गुरुवार, 14 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/39/अमन चतुर्वेदी *अटल*

माटी के मितान मोर नंगरिहा किसान
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जम के बरस रे करिया बादर
नंगरिहा ह धर के निकलगे नांगर
काबर तै तरसावत हस रे पानी
सुन्ना हो जाही हमर जिनगानी
जम्मो खेत खार ह अगोरत हे
नंगरिहा मन तोर बाठ जोहत हे
कब आबे रे मोर जिनगी के आस
अगोरत हे संगी मोर जिनगी के साँस
मोर लइका ह तरसत हे बादर
चिखला माटी मे खेले बर
मोरो मन अकताये हे बादर
मोंगहा पार ला खोले बर
सब संगी मन निकलत हवय
धर के बासी अउ चटनी ला
दु हरिया जोत लेतेन डोली ला
खेल के चिखला के होली ला
मोर पिपराही के खार अगोरत हे
आमा डोली हर बाठ जोहत हे
ओहो तोतो के बोली सुने बर
मोर मितान बइला मन रोवत हे
ये आषाढ़ के महीना नाहकत हे
देख के मोर जिउरा कलपत हे
जल्दी बरस जा मोर करिया बादर
संगी मन निकलगे अब धर के नांगर
दु टिपका हुम जग ला पा लेतेव
मोर धरती महतारी ला मना लेतेंव
कब बरसाबे तोर सुख के गागर
संगी मन निकलगे अब धर के नांगर
संगी मन निकलगे अब धर के नांगर
�अमन चतुर्वेदी *अटल*
बड़गांव डौंडी लोहारा
बालोद छत्तीसगढ़
09730458396

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