शनिवार, 16 जुलाई 2016

//पागा कलगी-14 के रूपरेख //

नियम-छत्तीसगढ़ी कविता के प्रतियोगिता पागा कलगी 14 के रचना सीधा छत्तीसगढ़ी मंच मा पोष्ट करना हे । जेन रचनाकार छत्तीसगढ़ी मंच के सदस्य नई हे, ओ एडमिन मन के व्यक्तिगत वाटशॅंप म भेज सकत हंे । कानो सार्वजनिक वाटशाॅप/फेसबुक समूह से रचना नई देना हे । प्रतियोगिता अवधि तक प्रतियोगिता के रचना केवल फेसबुक समूह छत्तीसगढ़ी मंच अउ ब्लाग पागा कलगी भर म होही । यदि रचना अंते तंते पाये जाही त रचना ला प्रतियोगिता से बाहिर कर दे जाही ।
प्रतियोगिता अवधि- 16 जुलाई 2016 से 31 जुलाई 2016
परिणाम घोषणा- 5 अगस्त 2016 तक (यथा संभव)
मंच संचालक - श्री संतोष फरिकर (पागा कलगी -5 के विजेता)
निर्णायक-डां.प्रो. चंद्रशेखर सिंह, वरष्ठि साहित्यकार, मुंगेली
सेवानिव्त प्राचार्य श्री कुष्णकुमार भट्ट ‘पथिक‘, वरिष्ठ साहित्यकार बिलासपुर
प्रतियोगिता के विषय- दे गे चित्र ले विषय के चयन करके
विधा - अइसे विधा के बंधन नई हे, फेर काव्य के कोनो विधा मा रचना दैं त विधा के संक्षिप्त जानकारी रचना के पहिली दू डांड म देवंय त जादा अच्छा रहिही । जेखर ले नवा रचनाकार मन ओ विधा ला आत्मसात कर सकय । विधा के ज्ञान नई होय त विधा के नाम मत देवंय ।
विशेष- रचना हर स्थिति म चित्र ला शब्द देवत होय, विषय ले भटके रचना ला अमान्य कर दे जाही ।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/43/ओमप्रकाश चौहान

🌻 माटी के मितान 🌻
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नांगर बइला हे संग
मोहनी बाते हे बरंग,
खुमरी साजे रे परिधान
तहीं माटी के मितान।2।
सुग्घर खेतीखारे हे संग
सोनहा बाली के हे रंग,
बोझा लादे रे महान
तहीं माटी के मितान।2।
भूख पियास के हे संग
सावन भर हे तोर मन,
सुग्घर माटी के रे तन
तहीं माटी के मितान ।2।
सबले पोख्खा श्रमदान
का भगमानी करे किसान
जग बंदन करय महान,
तहीं माटी के मितान ।2।
सुकुवा चलय संगे संग
तय मुंधरहा के सुग्घर उमंग,
तोर देस म हे बड़ मान
तहीं माटी के मितान ।2।
🌻ओमप्रकाश चौहान 🌻
🌴 बिलासपुर 🌴

पागा कलगी-13 /42/डॉ.अशोक आकाश

" माटी के मितान तोला करत हौं नमन "
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन ,
छत्तीसगढिया किसान तोला करत हौं नमन ।
सोर तोर बगरे हे भैया ,
चारो डाहन...
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन......
(१)
बैसाख जेठ जब आसमान ले बरसथे अंगारा ।
सांप डेढहू चिरई चिरगुन के उसना जथे हाडा ।।
तबले तैहा झौंहा गैंती धर के गोदी कोडे ।
उफनत उबलत तन के पसीना माटी ले नाता जोडे।।
सोना असन धान उपजारे तोर ये बदन..
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन...
(२)
अषाढ सावन झोर झोर के एकथइ पानी बरसे ।
टेटका घिरिया रुख खोंडरा में
सपटे जाड में कपसे ।।
तब ले तैहा कमरा खुमरी ओढे नांगर फांदे ।
हांत गोड में पलपलाए केंदवा में मेहंदी आंजे ।।
पानी में आगी बगराथस ओढ के कफन....
मोर माटी के मितान तोला करत हौ नमन.......
(३)
कातिक अग्घन दिन रात काला कहिथे नई जाने ।
तब ले दुनियां एकर मेहनत के किम्मत नई माने ।।
उपजारल अन्न साहूकार के करजा में चुक जाथे ।
बैला नांगर खेती जांगर सब एक दिन बिक जाथे ।।
अउ निकल जथे जी कमाय खाय बर छोड के वतन.....
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन....
(४)
पहिरे जुनहा चटनी बासी , खाके दिन ला पहाथे ।
कब सुरताथे रोज कमाथे ,
जग में सोर बोहाथे ।।
कथे अशोक आकाश एकर सुध , कोन हा जग में करथे ।
ये सिधवा तो अभाव गरीबी ,
संग जीथे अउ मरथे ।।
कभू तो सिपचही एकर मन मे लगे हे अगन.....
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन........

