" माटी के मितान तोला करत हौं नमन "
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन ,
छत्तीसगढिया किसान तोला करत हौं नमन ।
सोर तोर बगरे हे भैया ,
चारो डाहन...
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन......
(१)
बैसाख जेठ जब आसमान ले बरसथे अंगारा ।
सांप डेढहू चिरई चिरगुन के उसना जथे हाडा ।।
तबले तैहा झौंहा गैंती धर के गोदी कोडे ।
उफनत उबलत तन के पसीना माटी ले नाता जोडे।।
सोना असन धान उपजारे तोर ये बदन..
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन...
(२)
अषाढ सावन झोर झोर के एकथइ पानी बरसे ।
टेटका घिरिया रुख खोंडरा में
सपटे जाड में कपसे ।।
तब ले तैहा कमरा खुमरी ओढे नांगर फांदे ।
हांत गोड में पलपलाए केंदवा में मेहंदी आंजे ।।
पानी में आगी बगराथस ओढ के कफन....
मोर माटी के मितान तोला करत हौ नमन.......
(३)
कातिक अग्घन दिन रात काला कहिथे नई जाने ।
तब ले दुनियां एकर मेहनत के किम्मत नई माने ।।
उपजारल अन्न साहूकार के करजा में चुक जाथे ।
बैला नांगर खेती जांगर सब एक दिन बिक जाथे ।।
अउ निकल जथे जी कमाय खाय बर छोड के वतन.....
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन ,
छत्तीसगढिया किसान तोला करत हौं नमन ।
सोर तोर बगरे हे भैया ,
चारो डाहन...
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन......
(१)
बैसाख जेठ जब आसमान ले बरसथे अंगारा ।
सांप डेढहू चिरई चिरगुन के उसना जथे हाडा ।।
तबले तैहा झौंहा गैंती धर के गोदी कोडे ।
उफनत उबलत तन के पसीना माटी ले नाता जोडे।।
सोना असन धान उपजारे तोर ये बदन..
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन...
(२)
अषाढ सावन झोर झोर के एकथइ पानी बरसे ।
टेटका घिरिया रुख खोंडरा में
सपटे जाड में कपसे ।।
तब ले तैहा कमरा खुमरी ओढे नांगर फांदे ।
हांत गोड में पलपलाए केंदवा में मेहंदी आंजे ।।
पानी में आगी बगराथस ओढ के कफन....
मोर माटी के मितान तोला करत हौ नमन.......
(३)
कातिक अग्घन दिन रात काला कहिथे नई जाने ।
तब ले दुनियां एकर मेहनत के किम्मत नई माने ।।
उपजारल अन्न साहूकार के करजा में चुक जाथे ।
बैला नांगर खेती जांगर सब एक दिन बिक जाथे ।।
अउ निकल जथे जी कमाय खाय बर छोड के वतन.....
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन....
(४)
पहिरे जुनहा चटनी बासी , खाके दिन ला पहाथे ।
कब सुरताथे रोज कमाथे ,
जग में सोर बोहाथे ।।
कथे अशोक आकाश एकर सुध , कोन हा जग में करथे ।
ये सिधवा तो अभाव गरीबी ,
संग जीथे अउ मरथे ।।
कभू तो सिपचही एकर मन मे लगे हे अगन.....
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन........
(४)
पहिरे जुनहा चटनी बासी , खाके दिन ला पहाथे ।
कब सुरताथे रोज कमाथे ,
जग में सोर बोहाथे ।।
कथे अशोक आकाश एकर सुध , कोन हा जग में करथे ।
ये सिधवा तो अभाव गरीबी ,
संग जीथे अउ मरथे ।।
कभू तो सिपचही एकर मन मे लगे हे अगन.....
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन........
डॉ.अशोक आकाश बालोद
मो.नं.७८९८९७७५४५
०९७५५८८९१९९
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