ
बेटी ल मया अउ दुलार दौ|
**************************************
रचना----डी पी लहरे
~~कवर्धा~~

पागा कलगी-11//टीकाराम देशमुख "करिया

सब गहना ले बड़का गहना,
शिक्षा ह होथे संगवारी ;
पढ़ा-लिखा के पुतरी नोनी के ,
जिनगी ल संवार दौ |
जस बगराही जग मं संगी,
बेटी ल शिक्षा संस्कार दौ ||
झन समझौ 'कमती' बेटी ल,
बेटा ले बढ़ के होथे ;
दाई-ददा ले बिदा होवत बेर ,
बम फार के वो रोथे
साज-संवार सके ससुरार ल
अइसन तुम उपहार दौ ;
भले कुछु झन दे सकव फेर,
बेटी ल शिक्षा संस्कार दौ ||
मान बढ़ाते दू कुल के, वो
मया परेम ल बगराथे ,
मइके मेँ हो,या ससुरार मं
घर के शोभा बढहाथे ;
पढ़-लिख के "चूल्हा तो फुंकही",
भरम ल अपन निमार दौ ,
जस बगराही जग मं संगी ,
बेटी ल शिक्षा संस्कार दौ ||
@ टीकाराम देशमुख "करिया"
रेलवे कालोनी,स्टेशन चौक कुम्हारी
जिला_दुर्ग
मोब. 94063 24096

पागा कलगी-11//ज्वाला विष्णु कश्यप

बेटी ला शिक्छा संस्कार दौ
अपन मन के भूत भरम ल,अब तो तुमन उतार दौ |
बेटी ल भेज के स्कूल म,शिक्षा अऊ संस्कार दौ ||
(१) राजा जनक ह सीता ल,दे रहिन हे शिक्षा |
तेखरे सेती सीता ह,जीत गे अगनी परीक्षा |
अंगठी पकड़ के बेटी के,कुछ तो अब अधार दौ | बेटी ल भेज .....
(२)शिक्षाअऊ संस्कार ल पाके,मान बढ़ाही कूल के |
अंधियारी अंजोरी के संग ,मया बोही मिलजूल के ||
मन ह झन मुरझावय,मया के पानी डार दौ ||बेटी ल भेज ......
(३) पढ़ लिख के बेटी ह,ससुरार एक दिन जाही|
मईके सही ससुरार घलो ल, सरग जईसे बनाही ||
अपन मन के बुझे दिया ल,बेटी के हाथ बार दौ ||बेटी ल भेज .....
(ज्वाला विष्णु कश्यप)
मुंगेली (छ.ग.)7566498583

बुधवार, 8 जून 2016

पागा कलगी-11//संतोष फरिकार

* देबोन सिक्छा*
अपन बेटी ल देहव सिक्छा
मोला भले करे ल परय करजा।।
बेटी ल पढ़ाय बर ले हव दिक्क्षा
बेटी ल पढ़ाय के बहुत हवय ईच्छा।।
बेटा ले बढ़ के बेटी हवय अच्छा
दाई ददा के दुख देख मन हो जथे कच्चा।।
मंईके ससुरे के करत रहिथे रक्छा
दाई ददा के मन ला नई देवय धक्का।।
बेटी के मया दाई ददा बर रहिथे पक्का
कम से कम बेटी ल पढ़ाहव एम ए कक्षा।।
अपन अपन बेटी ल देहव सिक्छा
सबसे हवय मोर मन एक ठन ईक्छा।।
रचना संतोष फरिकार
गांव देवरी भाटापारा
जिला बलौदा बजार भाटापारा
‪#‎मयारू‬ 9926113995

पागा कलगी-11//दीप दुर्गवी

,,बेटी ल सिक्छा के संस्कार दौ ,,
बगरे झन अज्ञान के अंधियारी रतिहा,
भिंनसार दौ ।
आखर आखर सबद अंजोरी
सब कुरिया म बार दौ ।
घर के जमो बूता करथे
पानी कांजी भरथे जी ।
राधत कूटत् महतारी संग
दुःख पीरा ला हरथे जी ।
कागद कलम धरा नोनी के
जिनगी चिटूक संवार दौ ।
अंगना के तुलसी चौरा कस
संझाती दीया बाती ।
सोन चिरैया जइसे चहके
देख जुड़ा जाथे छाती ।
सरसती दाई के अंचरा के
बेटी ला अंकवार दौ ।
अपन अगास अपन भुंइया म
रद्दा अपन बनाही जी ।
अलग चिन्हारी पाही बेटी
कुल के नाव जगाही जी ।
कांटा खूंटी हे रद्दा म,
तेन ला तुम चतवार दौ ।
बेटी के परभूता मनखे के
जनधन हर बाढे हे ।
अपन सुख ला होम करे बर ,
कब ले बेटी ठाढ़े हे ।
अइसन बलिदानी बेटी ला
थोरिक अपन दुलार दौ ।
हमरो बेटी म प्रतिभा,कल्पना,
सुभद्रा ,सीता हे ।
बेटी पावन वेद ऋचा कस,
हमर रमायन गीता ये ।
बांचव ओखर मन के भाखा
खुल्ला अपन बिचार दौ ।
बेटी पढ़ही आगू बढ़ही
सगरो काज संवर जाही ।
अतीयाचार के दानव जरही,
सुख सन्देश बगर जाही ।
सुघर समाज गढ़व बेटी ल
सिच्छा के संस्कार दौ ।
दीप दुर्गवी
आई टी आई कोरबा