सोमवार, 4 जुलाई 2016

पागा कलगी-12/39/सुरेश कुमार निर्मलकर'सरल'

रुख राई भुइयाँ के देवता बरोबर
जतन करे ले येकर भइया
करिया बादर लकठियाही,
झिमिर झिमिर पानी बरसाही,
लहर लहर तोर खेत लहराही,
नही त भोगबे लातूर बरोबर
सुक्खा ठाड़े हाहाकार मचाही।
परबूधियई म भुगतावत हे तोला,
परकिती देख चेतावत हे तोला,
बन जा अब तो सुजानिक बेटा
छोड़ टंगिया,आरी अउ बउसला।
भुंइया के देवता ल जौंहर
तै बने संजोवत हस,
आरी चला के रुख म तै
अपनेच जर ल खोदत हस।
जेकरे पुन परताप म तै
सुग्घर जिनगी जियत हस,
रेत रेत आरी म तै
ओकरेच गर ल पूजत हस।
चिरई चिरगुन् जीव परानी के खोंधरा
अपन सुवारथ बर उजारत हस,
पिलवा मन के दुख म
करेजा महतारी के कलपावत हस।
तै कइसे रहिबे रे बुध नासी
चिरई चिरगुन् के घर ल फ़ोरत हस,
रुख राई के संग छोड़त हस,
धरती दाई के सिंगार उजारत
पछताबे तै पाछु परबूधिया
अपने रद्दा तै बिगाड़त हस।
जतन करके संगी जतन करके गा,
संवार दे जिनगी जीव जन्तु रुख राई के,
तोरो जीवन भर के इहि मन अधार ये,
अउ दुनिया म इहू मन ला जिए के अधिकार हे।
🙏🙏🙏
रचना
सुरेश कुमार निर्मलकर'सरल'
वार्ड नं.12 बेरला जि.बेमेतरा
9098413080

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