सोमवार, 4 जुलाई 2016

पागा कलगी-12/37/ज्ञानु मानिकपुरी "दास"

"धरती दाई क गुहार"
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का होही दुनिया म, गुनके हव परशान।
दुनिया मा मनखे कथे, सबले हवव सुजान।
सबले तय हावस रे ज्ञानी। काबर करथस रे नादानी।
दुरिहागे हे अन्न अउ पानी। बिपत म डाले तय जिनगानी।
लगय काबर कखरो पीरा। तोला ऊट के मुहु म जीरा।
कखरो करलई अउ चितकार। फेर काबर नइ सुनय गुहार।
तुहुमन ओखर कोरा म, थके मांदे थिराव।
थोरक स्वारथ म आके, सबला जथव भुलाव।
जग म सबले ज्ञानी कहाई। काबर बन गय फेर कसाई।
रुख राई ल लगा नइ सकव। आरी टनगिया म काटत हव।
चिरई चिरगुन के उजड़े घर। भटके ये डहर ले वो डहर।
भुखे प्यासे उन कहा जाही। पानी बादर कहा लुकाही।
रुख राई जिनगी के, जानलव ग आधार।
करव पेड़ के तुम जतन, इही तोर बर सार।
लकड़ी जड़ी बुटी अउ फल फुल। सबला प्राणवायु देथे कुल।
धरती माँ के सिंगार आवय। देथे छाँव बरषा बलावय।
चिरई,नदी,अउ रुखराई। अउ मनखे सब भाई- भाई।
मिलके सब तोर करथे जतन। "ज्ञानु" कर सन्कल्प उखर कर जतन।
नदी,रुखराई, जंगल, के मिल करलव मान।
धरती के गुहार ल सुन,इखर ले तोर जान।
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ज्ञानु मानिकपुरी "दास"
चंदेनी कवर्धा
9993240143

पागा कलगी-12/36/सुनिल शर्मा"नील"

"झन काटव जी रूख ल"
(विधा-दोहा)
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होके अंधरा स्वार्थ म,कइसे तोरे
काम
काटे सइघो रूख ला,तँय बिकास के
नाम
जीयत भर तो रूख हा,देथे तोला
सांस
देथे ममता दाइ कस ,करथस ओखर
नास
जरी-बूटि,फल-फूल के,देथे वो
उपहार
रेंगावत आरा हवस,सुने बिना
गोहार
गावत झूलय झूलना,बइठ चिरइमन
साख
खोंदरा उखर उजारके,दिए काट
तँय पाँख
तड़फत सब्बो जीवमन ,देवत हवय
सराप
करही तोरे नाश रे,मनखे तोरे
पाप
गरमी लगही जाड़ कस,सावन पानी
ताक
रौरव नरक ल भोगबे,मिल जाबे तैं
खाक
घूरही जिनगी म जहर,परदूसन के
मार
भोगेबर करनी के फल ,रह मनखे
तइयार
भुइयां नोहय तोर भर,सबके हे
अधिकार
जीयन दे सबो जीव ल,सबला
दे ग पियार
रूख बिना हे काय रे,मनखे तोर
औकात
रुख हवय त तय हवस,सार इही
हे बात
झन काटव जी रूख ल,"नील"
कहत करजोर
रुख लगा हरियर करव
बारी,अगना,खोर|
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
7828927284
24/06/2016
copyright

पागा कलगी-12/35/चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

विषय =चित्र अधारित
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हरियर हरियर रुख ला काटत हन
हाँथ म धरे बसूला टंगिया अउ आरी
नई बांचत हे कटई ले कोनो जगह
खेतखार गाँव घर जंगल अउ झारी
पेड़ हर देवत हे बिन मांगे सब कुछ
जरीबूटी फरफूल हवा निरमल पानी
दुनिया म जीवन के आधार हरे रुख
इही परकिति के पहिली पहल निशानी
जब लगा अउ उगा नइ सकन रुख ल
त आखिर हम कोन होत हन कटइया
हमन सब जानत हन सब देखत हन
तभो ले हमन कोनो नइ हन बोलइया
उजाड़ घर सब जीव-चिरईयन के
घर अपन कतका सुग्घर बसावत हन
बिचार करव अपन काम ल साधे बर
दूसर के ला हम कतका बिगाड़त हन
एक डहर परकिति ला बिगाड़त हन
करत हन जीव हत्या बनके मांसाहारी
दूसर म कहिलाए बर परकिति परेमी
रचत हन बड़ कविता बनके कलमधारी
जियव अउ जीयन दव के सन्देश ला
चलव जम्मो जुरमिल के अब अपनाथन
नइ काटन रुख ला नइ करन जीव हत्या
चलव परकिति ले मया ला अब बढ़ाथन
CR
चैतन्य जितेन्द्र तिवारी
थान खम्हरिया(बेमेतरा)

