"धरती दाई क गुहार"
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का होही दुनिया म, गुनके हव परशान।
दुनिया मा मनखे कथे, सबले हवव सुजान।
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का होही दुनिया म, गुनके हव परशान।
दुनिया मा मनखे कथे, सबले हवव सुजान।
सबले तय हावस रे ज्ञानी। काबर करथस रे नादानी।
दुरिहागे हे अन्न अउ पानी। बिपत म डाले तय जिनगानी।
लगय काबर कखरो पीरा। तोला ऊट के मुहु म जीरा।
कखरो करलई अउ चितकार। फेर काबर नइ सुनय गुहार।
दुरिहागे हे अन्न अउ पानी। बिपत म डाले तय जिनगानी।
लगय काबर कखरो पीरा। तोला ऊट के मुहु म जीरा।
कखरो करलई अउ चितकार। फेर काबर नइ सुनय गुहार।
तुहुमन ओखर कोरा म, थके मांदे थिराव।
थोरक स्वारथ म आके, सबला जथव भुलाव।
थोरक स्वारथ म आके, सबला जथव भुलाव।
जग म सबले ज्ञानी कहाई। काबर बन गय फेर कसाई।
रुख राई ल लगा नइ सकव। आरी टनगिया म काटत हव।
चिरई चिरगुन के उजड़े घर। भटके ये डहर ले वो डहर।
भुखे प्यासे उन कहा जाही। पानी बादर कहा लुकाही।
रुख राई ल लगा नइ सकव। आरी टनगिया म काटत हव।
चिरई चिरगुन के उजड़े घर। भटके ये डहर ले वो डहर।
भुखे प्यासे उन कहा जाही। पानी बादर कहा लुकाही।
रुख राई जिनगी के, जानलव ग आधार।
करव पेड़ के तुम जतन, इही तोर बर सार।
करव पेड़ के तुम जतन, इही तोर बर सार।
लकड़ी जड़ी बुटी अउ फल फुल। सबला प्राणवायु देथे कुल।
धरती माँ के सिंगार आवय। देथे छाँव बरषा बलावय।
चिरई,नदी,अउ रुखराई। अउ मनखे सब भाई- भाई।
मिलके सब तोर करथे जतन। "ज्ञानु" कर सन्कल्प उखर कर जतन।
धरती माँ के सिंगार आवय। देथे छाँव बरषा बलावय।
चिरई,नदी,अउ रुखराई। अउ मनखे सब भाई- भाई।
मिलके सब तोर करथे जतन। "ज्ञानु" कर सन्कल्प उखर कर जतन।
नदी,रुखराई, जंगल, के मिल करलव मान।
धरती के गुहार ल सुन,इखर ले तोर जान।
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ज्ञानु मानिकपुरी "दास"
चंदेनी कवर्धा
9993240143
धरती के गुहार ल सुन,इखर ले तोर जान।
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ज्ञानु मानिकपुरी "दास"
चंदेनी कवर्धा
9993240143
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