सोमवार, 4 जुलाई 2016

पागा कलगी-12/40/ओमप्रकाश चौहान

हमर जंगल दाई
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रुख राई जंगल दाई 
ये जम्मो हमर परान हे,
झन काटव बयरी कोई
हमर पुरखा येहर निसान हे।
कईसन सुख पाए बर
करे निच्चट उदीम तैय,
निरलज जिव के घर उजार
करदेस मानवता गिरवी तैय।
ये पुरवा अमराई हलधर के
भार भरोसा बर अब कोन हे
करनी निटोरत मानुष के
पकरिती काबर अब मउन हे।
नोहर भुंइयाँ मानुस भर,
गोहार करत 'ओम' जम्मो महान
न तोर ताक बगरय न मोर
करव सबे अइसे जुरमिल निदान।
🌴 ओमप्रकाश चौहान 🌴
🌻बिलासपुर🌻

पागा कलगी-12/39/सुरेश कुमार निर्मलकर'सरल'

रुख राई भुइयाँ के देवता बरोबर
जतन करे ले येकर भइया
करिया बादर लकठियाही,
झिमिर झिमिर पानी बरसाही,
लहर लहर तोर खेत लहराही,
नही त भोगबे लातूर बरोबर
सुक्खा ठाड़े हाहाकार मचाही।
परबूधियई म भुगतावत हे तोला,
परकिती देख चेतावत हे तोला,
बन जा अब तो सुजानिक बेटा
छोड़ टंगिया,आरी अउ बउसला।
भुंइया के देवता ल जौंहर
तै बने संजोवत हस,
आरी चला के रुख म तै
अपनेच जर ल खोदत हस।
जेकरे पुन परताप म तै
सुग्घर जिनगी जियत हस,
रेत रेत आरी म तै
ओकरेच गर ल पूजत हस।
चिरई चिरगुन् जीव परानी के खोंधरा
अपन सुवारथ बर उजारत हस,
पिलवा मन के दुख म
करेजा महतारी के कलपावत हस।
तै कइसे रहिबे रे बुध नासी
चिरई चिरगुन् के घर ल फ़ोरत हस,
रुख राई के संग छोड़त हस,
धरती दाई के सिंगार उजारत
पछताबे तै पाछु परबूधिया
अपने रद्दा तै बिगाड़त हस।
जतन करके संगी जतन करके गा,
संवार दे जिनगी जीव जन्तु रुख राई के,
तोरो जीवन भर के इहि मन अधार ये,
अउ दुनिया म इहू मन ला जिए के अधिकार हे।
🙏🙏🙏
रचना
सुरेश कुमार निर्मलकर'सरल'
वार्ड नं.12 बेरला जि.बेमेतरा
9098413080

पागा कलगी-12/38/तरूण साहू "भाठीगढ़िया"

जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन
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जान बुझ के टंगिया ल, अपन पांव म मारव झन ।
अपन घर ल अंजोर करेबर, दूसर घर ल बारव झन ।।
रुखराई अउ जीव जंतु सबो हर हमर मितान हे,
जे हर येला काटथे मारथे वो हर पशु समान हे ।
चिरई चिरगुन जंगल के परानी मनला तुमन मारव झन,
जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन ।।
रुखराई ल काटबे त हावा कहाँ ले पाबे तै,
बरषा जब नई होही त पानी कहाँ ले पाबे तै ।
अंकाल अउ दुकाल ल, तुमन हर गोहरव झन,
जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन।।
सुरूज अंजोरी म पाना ले रुख हर खाना बनाथे,
हावा ल सुद्ध करथे अउ बरषा घलो बुलाथे ।
जे खांधा म बइठे हो उही खांधा ल काटव झन,
जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन।।
धरती के सिंगार करे बर रुखराई ल जगबो,
हरियर परयावरन बनाके परदुसन ल भगाबो।
परयावरन के मरजादा अउ नियम ल बिगारव झन,
जान बूझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन।।
तरूण साहू "भाठीगढ़िया"
ग्राम भाठीगढ़, ( मैनपुर )
जिला गरियाबन्द ( छ.ग.)
मो.न. 9755570644
9754236521

पागा कलगी-12/37/ज्ञानु मानिकपुरी "दास"

"धरती दाई क गुहार"
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का होही दुनिया म, गुनके हव परशान।
दुनिया मा मनखे कथे, सबले हवव सुजान।
सबले तय हावस रे ज्ञानी। काबर करथस रे नादानी।
दुरिहागे हे अन्न अउ पानी। बिपत म डाले तय जिनगानी।
लगय काबर कखरो पीरा। तोला ऊट के मुहु म जीरा।
कखरो करलई अउ चितकार। फेर काबर नइ सुनय गुहार।
तुहुमन ओखर कोरा म, थके मांदे थिराव।
थोरक स्वारथ म आके, सबला जथव भुलाव।
जग म सबले ज्ञानी कहाई। काबर बन गय फेर कसाई।
रुख राई ल लगा नइ सकव। आरी टनगिया म काटत हव।
चिरई चिरगुन के उजड़े घर। भटके ये डहर ले वो डहर।
भुखे प्यासे उन कहा जाही। पानी बादर कहा लुकाही।
रुख राई जिनगी के, जानलव ग आधार।
करव पेड़ के तुम जतन, इही तोर बर सार।
लकड़ी जड़ी बुटी अउ फल फुल। सबला प्राणवायु देथे कुल।
धरती माँ के सिंगार आवय। देथे छाँव बरषा बलावय।
चिरई,नदी,अउ रुखराई। अउ मनखे सब भाई- भाई।
मिलके सब तोर करथे जतन। "ज्ञानु" कर सन्कल्प उखर कर जतन।
नदी,रुखराई, जंगल, के मिल करलव मान।
धरती के गुहार ल सुन,इखर ले तोर जान।
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ज्ञानु मानिकपुरी "दास"
चंदेनी कवर्धा
9993240143

