बुधवार, 8 जून 2016

पागा कलगी-11//दीप दुर्गवी

,,बेटी ल सिक्छा के संस्कार दौ ,,
बगरे झन अज्ञान के अंधियारी रतिहा,
भिंनसार दौ ।
आखर आखर सबद अंजोरी
सब कुरिया म बार दौ ।
घर के जमो बूता करथे
पानी कांजी भरथे जी ।
राधत कूटत् महतारी संग
दुःख पीरा ला हरथे जी ।
कागद कलम धरा नोनी के
जिनगी चिटूक संवार दौ ।
अंगना के तुलसी चौरा कस
संझाती दीया बाती ।
सोन चिरैया जइसे चहके
देख जुड़ा जाथे छाती ।
सरसती दाई के अंचरा के
बेटी ला अंकवार दौ ।
अपन अगास अपन भुंइया म
रद्दा अपन बनाही जी ।
अलग चिन्हारी पाही बेटी
कुल के नाव जगाही जी ।
कांटा खूंटी हे रद्दा म,
तेन ला तुम चतवार दौ ।
बेटी के परभूता मनखे के
जनधन हर बाढे हे ।
अपन सुख ला होम करे बर ,
कब ले बेटी ठाढ़े हे ।
अइसन बलिदानी बेटी ला
थोरिक अपन दुलार दौ ।
हमरो बेटी म प्रतिभा,कल्पना,
सुभद्रा ,सीता हे ।
बेटी पावन वेद ऋचा कस,
हमर रमायन गीता ये ।
बांचव ओखर मन के भाखा
खुल्ला अपन बिचार दौ ।
बेटी पढ़ही आगू बढ़ही
सगरो काज संवर जाही ।
अतीयाचार के दानव जरही,
सुख सन्देश बगर जाही ।
सुघर समाज गढ़व बेटी ल
सिच्छा के संस्कार दौ ।
दीप दुर्गवी
आई टी आई कोरबा

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