डॉ.अशोक आकाश बालोद
मो.नं.७८९८९७७५४५
०९७५५८८९१९९
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पागा कलगी-13/41/ज्योति गेवल

🍂माटी के मितान 🍂
माटी हमर महतारी -
तै हस ओकर मितान -
सुन ले कमईया किसान -
अब आगे नावा जुग -
नागर बाईला ला सुरतावन दे..
🚜टेकटर मा झट से जुतावा ले..
जतन करले तै भुइयॉ के मितान..
बूंदी -बूंदी पछीना ला चुचवाय..
दया -मया करूना तोर मा हावे-
ओ माटी के मितान...
एकाईसवी सदी ह आगे -
नावा पीड़ी के नावा जुग आगे -
खेती -किसानी करेबर..
नावा -नावा खेती के सामान आगे
खेती के विधि बताये -
कृषि कालेज ह आगे..
अपन देश माटी के...
सेवा करे खातीर
नावा तौर -तरिका ला
तै जिंनगी घलो बनाले..
ओ माटी के मितान..
ओ कमइया किसान. .
🍂 Jyoti gavel 🍂
SECL KORBA

पागा कलगी-13 /40/तरूण साहू " भाठीगढ़िया "

मोर माटी के मितान, तै हावस भुइँया के भगवान।
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान ।
सूत उठ के खेत म नांगर धरके जाथस,
जांगर ल टोर के तै भुइँया ल सजाथस।
खोंचका डिपरा ल घलो, करथस समान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।
पेट ले बचाके तै बिजहा ल बोथस,
लहू अउ पछिना ले भुइँया ल पलोथस ।
माटी म मिल जाथस तै, माटी के समान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।
जुड़ अउ घाम म घलो बरोबर कमाथस,
धरती ल चीरके तै अन्न ल उपजाथस।
बंजर ल घलो करथस, सरग समान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।।
सबोझन के पेट भरके तै हर भूखे रहिथस,
दुनिया भरके दुख पीरा ल तै हर सहिथस।
खेते म लगे रहिथस तै हर संझा अउ बिहान,
जय हो जय हो रे किसान,तै हावस भुइँया के भगवान।।
संसो झन करिबे तै माटी के लाल,
कभू झन करिबे तोर जीव के काल।
करजा ल छूट डारबे तै हावस बलवान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।।
करम ले तोर हाथ पारस बन जाथे,
माटी घलो छीथस त सोना बन जाथे।
खेत ल बनाथस तै सोना के खदान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।
मोती बन जाहि जिहां आँसू तोर गिरही,
चंदैनी कस तोर जस धरती म बिगरही।
तोर मेहनत म होवत हे सोनहा बिहान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।
तरूण साहू " भाठीगढ़िया "
ग्राम - भाठीगढ़
तहसील - मैनपुर
जिला - गरियाबंद ( छत्तीसगढ़)
पिन नं. 493888
मो. नं. 9755570644
9754236521

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/39/अमन चतुर्वेदी *अटल*

माटी के मितान मोर नंगरिहा किसान
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जम के बरस रे करिया बादर
नंगरिहा ह धर के निकलगे नांगर
काबर तै तरसावत हस रे पानी
सुन्ना हो जाही हमर जिनगानी
जम्मो खेत खार ह अगोरत हे
नंगरिहा मन तोर बाठ जोहत हे
कब आबे रे मोर जिनगी के आस
अगोरत हे संगी मोर जिनगी के साँस
मोर लइका ह तरसत हे बादर
चिखला माटी मे खेले बर
मोरो मन अकताये हे बादर
मोंगहा पार ला खोले बर
सब संगी मन निकलत हवय
धर के बासी अउ चटनी ला
दु हरिया जोत लेतेन डोली ला
खेल के चिखला के होली ला
मोर पिपराही के खार अगोरत हे
आमा डोली हर बाठ जोहत हे
ओहो तोतो के बोली सुने बर
मोर मितान बइला मन रोवत हे
ये आषाढ़ के महीना नाहकत हे
देख के मोर जिउरा कलपत हे
जल्दी बरस जा मोर करिया बादर
संगी मन निकलगे अब धर के नांगर
दु टिपका हुम जग ला पा लेतेव
मोर धरती महतारी ला मना लेतेंव
कब बरसाबे तोर सुख के गागर
संगी मन निकलगे अब धर के नांगर
संगी मन निकलगे अब धर के नांगर
�अमन चतुर्वेदी *अटल*
बड़गांव डौंडी लोहारा
बालोद छत्तीसगढ़
09730458396

पागा कलगी-13/38/पवन नेताम 'श्रीबासु'

विसय - माटी के मितान
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छत्तीसगढ़िया रे किसान, हमर माटी के मितान।।
खेती करव रे किसान, हमर भुईंया के भगवान।।
धरव नांगर धरव तुतारी, खेत डाहर जावव।
धरती दाई ल रिझा के, हरियर लुगरा पहिरावव।।
धरौ मन म धियान, तुमन हरव ग सुजान,
छत्तीसगढ़िया रे किसान........
आनी बानी पेड़ लगाव, हमर माटी ल सुंदरावव।
आक्सीजन ल बुलाके,परदूसन ल भगावव।।
चलौ करव रे श्रमदान,तभे मिलही रे बरदान
छत्तीसगढ़िया रे किसान........
विदेशी खातू छोड़के, सवदेशी ल अपनावव।
माटी ह बिमार होवतहे,ईलाज ल करावव।
बढ़िया उगही जावा धान,आहि नवा रे बिहान
छत्तीसगढ़िया रे किसान..........
तुहर किसानी करे ले भैया,जग संसार ह पाथे।
तुहरे ल खाके नेता, अऊ तोही ल गुरराथे।
देखावव अपन स्वाभिमान, बाढ़ही तुहर सम्मान
छत्तीसगढ़िया रे किसान........
हमर माटी के मितान.........
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रचना - पवन नेताम 'श्रीबासु'
ग्राम - सिल्हाटी स/लोहारा
जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ी बचाव उदिम
महतारी भाखा म