पागा कलगी-12/36/सुनिल शर्मा"नील"

"झन काटव जी रूख ल"
(विधा-दोहा)
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होके अंधरा स्वार्थ म,कइसे तोरे
काम
काटे सइघो रूख ला,तँय बिकास के
नाम
जीयत भर तो रूख हा,देथे तोला
सांस
देथे ममता दाइ कस ,करथस ओखर
नास
जरी-बूटि,फल-फूल के,देथे वो
उपहार
रेंगावत आरा हवस,सुने बिना
गोहार
गावत झूलय झूलना,बइठ चिरइमन
साख
खोंदरा उखर उजारके,दिए काट
तँय पाँख
तड़फत सब्बो जीवमन ,देवत हवय
सराप
करही तोरे नाश रे,मनखे तोरे
पाप
गरमी लगही जाड़ कस,सावन पानी
ताक
रौरव नरक ल भोगबे,मिल जाबे तैं
खाक
घूरही जिनगी म जहर,परदूसन के
मार
भोगेबर करनी के फल ,रह मनखे
तइयार
भुइयां नोहय तोर भर,सबके हे
अधिकार
जीयन दे सबो जीव ल,सबला
दे ग पियार
रूख बिना हे काय रे,मनखे तोर
औकात
रुख हवय त तय हवस,सार इही
हे बात
झन काटव जी रूख ल,"नील"
कहत करजोर
रुख लगा हरियर करव
बारी,अगना,खोर|
********************************
सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
7828927284
24/06/2016
copyright

पागा कलगी-12/35/चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

विषय =चित्र अधारित
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हरियर हरियर रुख ला काटत हन
हाँथ म धरे बसूला टंगिया अउ आरी
नई बांचत हे कटई ले कोनो जगह
खेतखार गाँव घर जंगल अउ झारी
पेड़ हर देवत हे बिन मांगे सब कुछ
जरीबूटी फरफूल हवा निरमल पानी
दुनिया म जीवन के आधार हरे रुख
इही परकिति के पहिली पहल निशानी
जब लगा अउ उगा नइ सकन रुख ल
त आखिर हम कोन होत हन कटइया
हमन सब जानत हन सब देखत हन
तभो ले हमन कोनो नइ हन बोलइया
उजाड़ घर सब जीव-चिरईयन के
घर अपन कतका सुग्घर बसावत हन
बिचार करव अपन काम ल साधे बर
दूसर के ला हम कतका बिगाड़त हन
एक डहर परकिति ला बिगाड़त हन
करत हन जीव हत्या बनके मांसाहारी
दूसर म कहिलाए बर परकिति परेमी
रचत हन बड़ कविता बनके कलमधारी
जियव अउ जीयन दव के सन्देश ला
चलव जम्मो जुरमिल के अब अपनाथन
नइ काटन रुख ला नइ करन जीव हत्या
चलव परकिति ले मया ला अब बढ़ाथन
CR
चैतन्य जितेन्द्र तिवारी
थान खम्हरिया(बेमेतरा)

पागा कलगी-12/34/ सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

छत्तीसगढ़ी लोकगीत पंथी ह सरल भाषा म
संदेश परधान गीत होथे,ए चित्र आधारित रचना
ल पंथी गीत के तरज देयके परियास करे हंव।
देखव सुनव गा मितान,
लोग लईका सियान।
पेड़ के कलपना डाहर,
देवव गा धियान।
चिरई के तलफना डाहर,
देवव गा धियान।
मनखे के आरा ह,
पेड़ ऊपर चलथे-2
चिरई के खोंदरा ह,
टुट कर गिरथे-2
चिरई होगे हलाकान,
छुट जाही का परान।
पेड़ के कलपना........।
चिरई के तलफना.......।
पेड़ के महत्व ला ,
सबो देखत जानत हे-2
लालच मे अंधरा,
देखके नई मानत हे-2
कइसे जीबो गा सियान,
बिरथा हो जाही गियान।
पेड़ के कलपना......।
चिरई के तलफना.....।
बिरवा लगाये के,
किरिया गा खाना हे-2
सबो जीवजंत के,
घरौंदा बनाना हे-2
नवा होवय गा बिहान,
सुख पावय भगवान।
पेड़ के कलपना.....।
चिरई के तलफना.....।
रचना:-- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602