नाव चढ़ादे भले बेटा के,
धन दउलत घर दूवार ला,
बेटी घलो तोरे उपजाये
बस दे सिक्छा संस्कार ला।
धन दउलत घर दूवार ला,
बेटी घलो तोरे उपजाये
बस दे सिक्छा संस्कार ला।
नइ पढ़ाबे बेटी ला तब
होही बपरी संग अनियाव।
जिनगी ओखर दुसवार करेबर
अढ़हा संग करबे बिहाव।
बेटी के सिक्छा संस्कार
बिरथा कभू नई जावय जी।
सिक्छित बेटी बिदा करइया
सिक्छित बहू घलो पावय जी।
बेटी बनके घर के फूलवारी
मंहकाही घर अऊ परिवार ला।
गुरतुर बोली संग बेटी ला,
बस दे सिक्छा संस्कार ला।
होही बपरी संग अनियाव।
जिनगी ओखर दुसवार करेबर
अढ़हा संग करबे बिहाव।
बेटी के सिक्छा संस्कार
बिरथा कभू नई जावय जी।
सिक्छित बेटी बिदा करइया
सिक्छित बहू घलो पावय जी।
बेटी बनके घर के फूलवारी
मंहकाही घर अऊ परिवार ला।
गुरतुर बोली संग बेटी ला,
बस दे सिक्छा संस्कार ला।
करम कहूं करथे बेटा हा,
बेटी हा घलो धरम करथे।
निर्लज हो जाथे कतको बेटा
फेर बेटी सदा सरम करथे।
पढ़ही लिखही बेटी सुग्घर
बाप के नाव ला जगाही जी।
सिक्छित संस्कारी बेटी हा
घर ला सरग जस बनाही जी।
हक मत मार बेटी के तैं,
झटक तो झन अधिकार ला।
मां बाप के नता ला निभादे
बस दे सिक्छा संस्कार ला।
बेटी हा घलो धरम करथे।
निर्लज हो जाथे कतको बेटा
फेर बेटी सदा सरम करथे।
पढ़ही लिखही बेटी सुग्घर
बाप के नाव ला जगाही जी।
सिक्छित संस्कारी बेटी हा
घर ला सरग जस बनाही जी।
हक मत मार बेटी के तैं,
झटक तो झन अधिकार ला।
मां बाप के नता ला निभादे
बस दे सिक्छा संस्कार ला।
रचना- सरवन साहू
गांव- बरगा, थानखम्हरिया
गांव- बरगा, थानखम्हरिया
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