पागा कलगी-12/34/ सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

छत्तीसगढ़ी लोकगीत पंथी ह सरल भाषा म
संदेश परधान गीत होथे,ए चित्र आधारित रचना
ल पंथी गीत के तरज देयके परियास करे हंव।
देखव सुनव गा मितान,
लोग लईका सियान।
पेड़ के कलपना डाहर,
देवव गा धियान।
चिरई के तलफना डाहर,
देवव गा धियान।
मनखे के आरा ह,
पेड़ ऊपर चलथे-2
चिरई के खोंदरा ह,
टुट कर गिरथे-2
चिरई होगे हलाकान,
छुट जाही का परान।
पेड़ के कलपना........।
चिरई के तलफना.......।
पेड़ के महत्व ला ,
सबो देखत जानत हे-2
लालच मे अंधरा,
देखके नई मानत हे-2
कइसे जीबो गा सियान,
बिरथा हो जाही गियान।
पेड़ के कलपना......।
चिरई के तलफना.....।
बिरवा लगाये के,
किरिया गा खाना हे-2
सबो जीवजंत के,
घरौंदा बनाना हे-2
नवा होवय गा बिहान,
सुख पावय भगवान।
पेड़ के कलपना.....।
चिरई के तलफना.....।
रचना:-- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602

पागा कलगी-12/33/लक्ष्मी नारायण लहरे

झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय 
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झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय 
बर- पीपल, नीम के छाँव म जी ल जुडाबो
सुघ्घर सीतल छाँव म बईठ के मया के गोठ बतियाबो
नान नान नोनी बाबु मन छैईयाँ म खेलहिं भंवरा -बांटी
दोपहरी के बेरा म पनिहारिन बईठ के छैहैहि
सखी -सहेली मन बईठ के करहीं ठठ्ठा - मुसकरी
खेत - खार ल थके हारे किसान ह बईठ बासी खाही
चिराई - चुरगुन मन बईठ के चहचहाही
कुकुर - बिलाई ह घलो छैईयाँ म सुसताही
सुघ्घर ,सीतल हवा मिलही
बरसा होही खूब
सुरुज के नखरा नी चलैय
सुर सुर हवा मिलही
जिनगी के अधार आय रुख- राई ....
झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय
० लक्ष्मी नारायण लहरे , साहिल, युवा साहित्यकार पत्रकार
कोसीर रायगढ़ - ०९७५२३१९३९५

पागा कलगी-12/32/हेमलाल साहू

@ हावे रुख राई मा जिनगी @
हावे रुख राई मा जिनगी, झन काटव ग परानी।
हवे सबो के डेरा संगी, झन करव ग मनमानी।
सबो जीव के ठउर ठिकाना, हावे रूख राई हा।
जंगल रहिथें बघवा भलुआ, पेड़ म रहै चिरई हा।।
हमर सवारथ मा सबके जी, उजरत हावे डेरा।
चिरई चुरगुन रोवत हावे, कहा करीन बसेरा।।
दिया बुझाये जिनगी के गा, जलय कहाँ अब बाती।
रुख राई हा कटगे संगी, जरथे भुंइया छाती।।
नई मिलै निरमल पुरवाई , खोज लवा तुम सासी।
बून्द बून्द पानी बर तरसे, जिनगी होगे फाँसी।।
सोचव समझव आवौ संगी, लगावौ रुख राई ला।
बाग बगइचा खूब लगावौ, बहाव पुरवाई ला।।
सुघ्घर धरती ह सम्भरे जी, पहिरे हरियर लुगरा।
मान रखव परिकरिती के जी, करव कभू झन उघरा।।
अपन बना ले बेटा संगी, तैहा रुख राई ला।
जिनगी भर तोर संग देही, लाही पुरवाई ला।।
जंगल झाड़ी रुख राई हा, हमार तो जिनगानी।
चिरई चुरगुन जम्मो हावे, इहि तो हमर निसानी।।
संगी मानव बात हेम के, करलव मया जगत ला।
सबके जिनगी अपने समझव, राखव मया भगत ला।।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़ जिला बेमेतरा
मो. नम्बर 9977831273

पागा कलगी-12/31/टीकाराम देशमुख "करिया"

"झन कांटव रुख-राई ल"
झन कांटव रुख-राई ल........
सुन लव मोर भाई ग..
1. जिनगी के अधार हावे ,जम्मों रुख-राई
नि रही भुईयाँ मं , हो जाही ग करलाई
राखव सम्हार.....2 , परकिति दाई ल....
सुन लव मोर भाई ग
झन कांटव ..............
2.रुख-राई कांट के, बनाये तैंहा डेरा
चिरगुन मन के तैँ , उझारे रे बसेरा
सुख के देवैय्या.....2 ,रुख सुखदायी ग....
सुन लव मोर भाई ग
झन कांटव..........
3. फूल,फर,कठवा ; झन अतके तैँ जान
चलत हे सुंवांसा सबके , एकर (रुख) सेती मान
चलन दे तैं संगी....2, सुग्घर पुरवाई ल .....
सुन लव मोर भाई ग
झन कांटव रुख-राई ल.....
सुन लव मोर भाई ग
@ टीकाराम देशमुख "करिया"
स्टेशन चौक कुम्हारी,जिला _दुर्ग
मो. 94063 24096